उस रात 10 बजे के करीब मयंक ने ममता को फोन किया. डर और घबराहट के कारण उस की आवाज कांप रही थी.
‘‘रितु ने खुद को बैडरूम में बंद कर लिया है. वो सिर्फ रोए जा रही है. अब तुम ही आ कर उसे समझाओ...’’ मयंक ने घबराए स्वर में उस से गुजारिश की.
‘‘क्यों रो रही है वो?’’
‘‘गुस्से में आ कर मैं ने उस पर हाथ उठा दिया था.’’
‘‘मेरे बारबार समझाने के बावजूद भी तुम ने ऐसी बेवकूफी क्यों की?’’
‘‘ये सब बातें बाद में भी हो सकती हैं. तुम जल्दी से यहां आ कर उसे...’’
‘‘मैं नहीं आ रही हूं, मयंक. उस पागल ने अगर अपनी जान लेने की कोशिश की, तो मैं भी बेकार के झंझट में फंस जाऊंगी. जब तक उसे समझा ना लो, तुम भी मुझ से दूर ही रहना,’’ बेहद चिंता से भरी ममता ने झटके से अपना फोन काटने के बाद उसे स्विच औफ भी कर दिया था.
उस रात रितु ने शयनकक्ष का दरवाजा तो घंटेभर बाद खोल दिया, पर उस की नाराजगी के चलते मयंक को ड्राइंगरूम में सोना पड़ा. रातभर ममता और मयंक दोनों ही ढंग से सो नहीं सके, पर रितु के खर्राटों की आवाज मयंक ने रात मेें कई बार सुनी थी.
अगले दिन शाम को ममता औफिस से घर लौटी, तो उस ने कुछ दूरी से रितु को अपने घर की सीढ़ियों पर बैठे देख लिया. उस का सामना करने की हिम्मत वो अपने अंदर नहीं जुटा सकी और वापस घूम कर अपनी एक सहेली के घर चली गई.
जीएम से कह कर अगले दिन ही ममता ने मयंक के दूसरे विभाग में ट्रांसफर के और्डर निकलवा दिए. उस ने मयंक से मिलनाजुलना भी बंद कर दिया.
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