"इश्क का भूत इस बार ऐसा सिर से उतरेगा कि तोबा बोल जाएंगे दोनों,"
अपनी हंसी पर कंट्रोल करने के बाद मैं बाहर ड्राइंगरूम में पहुंची तो देखा कि पटेल और गुर्जर एकदूसरे को गुस्से से घूर रहे थे.
किसी के कुछ कहने से पहले ही शालिनी की उलटी करने की आवाज हम तक पहुंची, तो उन दोनों का गुस्सा छूमंतर हुआ और रंग फिर से पीला पड़ गया.
मैं मुड़ कर खड़ी हुई. अपनी हंसी उन की आंखों से छिपाने के लिए वैसा करना जरूरी था.
उधर पटेलजी गुर्जर साहब को लताड़ रहे थे, "अबे, मैं तो हलका सा हंसीमजाक उस से करता था, पर मेरे दिल में पाप नहीं था. तुम ने उस से प्यार का गहरा चक्कर चला कर गुनाह किया है."
"बेकार की बात मत करो," गुर्जर ने गुस्से से भर कर जवाब दिया, "तुम ने शालीनता की सीमा हमेशा तोड़ी है. आतेजाते तुम उसे टक्कर मारते थे. मेज के नीचे पैर से पैर टकराते थे. सोने के बुंदे उसे कौन खरीद कर देना चाहता था?"
पटेलजी कुछ कहते, इस से पहले ही अरुण बैडरूम से बाहर आ कर फोन की तरफ बढ़ा.
रवि ने फौरन उसे टोका, "नहीं यार, पुलिस को फोन मत करो. शांति से बातें करने से सब समस्याएं हल हो जाती हैं."
पुलिस का नाम आते ही गुर्जर और पटेल आपस में झगड़ना भूल कर अरुण की तरफ लपके.
"तुम पूछ लेना शालिनी से, वह मुझे गुनाहगार नहीं बताएगी," पटेल ने भावुक लहजे में अपने लिए सफाई दी.
"हंसीमजाक की बात और है, पर शालिनी को मैं ने हमेशा इज्जत की नजर से देखा है," गुर्जर साहब ने दोस्ताना अंदाज में अपनी सफाई दी.