पेपर में मोबइल की वह वार्त्तालाप थी जो कल पार्वती ने अपनी मां के साथ की थी. पढ़तेपढ़ते इंस्पैक्टर सीमा की आंखें क्रोध से लाल हो गईं. इंस्पैक्टर अमिता ने पढ़ा. उस की आंखों में भी आक्रोश झलकलने लगा. उस ने महिला हवलदार को आवाज दी. पार्वती की मां का पता देते हुए कहा, ‘मेरी गाड़ी ले जाओ. घर में जितनी औरतें, मर्द मिलें. उन्हें मारते हुए साथ ले आओ. याद रहे, बाहर से कोई चोट दिखाई नहीं देनी चाहिए. सुक्खा सिंह को साथ ले जाओ.”
‘‘नहीं, इंस्पैक्टर अमिता, अमानुषता नहीं,” मैं ने कहा.
“पार्वती ने मैडम के साथ जो अमानुषता की, मैं छोडूंगी नहीं.”
महिला हवलदार बाहर निकली तो उसी दरवाजे से एसीपी सिद्धार्थ ने प्रवेश किया. मुझे देख कर सीधे मेरी ओर बढ़े. उस का रोब इतना था कि वहां खड़े सभी कर्मचारी सैल्यूट करने लगे. उस ने अपनी कैप उतारी और मेरे चरणों में झुक कर प्रणाम किया. सिद्धार्थ ने भी वही सवाल किए जो अमिता और सीमा ने किए थे.
मेरा उत्तर सुने बिना मेरा हाथ पकड़ा और अपनी केबिन की ओर बढ़ा. ‘‘सर, आप मेरे साथ आइए. सर, यहां बैठिए, मेरे सामने. कहिए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं? आप ने मुझे बुलाया होता तो भागा हुआ आता. आप ने यहां आने की तकलीफ क्यों की?’’ वह मेरे पास ही बैठ गया.
उस के इस व्यवहार से मैं अचंभित और गदगद था. इतना बड़ा अफसर होने पर भी उस में कोई अंतर नहीं आया था. बहुत प्रयत्न करने पर जब मैं उत्तर देने को उद्दत हुआ तो उसी समय इंस्पैक्टर सीमा ने प्रवेश किया. सैल्यूट करने के बाद मेरे आने का सबब और सारा केस समझाने लगी. सारी बात सुनने के बाद “अच्छा” कहा और अपनी सीट पर र्बैठ गया, फिर पूछा, “मैडम की क्या हालत है?”
इंस्पैक्टर सीमा ने जवाब दिया, “सर, थोड़ी देर पहले अस्पताल में मेरी डाक्टर से बात हुई थी. उन्होंने कहा कि मैडम खतरे से बाहर हैं किंतु सकते व सदमे में हैं.”
“सदमे और सकते में तो रहेंगी. इतनी स्नेहशील और सहृदय महिला को कोई अपना मारता है तो वे महीनों क्या, सालों तक सदमे से उभर नहीं पाएंगी,” एसीपी सिद्धार्थ ने कहा, “इंस्पैक्टर किसी को मैडम की स्टेटमैंट लेने भेजा?”
‘‘जी, सर. इंस्पैक्टर रोजी इसी काम के लिए अस्पताल में है. अभी तक लौटी नहीं.”
“पता करो, स्टेटमैंट ली या नहीं. एक बार स्टेटमैंट और मैडिकल रिपोर्ट आ जाए, फिर देखता हूं सब को. सर, छोडूंगा नहीं. देख लेना, सर.”
इतने में बाहर शोर हुआ. इंस्पैक्टर अमिता जोरजोर से आदेश दे रही थी, ‘‘इस को इस की बेटी के साथ बंद कर दो. इस की भाभी को भी इसी के साथ. इन श्रीमान को एसीपी साहब के कमरे में ले आओ. ए, रोनाधोना बंद करो, नहीं तो सारा रोना घुसेड़ दूंगी जहां से निकल रहा है. कुतिया कहीं की.’’
थोड़ी देर बाद षोर बंद हुआ. इंस्पैक्टर अमिता मेरे समधी ईश्वर चंद्र को ले कर केबिन में घुसी. सिद्धार्थ ने एक बार मुझे देखा, फिर ईश्वर चंद्र को. इस के बाद इंस्पैक्टर अमिता से कहा, ‘इन श्रीमानजी की कुछ सेवापानी की या नहीं? जाओ, पहले सेवापानी कर के लाओ. फिर देखेंगे कि क्या करना है.”
‘‘नहीं सिद्धार्थ, नहीं, प्लीज. मैं पुलिस की सेवापानी को बखूबी समझता हूं. मैं अपनी मंशा आप को समझा चुका हूं.”
“देखो, अपने इन सभ्य संमधी साहब को. आप की बेटी के पागलपन के कारण इन की पत्नी अस्पताल में है. फिर भी ये आप को बचाना चाहते हैं.”
सर, मुझे याद आ रहा है, 2 महीने पहले ये यह वूमेन सैल में आए थे. शिकायत की थी कि ससुराल में इन की बेटी को तंग किया जा रहा है. इन की बेटी को जान का खतरा है. शायद फिनायल की गोली भी खा ली थी. इंस्पैक्टर रजनी को तब इंक्वायरी के लिए भेजा गया था. मैं उस इंक्वायरी की रिपोर्ट मंगवा लेती हूं.’’
“जल्दी मंगवाओ. तब तक इन ईश्वर चंद्र को लौकअप में बंद कर दो. यदि चूंचां करें तो सेवापानी करने से पीछे मत हटना, साले की.”
मैं भी उठने लगा तो एसीपी सिद्धार्थ ने कहा, “आप नहीं, सर. अभी चाय आ रही है, इकट्ठे बैठ कर चाय पिएंगे. तकरीबन 2 साल बाद मिले हैं. मैं आईपीएस की ट्रेनिंग पर जा रहा था तो आप का आशीर्वाद लेने आया था. फिर पुलिस की झंझटों में ऐसे पड़ा कि आप से मिलने का समय ही नहीं मिला.”
“मैं आप की सक्रियता और व्यस्तता समझता हूं एसीपी साहब.”
“नहीं सर, आप के मुख से सिद्धार्थ ही अच्छा लगता है, एसीपी साहब नहीं.”
मैं कुछ कहने को हुआ कि इतने में चाय आ गई. दोनों चाय पीने लगे. इंस्पैक्टर अमिता इंस्पैक्टर रजनी की इंक्वायरी रिपोर्ट ले कर हाजिर हुई. जैसेजैसे सिद्धार्थ रिपोर्ट पढ़ता गया, उस के चेहरे का रंग बदलता गया. चेहरे और आंखों में आक्रोश व क्रोध स्पष्ट दिख रहा था. तभी उस ने उतेजित हो कर कहा, “बुलाओ उन सब को मेरे केबिन में.”
‘‘सर, अभी लाई,” इंस्पैक्टर जल्दी से बाहर चली गई. थोड़ी देर बाद सभी केबिन में थे. पार्वती ने एक बार बड़ी निरीह नजर से मेरी ओर देखा. मुझे ऐसा लगा, वह सचमुच अपने किए पर पछता रही है. उस की भाभी भी एक तरफ सिर झुकाए खड़ी थी. मैं जान नहीं पाया कि उस के दिमाग में क्या चल रहा है? मां की आंखों में आक्रोश व क्रोध था. ईश्वर चंद्र भी सिर झुकाए खड़े थे. इंस्पैक्टर ने 2 फाइलें सिद्धार्थ के सामने रख दीं.
“पार्वती की मैडिकल रिपोर्ट और स्टेटमैंट इसी में लगी है.’’
“जी, सर.”
“ओके. पार्वती, आप को क्या कहना है?”
‘‘सर, मेरी सरासर गलती है. मैं माफी के लायक भी नहीं हूं. मैं किसी के बहकावे में आ गई थी.’’
“और आप को बहकाने वाली आप की मां थी, क्यों?”
पार्वती ने एक बार अपनी मां की ओर देखा लेकिन कहा कुछ नहीं.
“नहीं सर, यह झूठ है. मैं ने किसी को नहीं बहकाया,” पार्वती की मां ने कहना शुरू किया था.