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"तुम मुझे चुड़ैल कहो चाहे भुतनी, मुझे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है. मैं तुम्हारी स्त्रीत्व की रक्षा करना चाहती हूं. अगर लोगों की जबान बंद करना चाहती हो तो विनायक अंकल से शादी कर लो. वह भी तो तलाकशुदा हैं. अभी तुम्हारी उम्र 34-35 के आसपास होगी यह उम्र विधवा की जिंदगी जीने के लिए नहीं होती. तुम दोनों की शादी से मुझे काफी खुशी होगी," इतना कहने के बाद वंदना अपने कमरे से बाहर निकल गई.

वंदना का जवाब सुन कर विमला की बोलती बंद हो गई. वह कमरे से बाहर निकलती वंदना को आश्चर्य से देखती रह गई. थोड़ी देर पहले मांबेटी के बीच जो विषम स्थिति बनी हुई थी वह बदल कर कुछ हद तक साकारात्मक हो गई थी. विमला सोचने लगी,'घर में जवान बेटी के रहते वह विनायक बाबू से कैसे विवाह कर सकती है. अगर शादी हुई भी तो जगहंसाई के सिवा उस के हाथ में क्या आएगा? वह कोई अच्छा लड़का देख कर पहले वंदना की शादी कर देगी. उस के बाद अपने बारे में सोचेगी...'

वह यही सब सोच रही थी कि तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी. उस ने जैसे ही दरवाजा खोला तो सामने खड़े एक युवक को देख कर दंग रह गई. युवक का सौम्य चेहरा और व्यक्तित्व काफी आकर्षक था.

"मैं वंदना की मां से मिलने आया हूं,” उस युवक ने मुसकराते हुए कहा.

“मैं ही हूं उस की मां, आप कौन हैं?”

“मैं रौशन. वंदना के साथ काम करता हूं. बैठने को नहीं बोलेंगी क्या आंटी?”

“ओह, तुम ही रौशन हो. अंदर आओ बेटा. वंदना अकसर तुम्हारी चर्चा करती है,” प्रसन्नता के साथ विमला उसे अंदर ले आई और रौशन को ड्राइंगरूप में बैठाया. फिर उस से बोली,"बैठो बेटा, चाय बना कर लाती हूं.”

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