मायके में एक महीना मौजमस्ती से बिताने के बाद हम पिछली रात घर लौटे थे. रवि के औफिस जाने के सिर्फ 15 मिनट बाद ही सविता और मधु मुझ से मिलने आ पहुंचीं. वे दोनों उत्तेजना का शिकार बनी हुई थीं और अजीब से बावले अंदाज में उन्होंने वार्तालाप आरंभ किया.
“वंदना, मेरे साहब तो गए काम से,” सविता ने माथे पर पीट कर अपने पति के बारे में जानकारी दी.
“इश्क के बुखार ने तो मेरे साहब का भी दिमाग खराब कर दिया है,” सविता के ऐक्शन की नकल करते हुए मधु ने भी अपना चेहरा लटका लिया.
मेरी ये दोनों खुशमिजाज पड़ोसनें बिना नौटंकी किए अकसर कुछ कहतीसुनती नहीं हैं. मैं ने अपनी हंसी को काबू में रखते हुए पूछा, “अब किस के चक्कर में आ गए हैं तुम दोनों के दिलफेंक पति?”
“मृगनयनी,” सविता ने आंखें मटका कर एक शब्द मुंह से निकाला.
“चंद्रमुखी,” मधु आज सविता की कार्बन कौपी बनी हुई थी.
“मनमोहिनी.”
“जादूगरनी.”
“क्या चाल है उस की.”
“क्या बाल हैं उस के.”
“जो कहना है साफसाफ कहो, नहीं तो मैं आराम करने जा रही हूं,” मैं ने उन्हें धमकी दी.
‘‘वंदना, तेरे ऊपर वाले फ्लैट में जो नई छम्मकछल्लो आई है, हम उसी के बारे में बता रहे हैं,” सविता ने मजाकिया अंदाज में गंभीर दिखने का प्रयास किया.
“और हम वही बता रहे हैं, जो हम दोनों के पतिदेव उस के बारे में कहते हैं.”
“क्या नाम है नई पड़ोसन का?”
“चंद्रमुखी.”
“मृगनयनी.”
“चुप करो, नहीं तो मैं चली आराम…”
“नाराज मत हो, हम दोनों बहुत दुखी हैं,” सविता ने मेरा हाथ पकड़ कर वापस बैठा लिया.
“जादूगरनी शालिनी ने हमारे पतियों को अपने बस में कर लिया है. वे दोनों काठ के उल्लू बन गए हैं,” दुखी दिखने का प्रयास करते हुए मधु मुसकरा रही थी.
“पटेल साहब ने बाल डाई कर लिए हैं.”
“मेरे गुर्जर साहब प्रिंटेड कमीजें पहनते हैं.”
“सरसों के तेल से मालिश करने वाले पटेल साहब के पास आज 4 तरह के सैट हैं.”
“गुर्जर साहब तो शीशे के सामने से हटने का नाम ही नहीं लेते.”
“पूरी कालोनी हम पर हंस रही है सहेली.”
“तेरी दुनिया में दिल लगता नहीं, मुझ को उठा ले…” मधु टूटा दिल दर्शाने वाला यह गाना मेरी डांट सुन कर आगे नहीं गा पाई.
कुछ देर बाद सारा मामला मेरी समझ में आ ही गया. पटेल और गुर्जर हमारी नई पड़ोसन शालिनी के रूपजाल में फंस कर इश्क के बीमार बन गए थे. शालिनी और उस का पति अरुण मिलनसार स्वभाव वाले लोग थे. वे दोनों अकसर शाम को पटेल या गुर्जर के यहां मिलने पहुंच जाते थे. अपने घर लंच और डिनर पर भी वे इन्हें कई बार आमंत्रित कर चुके थे.
पटेल और गुर्जर दोनों रोमांटिक किस्म के इनसान हैं. हम सब उन के दिलफेंक स्वभाव से परिचित हैं. सविता और मधु कभी उन के आशिकाना मिजाज पर हंसती हैं, तो कभी खूब किलसती और नाराज होती हैं. वे दोनों भी अपनी आदत से मजबूर सुधरने में नहीं आते.
“हमें शालिनी से खास शिकायत नहीं है. बस, थोड़ा बनतीसंवरती ज्यादा है, पर वह चलेगा,” सविता ने अंत में अपनी राय व्यक्त की.
“अरुण भोलाभाला इनसान है. उसे शालिनी को कुछ कंट्रोल में रखना चाहिए, पर चलेगा,” मधु ने सविता के सुर में सुर मिलाया.
“फिर भी वंदना, तुम मृगनयनी को समझाना कि हमारे शूरवीरों को ज्यादा शह न दे.”
“वे न उंगली पकड़ने लायक हैं, न पौंहचा, पर अपनी कल्पनाशक्ति को बेलगाम छोड़ फिल्मी हीरो बन कर वे हमारा जीना जरूर मुश्किल कर देंगे.”
“यार, सारा महल्ला हम पर हंस रहा है.”
“हम दोनों सिर उठा कर नहीं चल पा रही हैं.”
उन दोनों को मातमी अंदाज में सिर झुका कर बैठी देख मैं ने एक बार जो हंसना शुरू किया, तो फिर हंसी ने रुकने का नाम ही नहीं लिया.