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आफिस से फोन कर अजय ने नीरा को बताया कि मैं  आनंदधाम जा रहा हूं, तो उस के मन में विचारों की बाढ़ सी आ गई. आनंदधाम यानी वृद्धाश्रम. शहर के एक कोने में स्थित है यह आश्रम. यहां ऐसे बेसहारा, लाचार वृद्धों को शरण मिलती है जिन की देखभाल करने वाला अपना इस संसार में कोई नहीं होता. रोजमर्रा की सारी सुविधाएं यहां प्रदान तो की जाती हैं पर बदले में मोटी रकम भी वसूली जाती है.

बिना किसी पूर्व सूचना के क्यों जा रहा है अजय आनंदधाम? जरूर कोई गंभीर बात होगी.

यह सोच कर नीरा कार में बैठी और अजय के दफ्तर पहुंच गई. उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, सब खैरियत तो है?’’

‘‘नीरा, अम्मां, पिछले 1 साल से आनंदधाम में रह रही हैं. आश्रम से महंतजी का फोन आया था. गुसलखाने में फिसल कर गिर पड़ी हैं.’’

अजय की आवाज के भारीपन से ही नीरा ने अंदाजा लगा लिया था कि अम्मां के अलगाव से मन में दबीढकी भावनाएं इस पल जीवंत हो उठी हैं.

‘‘हम चलते हैं, अजय. सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘अच्छा होगा मां को यदि किसी विशेषज्ञ को दिखाएं.’’

‘‘ठीक है, रुपए बैंक से निकलवा कर चलते हैं. पता नहीं कब कितने की जरूरत पड़ जाए,’’ सांत्वना के स्वर में नीरा ने कहा तो अजय को तसल्ली हुई.

‘‘मैं तो इस घटना को सुनने के बाद इतना परेशान हो गया था कि रुपयों का मुझे खयाल ही नहीं आया. प्राइवेट अस्पताल में रुपए की तो जरूरत पड़ेगी ही.’’

कुछ ही समय में नीरा रुपए ले कर आ गई. कार स्टार्ट करते ही पत्नी की बगल में बैठे अजय की यादों में 1 साल पहले का वह दृश्य सजीव हो उठा जब तिर्यक कुटिल दृष्टि से नीरा ने अम्मां को इतना अपमानित किया था कि वह चुपचाप अपना सामान बांध कर घर से चली गई थीं.

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