लेखक-अश्विनी कुमार भटनागर
घर में कामवाली क्या आ गई मानो नादिरा की सारी मुरादें पूरी हो गईं. सुंदर, जवान, कामकाज में सुघड़ काजल ने काम पर लगते ही सारा घर संभाल लिया. नादिरा को ऐसी कामवाली हजारों ढूंढ़ने पर भी न मिलती, लेकिन धीरेधीरे नादिरा को काजल से कुछ खतरा महसूस होने लगा था…
अचानक अखबार फेंकते हुए मोहित बोला, ‘‘लो, मैं तो भूल ही गया था.’’‘‘क्या भूल गए?’’ नादिरा ने चौंक कर पूछा.‘‘मैं ने सुबोध को खाने पर बुलाया था, वह आता ही होगा,’’ कहते हुए मोहित ने स्नानगृह की ओर कदम बढ़ाए.सुबोध मोहित का मित्र है. उस ने मोहित की शादी के बाद मोहित और नादिरा को 2 बार होटल में खाना खिलाया था.
‘‘पहले क्यों नहीं बताया,’’ नादिरा ने चिढ़ कर कहा, ‘‘सारा घर गंदा पड़ा है. सब्जियां भी नहीं हैं. क्या खाना बनाऊंगी, इतनी जल्दी में मु झ से कुछ नहीं होता.’’‘‘इसीलिए तो उसे बुलाया था,’’ मोहित ने कटाक्ष में कहा.
‘‘क्या मतलब?’’ कहते हुए नादिरा ने उसे घूर कर देखा.‘‘वह शादी करने को कह रहा है,’’ मोहित ने तिरछी मुसकान से कहा, ‘‘शादीशुदा का कम से कम अंजाम तो देख ले.’’‘‘वैरी फन्नी,’’?? नादिरा ने मुंह बना कर कहा.
नादिरा को घर का काम करने में कभी भी दिलचस्पी नहीं थी. देखने में खूबसूरत, तरहतरह के कपड़े पहन बनठन कर रहने वाली नादिरा लेकिन घर को साफसुथरा नहीं रखती थी. उसे घूमनेफिरने का शौक था और जब से आसपास के होटलों ने ‘होम डिलीवरी’ शुरू कर दी, उस ने सब के मेनू इकट्ठे कर लिए थे. वह अकसर और्डर कर खाना घर पर ही मंगवा लेती थी. खाना बनाने का कोई झं झट नहीं.
‘‘अब जल्दी से कुछ करो, नहीं तो बेचारे के सारे सपने चूरचूर हो जाएंगे,’’ मोहित ने कंधे उचका कर कहा.‘‘मु झ से कुछ नहीं होगा. होटल से खाना मंगवा लेना,’’ कहते हुए नादिरा की आंखों में चमक आ गई, ‘‘या फिर चल कर होटल में ही खा लेंगे.’’
‘‘ऐसे नहीं चलेगा,’’ मोहित ने सिर हिला कर शरारती लहजे में कहा, ‘‘मैं ने तो तुम्हारे खाने की बहुत तारीफ की है. खाने की ही नहीं, बल्कि तुम्हारी भी.’’‘‘बेकार में चापलूसी कर रहे हो,’’ नादिरा ने इठला कर कहा, ‘‘जब से बसंती गई है, मेरे तो हाथपैर फूल गए हैं. घर (मायके) में तो मैं चाय तक नहीं बनाती थी, नौकरचाकर थे न.’’
नादिरा का नौकरचाकर का ताना लगभग तकियाकलाम ही बन गया था. मोहित को इस से चिढ़ होती थी पर नादिरा को अच्छा लगता था.‘‘मैं ने कब कहा कि नौकर मत रखो?’’ मोहित ने दिखावटी गुस्से से कहा, ‘‘तुम कभी टिकने दो, तब न. सब तंग हो कर भाग जाते हैं.’’
‘‘जाओजाओ, जिस ने कभी नौकर रखे ही न हों वह क्या जाने कि उन्हें कैसे रखा जाता है,’’ नादिरा ने झल्ला कर कहा था.इस बात को लगभग एक महीना बीत गया.एक दिन दफ्तर से आ कर मोहित ने ब्रीफकेस मेज पर रखा और किचन में चाय बनाने चला गया.
दरअसल, यह समय नादिरा का सजनेसंवरने का होता था. दफ्तर से आ कर चाय बनाने की आदत मोहित को शादी से पहले भी थी.हर आदमी घर में शांति चाहता है, विशेषकर दफ्तर से आ कर. नादिरा ने जब बरतन पटकने शुरू कर दिए तो फिर उस ने नादिरा से कभी चाय बनाने को नहीं कहा.
गरमागरम चाय का प्याला नादिरा के आगे रखते हुए मोहित ने छेड़ते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है, जानेमन, आज क्या कहीं बिजली गिराने का इरादा है?’’‘‘मैं किटी पार्टी की सदस्य बन गई हूं, शोभा के यहां जा रही हूं,’’ नादिरा ने चुस्की ले कर कहा.
‘‘किटी पार्टी में कोई फायदा तो होता नहीं, नुकसान ही नुकसान है,’’ मोहित बोला.‘‘फायदा क्यों नहीं है, एक तो घर से बाहर निकलने का मौका मिलता है और दूसरे 4 औरतों से बातें होती हैं तो वे कोई न कोई अच्छी काम वाली भी बता देती हैं,’’ नादिरा ने मुसकरा कर कहा.
‘‘लो, मैं फिर भूल गया,’’ कहते हुए मोहित ने अपने माथे पर हाथ रखा.‘‘क्या भूल गए?’’ नादिरा ने चौंक कर देखा, फिर बोली, ‘‘क्या फिर कोई खाने पर आ रहा है?’’‘‘अरे नहीं यार,’’ मोहित प्यार से बोला, ‘‘एक कामवाली है.’’
‘‘कामवाली?’’ यह सुन कर नादिरा की आंखों में चमक आ गई.‘‘हां, कई दिनों से कल्पना किसी कामवाली के बारे में कह रही थी,’’ मोहित ने कहा, ‘‘मैं भी तो सभी से बोलता रहता हूं.’’‘‘यह कल्पना कौन है?’’ नादिरा ने सवालिया नजरों से पूछा.
‘‘दफ्तर में सहायक अधीक्षक है,’’ मोहित बोला.‘‘पहले क्यों नहीं बताया?’’ नादिरा ने शिकायती लहजे में कहा.‘‘मु झे जंची नहीं. उस की शर्तें बहुत हैं,’’ मोहित ने कहा, ‘‘वह कल्पना की दूर की रिश्तेदार है. पढ़ीलिखी है. खाना बनाने में होशियार है. घर भी संभाल लेगी.’’
यह सुनते ही चहक कर नादिरा ने पूछा, ‘‘फिर समस्या क्या है? वेतन अधिक मांगती है क्या?’’‘‘हां, वेतन तो अधिक लेगी ही. वैसे मैं ने अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाई,’’ मोहित ने कहा.‘‘क्यों?’’ नादिरा ने पूछा.
‘‘कल्पना ने बताया कि वह किचन का सारा काम करेगी. जूठे बरतन नहीं धोएगी. झाड़ूपोंछा भी नहीं करेगी. कपड़े नहीं धोएगी,’’ मोहित ने कहा, ‘‘घर साफसुथरा रखेगी, बिस्तर लगाएगी. हां, घर में नौकर की तरह नहीं बल्कि घर के सदस्य की तरह रहेगी. अच्छे घर की है न.’’
‘‘क्या सुंदर है? जवान है?’’ नादिरा ने संदेह से पूछा.‘‘मैं ने इतना विस्तार से नहीं पूछा.’’‘‘तो पूछो न,’’ नादिरा ने कहा, ‘‘ झाड़ूपोंछे के लिए तो मैं ने शोभा से बात कर ली है. उस की आया कर लेगी. उसे ही पक्का करने जा रही थी.’’
‘‘सोच लो, ऐसी कामवाली तुम से हजम भी होगी?’’ मोहित ने हंस कर कहा.‘‘तुम मेरी खिल्ली तो नहीं उड़ा रहे?’’ नादिरा ने चिढ़ कर कहा, ‘‘मेरे घर (मायके) में बावर्ची और बटलर भी हैं. हां, तुम्हारे लिए नयापन जरूर होगा.’’‘‘ठीक है, मैं बात करूंगा,’’ मोहित ने कहा.
यह सुन कर नादिरा मन ही मन खुश हो उठी कि घर में सिर्फ अच्छी कामवाली ही नहीं, घरेलू सहायक भी होगी. 24 घंटे साथ रहेगी. अब जब भी किटी पार्टी वाली मेरी सहेलियां आएंगी तो मैं गर्व व सम्मान से सिर उठा सकूंगी. आराम से पैर फैला कर बैठी रहूंगी और सारा काम मेरे हुक्म पर होता रहेगा.
अब नादिरा रोज मोहित को याद दिलाती और मोहित व्यस्त होने का बहाना बना कर टाल देता. जब नादिरा के सब्र का प्याला भर गया तो वह लड़ बैठी.‘‘तुम्हें कोई समस्या हो तो बताओ,’’ नादिरा ने गुस्से से कहा, ‘‘मैं कल्पना से स्वयं बात कर लूंगी.’’
कल्पना का नाम तो मोहित ने ऐसे ही ले लिया था, इसलिए वह घबरा कर बोला, ‘‘नहींनहीं, मैं आज ही बात कर लूंगा.’’