ज़रीना बेग़म ख़ामोशी से आनेजाने वाले मेहमानों का जायज़ा ले रही थीं. वे वलीमे की दावत में शामिल होते हुए भी शामिल नहीं थीं. उन को लग रहा था कि उन को नीचा दिखाने के लिए देवरानी ने आननफानन बेटे की शादी कर दी है. उन का दानिश 4 साल बड़ा था माहिर से.
वे सोच रही थीं कि माहिर की उम्र ही क्या है, 26 का ही तो हुआ है, क्या हर्ज था एकाध साल रुक जाती तो. ख़ानदान भर में मेरा और दानिश का मज़ाक बना कर रख दिया, लोग तरहतरह की बातें कर रहे होंगे. हालांकि उन्होंने किसी को बातें करते सुना तो नहीं था पर जो भी उन की तरफ़ देख कर कुछ कहता या हंसता, उन्हें लगता, उन्हीं पर कटाक्ष किया जा रहा है.
‘दानिश मेरा बच्चा. मेरी रूह की ठंडक, मेरी आंखों का नूर. इकलौता होने के नाते कितना ज़िद्दी, नख़रीला सा था, जब लाड़ उठाने वाले, मुंह से निकलने के पहले हर ख़्वाहिश पूरी कर देने वाले वालिदैन हों तो होना ही था न,’ ज़रीना के दिमाग में कशमकश जारी थी.
पर 12 साल की उम्र में ही अब्बू को खो देने के बाद वह जैसे एकदम बड़ा हो गया था. बिलकुल ख़ामोश, संजीदा, मां का हद से ज़्यादा ख़याल रखने वाला, पढ़ाई जितना ही अब्बू के बिज़नैस को भी सीरियसली लेने लगा था. अम्मी की कभी नाफ़रमानी न हो, यही कोशिश रहती थी.
उस ने अपनी ज़िंदगी के फैसले लेने का हक अपनी मां को दे दिया था. बस, उस की एक ही शर्त थी, जब उन की तरफ से रिश्ता फाइनल हो जाए, उन का दिल लड़की को बहू मान ले, तभी लड़की देखनेदिखाने का सिलसिला शुरू हो. वह कभी किसी लड़की को रिजैक्ट कर के उस को एहसासे कमतरी में मुब्तिला कर के अपने ज़मीर पर बोझ नहीं ले सकता.
उस की बात से पहले तो ज़रीना बेग़म मानो निहाल हो गईं, पर वक़्त गुज़रने के साथ उन पर जेहनी दबाव बढ़ता जा रहा था. उन को लगने लगा था कि अदब व तहज़ीब में ढली, नफ़ासत और क़ाबिलीयत से लबरेज़ इंसान पैदा होना बंद ही हो गए हैं जैसे ज़मीन पर. फूहड़, बेढंगी लड़कियां एक आंख नहीं सुहाती थीं उन को. ऊपर से ग़ज़ब यह कि कुलसूम, उन की देवरानी, अपने बेटे माहिर के रिश्ते के सिलसिले में सलाह लेने आ गईं.
‘अरे माहिर की उम्र ही क्या है, अभी और सुघड़ सलीकेमंद लड़कियां…’ वे बात पूरी करतीं, उस से पहले कुलसूम बोल पड़ीं, ‘भाभी साहिबा, हम भी अल्हड़, चंचल थे जब ब्याह कर आए थे इस घर में. हमारी सास ने सब्र से, प्यार से हमें इस घर के सांचे में ढाल ही लिया न. 26 का हो गया है माहिर. तालीम मुकम्मल हो गई. 2 साल से अपने अब्बू के साथ हाथ बंटा रहा है बिज़नैस में. इफ़रा, उस की दुल्हन, 22 की है. ग्रेजुएशन कर चुकी है. सही उम्र है दोनों की. एडजस्ट करने में दिक़्क़त नहीं आएगी. सब से बड़ी बात, उन दोनों की यही मरजी है.’
‘ए हे बीबी, ये कहो न आंख लड़ गई है दोनों की, चक्कर चल रहा है, तो अब कोई रास्ता तो है नहीं तुम्हारे पास. फिर यह सलाह का ढोंग क्यों?’ ज़रीना बेग़म तुनक कर बोलीं.
कुलसूम ने उन्हें अफ़सोस से देखा और कहा, ‘पसंद की शादी इतनी बुरी बात तो नहीं. जब हर लिहाज़ से जोड़ी क़ाबिलेक़ुबूल है तो इस बात पर एतराज़ कि लड़के ने पसंद कर ली लड़की, फुज़ूल है.’
‘हां, जब उड़ा कर ले जाएगी वह चंट बला लड़के को अपने साथ, तब रोते बैठी रहना,’ ज़रीना बेगम कब हथियार डालने वालों में से थीं.
‘अच्छा न कहें तो बुरा भी न कहें. मैं किसी की फूल सी बच्ची के लिए ऐसी सोच नहीं रख सकती. आख़िर, मेरी भी एक बच्ची है जो कल को किसी के घर की रौनक बनेगी. मैं रिश्ता पक्का करने जा रही हूं. आप का दिल गवारा करे, तो आ जाइएगा. कुदरत दानिश पर रहम करे.’
उन का आख़िरी जुमला ज़रीना बेग़म को सिर से पांव तक सुलगा गया था. वे सोचने लगी थीं, ‘क्या होगा जब दानिश को माहिर की शादी पक्की होने की ख़बर मिलेगी. क्या सोचेगा वह कि अम्मी मेरे लिए एक अदद हमसफ़र न तलाश सकीं. कहीं वह ख़ुद ही किसी को ले आया तो’
उन की तबीयत बिगड़ गई थी. अपनी मां को अच्छे से समझने वाला दानिश इस बार भी सब समझ गया था. ढेरों तसल्लियों के साथ उस ने मां को मना लिया था कि ख़ुशी से शादी में चलें और किसी को कुछ कहने का मौका न दें.
ओह मेरा सब्र वाला बच्चा, कैसे आगे बढ़बढ़ कर हर काम संभाले हुए है. क्या मैं सचमुच नकारी मां हूं?
इन्हीं सब ख़यालों से घबरा कर वे शोरशराबे से दूर गार्डन के पिछले हिस्से में आ बैठी थीं.
उन के ख़यालों के सिलसिले को तोड़ती एक मीठी आवाज़ कानों से टकराई, “माफ़ कीजिएगा आपी, क्या मैं इस चेयर पर बैठ सकती हूं?”
उन्हें बेवक़्त का यह ख़लल पसंद नहीं आया. बड़ी मुश्किल से तो यह कोना नसीब हुआ था शोरगुल से दूर, चिड़चिड़े अंदाज़ में जवाब दिया, “कुरसी मेरे अब्बू की तो है नहीं, बैठ जाओ जहां बैठना हो.”
“ओह, दोबारा माफ़ी चाहती हूं, शायद आप को डिस्टर्ब कर दिया, मैं चलती हूं.”
ज़रीना बेग़म के होश बहाल हुए तो देखा, 20-22 साल की ताज़ा गुलाब की तरह खिली हुई परी चेहरा लड़की उन से मुख़ातिब है.
अपनी बदएख़लाकी पर अफ़सोस करते हुए उन्होंने कहा, “अरे नहीं, मैं पता नहीं किस धुन में थी माफ़ी चाहती हूं. बैठ जाओ यहीं, प्लीज़.”
“कोई बात नहीं, आप बड़ी हैं, माफ़ी न मांगें,” कह कर वह लड़की मुसकरा कर बैठ गई.
अब ज़रीन बेग़म का पूरा ध्यान उसी पर था. उन्होंने जब उस का जायज़ा लिया तो चौंक पड़ीं. बेबी पिंक और स्काई ब्लू कौम्बिनेशन की वे दीवानी थीं कालेज टाइम में.
हालांकि एक बार पति ने टोक दिया था- ‘बेगम, मेरी आंखें कालीसफ़ेद के बजाय गुलाबीफिरोज़ी होने को हैं इस रंग को देखदेख कर.’
तब चिढ़ और कुढ़न में उन्होंने कुछ जोड़े हाउसहैल्प को और कुछ छोटी बहन को दे दिए थे. बाद में लाख मनाने पर भी दोबारा वह रंग नहीं पहना, पति की मौत के बाद तो बिलकुल नहीं, 16 साल से.
उसी कौम्बिनेशन में मोतियों के वर्क वाला दुपट्टा, मोतियों के ही छोटेछोटे इयरिंग्स और मोती की नोज़पिन. किसी सीप से निकल कर आई हुई लग रही थी वह. एकदम लाइट मेकअप और पिंक लिपस्टिक. उस के फैशन सैंस की वे कायल हो गईं.
दूसरी हैरत उन्हें तब हुई जब उन्होंने देखा कि उस की प्लेट में एक बाउल में रसगुल्ला रखा है, एक में दाल. एकएक चम्मच दाल ले कर वह चावल में मिक्स कर के खाती जा रही थी. यही उन का तरीक़ा था. चावल में एकसाथ ख़ूब सारी दाल डाल कर भकोस लेने वाले जाहिल लगते थे उन्हें.