लेखक-अश्विनी कुमार भटनागर
‘‘मैं ने सुबोध को खाने पर बुलाया था, आता ही होगा,’’ कहते हुए मोहित ने स्नानगृह की ओर कदम बढ़ाए.
‘‘आने दो,’’ नादिरा ने हंस कर कहा, ‘‘ऐसा खाना खिलाऊंगी कि उंगलियां चाटता रह जाएगा.’’
‘‘सुनो,’’ मोहित ने शरारत से कहा, ‘‘क्या मु झे अपनी उंगलियां चाटने दोगी?’’
‘‘छि, शर्म नहीं आती?’’ कहते हुए नादिरा हंस पड़ी और काजल भी.
सुबोध बहुत खुश था. उस ने खाने की बहुत तारीफ की, ‘‘भाभी, आप की कामवाली बहुत अच्छी है,’’ सुबोध ने कस्टर्ड खाते हुए कहा, ‘‘बिलकुल इस कस्टर्ड की तरह.’’
‘‘छिछि, शर्म करो,’’ नादिरा ने नाटकीय िझड़की लगाते हुए कहा, ‘‘यह कामवाली नहीं, मेरी सहायक है.’’
‘‘ऐसा है भाभी, तो मैं चाहता हूं कि आप इस की पदोन्नति कर दें.’’
‘‘क्या मतलब?’’ नादिरा ने चौंक कर पूछा.
‘‘आप इसे अवैतनिक रूप से देवरानी स्वीकार कर लें,’’ कहते हुए सुबोध ने काजल को देखा और हंस पड़ा?
‘‘मैं सम झी नहीं,’’ नादिरा को लगा सुबोध मजाक कर रहा है.
‘‘अरे यार, जो न सम झे वह अनाड़ी है,’’ मोहित ने सुबोध से कहा, फिर वह नादिरा की ओर मुखातिब हो कर बोला, ‘‘दोनों शादी करने वाले हैं. इतने दिनों में तुम्हारे पास काजल को इसलिए छोड़ रखा था कि काजल अपना घर छोड़ कर आई थी. ऐसे में उस का सुबोध के साथ रहना तो मुश्किल था. सो, तुम ने मेहरबानी कर के अपने संरक्षण में रख लिया. अब दोनों के मांबाप शादी के लिए राजी हो गए हैं.’’
‘‘तो मु झे मूर्ख क्यों बनाया?’’ नादिरा ने शिकायती लहजे में कहा, ‘‘अगर सचाई बता देते तो मैं उसे बहन की तरह रखती.’’
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