फिर उन्होंने ग़ौर किया कि उस ने ‘एक्सक्यूज़ मी, आंटी’ जैसे नक़ली लगने वाले शब्द नहीं कहे थे, अपनाइयत से ‘आपी’ कहा था. रस्मी जुमलों से कोफ़्त थी उन्हें.
एकबारगी उन को लगा, उन की जवानी की हूबहू रेप्लिका थी वह लड़की. वे चौंक गईं, क्या यह लड़की मुझे इंप्रैस करने के चक्कर में होमवर्क कर के आई है?
पर कैसे? उन के घर में ये सब बातें कोई नहीं जानता. दानिश अपने काम के सिलसिले में ज़्यादातर वक़्त बाहर ही होता है और नौकरों की नज़रें कब से इतनी पैनी होने लगीं. अपनी सोचों से बाहर निकल कर उन्होंने सवाल किया, “क्या नाम है बेटा, आप का? किस के साथ आई हो? कहां रहती हो? पढ़ाई कर रही हो?” एकसाथ इतने सवाल दागने के बाद भी और सवाल उन की ज़बान पर मचल रहे थे, जिसे बमुश्किल काबू में किया उन्होंने.
“जी, मैं ज़ुनैरा इक़बाल. हैदराबाद से आई हूं. दुलहन इफ़रा मेरी कज़िन लगती है. एमबीए कर रही हूं. डीजे का कानफोड़ू शोर चुभ रहा था कानों में तो यहां आ गई.”
ज़रीना बेग़म को तसल्ली हुई कि कहां एमपी का भोपाल और कहां साउथ का हैदराबाद, तेलंगाना में है शायद अब तो. जानपहचान का सवाल नहीं, तो कोई प्लानिंग या साज़िश नहीं है.
“बेटा, आप लोग रोटीसब्ज़ी नहीं खाते, चावल ही खाते हो न?”
“ऐसी बात नहीं है, आपी. हम लोग बेसिकली लखनऊ के हैं. पापा की जौब की वजह से 5 साल से हैदराबाद में हैं. हम रोटीसब्ज़ी, दालचावल सब खाते हैं. साउथ वाले भी हर तरह की शोरबे बिन शोरबे वाली, सूखी, भुनी हुई सब्ज़ी खाते हैं. बस, रोटी के बजाय चावल से. पर शादियों में मैं लाइट खाना ही प्रिफ़र करती हूं, बहुत हैवी और ऑयली होता है न. माल ए मुफ़्त, दिल ए बेरहम होने से क्या फ़ायदा, पेट तो अपना ही है. देखिए, प्लेट्स कितनी चिकनी हो रही हैं बटर चिकन की ग्रेवी में, हमारा पेट कितना चिकना हो जाएगा इसे खा कर,” वह बड़ा ठहरठहर कर शांत लहजे में बोल रही थी.
“अच्छा, आप तो मुझ से इतनी छोटी हैं, फ़िर आपी क्यों कह रही हैं, बेटा?” आख़िर उन्होंने टोक ही दिया, हालांकि आंटी के बजाय बड़ी दीदी कहा जाना अच्छा ही लग रहा था उन्हें.
“ओह, आप को बुरा लगा, माफ़ कीजिए. दरअसल, मेरी आपी भी मुझ से 10 साल बड़ी हैं. आप भी 30-35 की हैं और उन्हीं की तरह ख़ूबसूरत व ग्रेसफुल. सौरी,” वह शर्मिंदा सी होते हुए बोली.
“आप माफ़ी बहुत मांगती हैं, बुरा क्यों लगेगा. मुझे आंटीवांटी सुनना, इतराइतरा कर एक्सक्यूज़ मी बोलना बिलकुल पसंद नहीं. वैसे, मैं 48 की हूं, तो ख़ाला या फुफ्फो ज़्यादा सूट करेगा.” इस बार वे खुल कर मुसकराईं.
अब ज़रीना बेग़म से सब्र नहीं हो रहा था कि कैसे उस के बारे में सारी जानकारी निकलवाएं, कैसे उसे परखें, क्या करें. ज़ुनैरा तो चली गई थी पर उन के मन में खलबली मचा गई थी. वे अपनी देवरानी को इतना कुछ सुना चुकी थीं कि उस से नज़रें मिलाने में कतरा रही थीं. यह तो उस का बड़प्पन था कि भाभी साहिबा, भाभी साहिबा कहते मुंह नहीं सूख रहा था उस का. हर काम में आगेआगे किए हुए थी उन्हें.
वे दोबारा उठ कर फंक्शन में शामिल हो गईं. अचानक सबकुछ अच्छाअच्छा सा लग रहा था उन्हें.
कल दुलहन चली जाएगी मायके वालों के साथ, आज ही की रात है, हैदराबाद तो बहुत दूर है, कैसे जाऊंगी वहां? दानिश से कह नहीं सकती, वह एक ही बार जाएगा और हां कर आएगा. क्या पता लड़की वैसी न हुई, भला फिरोज़ीगुलाबी कपड़े, मोती का सैट और चावल खाने के अंदाज़ से जिंदगी के फैसले हुआ करते हैं? वे बेचैनी से पहलू बदल रही थीं.
अब उन के दिमाग में यह विचार आया कि दुनिया उन्हें साहिर लुधियानवी की मां की तरह न समझ ले, वे तो सच में बेटे का घर आबाद देखना चाहती हैं.
तभी दानिश आ गया और उन को घर ले गया यह कहकर कि ज़्यादा देर बैठना उन की सेहत के लिए ठीक नहीं. वे बिलकुल जाना नहीं चाहती थीं पर मजबूर थीं. क्या बतातीं उसे अभी से.
2-3 दिनों में शादी के हंगामे निबट गए. लेकिन ज़रीना बेग़म को किसी पल चैन न था.
इतनी प्यारी लड़की है, इतनी खूबसूरत है. कहीं इंगेज हुई तो? किसी को पसंद करती हुई तो.
इसी उधेड़बुन में एक हफ्ता हो गया. वे मौर्निंग वाक पर भी नहीं जा रही थीं. आख़िर को दिल को सुकून देने के लिये पार्क में टहलने निकल गईं. पास की कालोनी में रहने वाली सौम्या से उन की अच्छी बनती थी. वह भी उसी पार्क में आया करती थी. वह वीमन होस्टल में रह कर जौब कर रही थी. वह उन्हें डाइट व एक्सरसाइज़ के टिप्स दे दिया करती थी और वे उसे घर के मज़ेदार पकवान.
आख़िर को वही सब से भरोसेमंद लगी उन्हें. सारी बातें दिल खोल कर बता दीं.
उन की बातें सुन कर सौम्या खिलखिलाई, “मौसी, आप भी न, छोटे बच्चों की तरह हैं. एक कहानी सुनिए, एक आदमी बाग़ीचे का सब से सुंदर फूल लेने के लिए गया. अंदर जाते ही उसे बेहद सुंदर, खुशबूदार फूल नज़र आया. उस ने सोचा कि शुरुआत में ही इतने प्यारे फूल लगे हैं तो आगे तो न जाने कितने अच्छेअच्छे होंगे. इसी सोच में वह आगे बढ़ता गया, बढ़ता गया. एक से बढ़ कर एक फूल देखे, पर पहला वाला उस के मन में बस गया था. उसे कोई पसंद न आया. आख़िर में उस ने सोचा कि वही फूल ले लेना चाहिए, सो वह वापस लौट गया. पर उस ने देखा, इतनी देर में वह फूल कोई और ले गया है. अब वह दुखी हो गया और वहीं बैठ गया. थोड़ी देर बाद उस ने मन को समझाया और सोचा, चलो कोई बात नहीं, दूसरे फूल भी कम सुंदर नहीं. वह आगे बढ़ा तो देखा, दूसरी बार जो समय गंवाया था उस ने, उस दौरान सारे फूल कोई ले जा चुका था.”
इतना कह कर सौम्या चुप हो गई.
“आय हाय बीबी, मेरा हार्ट फेल करा कर मानोगी क्या? अभी उड़ कर चली जाऊं?” ज़रीना बेग़म घबरा कर बोलीं.
“अरे नहीं मौसी, कल चलते हैं न, फ्राइडे ईव है. मेरा सैटरडे-सन्डे औफ है,” सौम्या ने कहा.
“अरे क्या सचमुच? कैसे? तुम मेरे साथ चलोगी? तुम कितनी प्यारी बच्ची हो, ख़ुश रहो हमेशा,” ज़रीना बेगम बच्चों जैसे उत्साहित हो रही थीं.
“इतने पैसे हैं आप के पास, तो क्या फ़्लाइट की टिकट नहीं बुक करा सकतीं?”
सौम्य की इस बात पर दोनों हंसने लगीं.
“मुझे इक़बाल साहब की डिटेल दीजिए, सर्च करती हूं ऐड्रेस,” और सौम्या ने जल्दी से फोन निकाला.
ज़रीना बेग़म बहुत एक्साइटेड थीं, जैसे सिंदबाद जहाज़ी किसी एडवैंचर को करने जा रहा हो. मिन्नतें भी करती जा रही थीं अपने मिशन की क़ामयाबी की.
प्लान के मुताबिक़ सौम्या घर आई और दानिश को बताया कि फ्रैंड्स के साथ आउटिंग का प्रोग्राम है, 2 दिनों के लिए उस की मम्मी उधार चाहिए. दानिश चौंक गया, इस से पहले कभी उस ने अम्मी को अकेला नहीं छोड़ा था. पर जब उन्होंने मासूमियत से रिक्वैस्ट की, तो उस से इनकार करते न बना. वीडियो कौल से टच में रहेंगी, इस वादे के साथ उस से हां करते ही बनी.
वह भी सोच रहा था अम्मी का दिल बहल जाएगा. उसे सौम्या की समझदारी पर भी पूरा भरोसा था.
दोनों ने चुपके से हैदराबाद की तरफ़ कूच कर दिया.
“पर मौसी, यह ख़राब नहीं लगेगा किसी को बिन बताए धमक जाओ उस के घर,” सौम्या को संकोच हो रहा था.
“अरे बेटा, लड़कियों का सुघड़ापा यों ही देखा जाता है अचानक जा कर, बिन लीपापोती और तैयारियों का वक़्त दिए,” ज़रीना बेगम अनुभवी थीं.
इक़बाल मेंशन के दरवाज़े के बाहर खड़ी दोनों ही हिचकिचा रही थीं.
संयोग था कि कौलबेल पर हाथ रखने से पहले ही दरवाज़ा खुल गया. एक हाथ में रूमी की मसनवी और दूसरे हाथ में बेगम अख़्तर की ग़ज़ल लगा कर फ़ोन पकड़े हुए क्रीम और मैरून कौम्बिनेशन का सूट पहने ज़ुनैरा सामने खड़ी थी. कुछ पल को दोनों अपनीअपनी जगह जम सी गईं.
ज़रीना बेग़म को यक़ीन नहीं आ रहा था. शेख सादी, मीर और रूमी को पढ़ने की वजह से सब सहेलियां उन्हें बूढ़ी रूह कह कर चिढ़ाती थीं और बेग़म अख़्तर की आवाज़ में तो जान बसती थी उन की. कालेज फेयरवैल के वक़्त इसी कौम्बिनेशन की साड़ी पहनी थी उन्होंने.
“अस्सलामो अलैकुम. जी, आइए,” ज़ुनैरा कुछ समझ और कुछ नासमझी में बोली.
“अम्मी से मिलना है?”
“आप ने पहचाना नहीं, बेटा? हम भोपाल में मिले थे,” ज़रीना बेगम आगे बढ़ीं.
“हां, ओह, अरे हां, माफ़ कीजिए आपी, अरे फिर से सौरी, ख़ालाजान तशरीफ़ लाएं,” वह एकदम ही ख़ुश हो गई.
मेहमानों को अंदर बैठा कर वह अम्मी को बुलाने चली गई.
जैसे ही मिसेज़ इक़बाल अंदर आईं, अपना परिचय करा कर बिन लागलपेट ज़रीना बेग़म ने कहना शुरू किया- “आप यक़ीन नहीं करेंगी, पर अगर मेरी बेटी होती तो हूबहू ज़ुनैरा जैसी होती.
सूरत और सीरत में मेरा अक़्स है वह. अब गोद तो ले नहीं सकती, तो उसे आप ही मुझे बेटी के तौर पर सौंप दें. मेरा एक ही बेटा है, दानिश. उस की बहुत सी फोटोज और बायोडेटा लाई हूं. ऐड्रेस, फ़ोन नंबर भी. आप अपने हिसाब से जांचपड़ताल व तसल्ली करा लें और प्लीज़, एक बार मेरे प्रपोज़ल पर ग़ौर ज़रूर करें.”
एक ही सांस में सब बोल कर जब ज़रीना बेग़म चुप हुईं, तो मिसेज़ इक़बाल ग्रेसफुली मुसकरा दीं.
“हम तो यह मानते हैं, जोड़ियां ऊपर बनती हैं, नीचे मिल ही जाती हैं ख़ुद ही. जब भी कुदरत का हुक्म हुआ, फ़ौरन निकाह कर देंगे. रिश्ते तो बेतहाशा आ रहे हैं, पर हम लोग इस की पढ़ाई पूरी होने के इंतज़ार में हैं. इस के पापा से मैं डिस्कस कर के आप को ख़बर कर दूंगी. आप लोग बड़ी दूर से आई हैं, फ्रैश हो लें. मैं खाना लगवाती हूं.”