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‘‘चुप, साली झूठ बालती है. मि. ईश्वर चंद्र, यह पढ़ो अपनी पत्नी और पार्वती के बीच मोवाइल पर हुई कंवरसेशन. आप की पत्नी पार्वती को अपनी सास का टेंटुआ दबाने की बात कह रही है. इस का मतलब आप समझते हैं? किसी को खून करने के लिए उकसाना. उकसाना भी खून करने के बराबर होता है. पढ़ा दो अपनी पत्नी को भी. इस डौक्यूमैंट को कोर्ट भी मानेगा. लो पढ़ो और पढ़ाओ,’’ सिद्धार्थ ने फाइल में से एक पेपर निकाल कर ईश्वर चंद्र की ओर बढ़ा दिया.

पढ़ कर ईश्वर चंद्र का चेहरा फक पड़ गया. उस ने वह पेपर अपनी पत्नी की ओर बढ़ा दिया. पार्वती ने उसे पढ़ा और कुछ कहने को उद्दत हुई. मैं ने स्पष्ट देखा, ईश्वर चंद्र ने अपनी पत्नी का हाथ दबा कर चुप रहने का संकेत किया.

‘‘मुझे समझ नहीं आया इंस्पैक्टर अमिता कि इंस्पैक्टर रजनी की इंक्वायरी रिपोर्ट पर ऐक्शन क्यों नहीं लिया गया?” सिद्धार्थ ने कहना शुरू किया, ‘‘उस समय पार्वती के पागलपन को चैक क्यों नहीं करवाया गया? यह चैक क्यों नहीं करवाया गया कि इस की पढ़ाई की डिग्रियां नकली हैं या असली? इंस्पैक्टर रजनी ने इस ओर बड़ा साफ़ संकेत किया है कि पार्वती के मांबाप ने एक पागल, अनपढ़, बदजबान व असभ्य लड़की को एक अत्यंत सुशिक्षित, सभ्य और हर तरह से समृद्ध परिवार को चेप कर बरबाद कर दिया है.’’

“सर, उस समय मुझे याद है. राजस्थान के एक डीसीपी साहब, जो इन के रिश्तेदार हैं, की व्यक्तिगत प्रार्थना पर केस रफादफा कर दिया गया था,” इंस्पैक्टर अमिता ने कहा.

‘‘तभी तो ऐसा हुआ. उस समय यदि ऐक्शन ले लिया होता तो यह नौबत न आती. फिर भी ऐसा करो, पार्वती और उस की मां के विरुद्ध एफआईआर लौज करो और...?”

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