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‘‘ये सब तुम अपने पापा से पूछो बेबी, उन्होंने मुझ से अलमारी साफ करने को कहा तो पौलीथीन की थैली नीचे गिरी. मैं ने साहब को उठा कर दी तो वह बोले तुम ले लो मालती, आभा तो यह सब नहीं पहनती, तुम्हीं पहन लो. उन्होंने ही सैंडिल भी दी, सो पहन ली.’’

‘‘देखो, यहां ये लाट साहिबी नहीं चलेगी, चप्पल उतार कर नंगे पांव खाना बनाओ समझी,’’ वह डांट कर बोली तो मालती ने सकपका कर चप्पल आंगन में उतार दीं. अमित भी बोल उठा, ‘‘पापा, यह आप क्या कर रहे हैं? क्या अब मम्मी के जेवर भी इस नौकरानी को दे देंगे? उन की महंगी साड़ी, सैंडिल भी, ये सब क्या है?’’

‘‘अरे, घर का पूरा काम वह इतनी ईमानदारी से करती है, और कोई होता तो चुपचाप पायल दबा लेता. इस ने ईमानदारी से मेरे हाथों में सौंप दी. साड़ी आभा तो पहनती नहीं है, इस से दे दी. इसे नौकरानी कह कर अपमानित मत करो. तुम्हारी मम्मी जैसा ही सफाई से सारा काम करती है. थोड़ा उदार मन रखो.’’ ‘‘तो अब आप इसे मम्मी का दर्जा देने लगे,’’ आभा तैश में आ कर बोली.

‘‘आभा, जबान संभाल कर बात करो, क्या अंटशंट बक रही हो. अपने पापा पर शक करती हो? तुम अपने काम और पढ़ाई पर ध्यान दो. मैं क्या करता हूं, क्या नहीं, इस पर फालतू में दिमाग मत खराब करो. परीक्षा में थोड़े दिन बचे हैं, मन लगा कर पढ़ो, समझी,’’ वह क्रोध से बोले तो आभा सहम गई. इस से पहले पापा ने इतनी ऊंची आवाज में उसे कभी नहीं डांटा था. वह रोती हुई अपने कमरे में घुस गई. अमित के समझाने पर भी वह मन का संदेह नहीं दबा पा रही थी. उस का अब पढ़ने में रत्ती भर भी मन नहीं लगता था. उस ने घबरा कर अपनी नानी को खत लिख दिया. नानाजी तो थे नहीं, सोचा, नानी यहां घर पर रह कर सब संभाल लेंगी. तब तक उस की परीक्षा भी निबट जाएगी.

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