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एक दिन वह औफिस जाने के लिए अपने शहर के नुक्कड़ पर पहुंचा और बस के इंतजार में खड़ा हो गया. तभी वहां एक दुर्घटना घट गई…

एक तेज रफ्तार बाइक और एक ट्रक में जोरदार टक्कर हो गई. लहूलुहान हो कर बाइकसवार सड़क पर गिर कर छटपटाने लगा जबकि दुर्घटना के बाद चालक ट्रक से कूद कर फरार हो गया. घटना के बाद लोगों की भीड़ जमा हो गई. कुछ लोग घायल का अपनी मोबाइल से उस की वीडियो बनाने लगे। वहीं कुछ खड़े लोग घायल की छटपटाहट का तमाशा देख रहे थे.

लेकिन विनायक को घायल की तड़प और छटपटाहट देखी नहीं गई. मौत के भय से उस का कलेजा कांप गया. अचानक उस ने एक वाहन को रोका और छटपटा रहे युवक को फौरन ले कर पास के अस्पताल में भर्ती कराया. उस के बाद वह अपनी ड्यूटी पर चला गया.

बैंक बंद होने के बाद विनायक अपने घर वापस जा रहा था कि तभी उस के मन में विचार आया कि अस्पताल जा कर घायल का हालचाल पूछ ले. जब वह अस्पताल पहुंचा तो देखा कि बैड पर घायल युवक मृत पड़ा हुआ था. बगल में उस की पत्नी और बेटी रोरो कर बेजार हुई जा रही थीं. कोई उन का आंसू पोंछने वाला भी नहीं था. मानवता को शर्मसार करने वाले उस दृश्य को देख कर उस का दिल पिघल गया. उस ने पास बैठ कर मृतक की पत्नी और पुत्री को धैर्य और हौसला रखने की नसीहत दी. कहा,”जो होना था वह तो हो गया. दुनिया छोड़ कर जाने वाले कभी लौट कर तो नहीं आते, लेकिन उस की यादें सदा हमारे साथ रहती हैं. आप पोस्टमार्टम के बाद मृतक के अंतिम संस्कार की तैयारी करें. आप मुझे अपने संबंधियों का मोबाइल नंबर दें, उन्हें घटना की सूचना दे कर अस्पताल में बुलाता हूं.”

“घटना की सूचना सब को है, लेकिन अभी तक कोई आया नहीं, आप हमारी मदद करें,” मृतक की पत्नी ने अपने आंखों से बहते हुए आंसूओं को अपनी आंचल से पोंछा और कहा.

“मैं…” अचानक वह हकलाया.

“हमारी दुर्दशा आप देख रहे हैं, कृपया हमारी सहायता करें,” दीनहीन भावना से मृतक की पत्नी ने उसे व्याकुल नेत्रों से देखते हुए आग्रह किया.

“ठीक है.”

मृतक के अंतिम संस्कार के बाद 30 वर्षीय विधवा विमला से विनायक का एक अनाम रिश्ता बन गया. मृतक मनोज विमला का पति था और उस के देह से एकमात्र संतान उस की 16 वर्षीय बेटी वंदना थी.

मनोज शराब के नशे में बाइक चलाने के कारण दुर्घटना का शिकार हुआ. वह अव्वल दरजे का पियक्कड़ था, जिस के कारण उस के संगेसंबंधी और मोहल्ले के लोग परेशान रहते थे. वह सब के साथ गालीगलौच और मारपीट करते रहता था. मनोज का अव्यवहारिक आचरण उस के सामाजिक बहिष्कार का कारण था. यही वजह थी कि उस की मौत पर भी कोई देखने तक नहीं पहुंचा.

मनुष्य हर वक्त अपने नियमों के बंधन में बंध कर नहीं रह सकता। वह कितना भी अभिमानी और स्वाभिमानी क्यों न हो, लेकिन सामाजिक सरोकार के आगे नतमस्तक हो जाता है. सामने आई किसी विपत्ति से विमुख नहीं हो सकता है. वहां का परिवेश और परिस्थितियां उसे अपना गुलाम बना लेती हैं. यही स्थिति विनायक के साथ हुई.

महिलाओं से नफरत करने वाला विनायक अचानक बदल गया था. उस के दिलोदिमाग पर विमला को देखने और उस से मिलने का एक नशा सा छा गया. उसे जब भी मौका मिलता, विमला से मिलने उस के घर पर पहुंच जाता था.

लेकिन विमला उस से दूर रहने की कोशिश करती. वह एक तो विधवा दूसरे सामाजिक मर्यादा के भय से स्वाभाविक रूप से मिल नहीं पाती. कोई न कोई बहाना बना कर उसे टरका देती. लेकिन हर बार वह ऐसा नहीं कर पाती. कभीकभी बाजार से लौटते समय विनायक से भेंट हो जाती तो दोनों किसी रेस्तरां में कौफी पी लेते और एकदूसरे का हालचाल पूछ लेते.

औपचारिक मुलाकातों का सिलसिला दोनों के बीच लगभग 2 सालों तक चला. उस के बाद दोनों एक अच्छे मित्र बन गए थे. अब वे अपने दुखसुख को आपस में साझा करते और हर समस्या का हल अपनी सूझबूझ से निकालते थे.

एक बार विनायक के दिल से आवाज निकली,’विमला ही तुम्हारी जीवनसंगिनी बन सकती है. वह तो तुम से प्यार भी करती है. विमला तुम्हारी तलाकशुदा पत्नी रंभा से लाख दरजा नेकदिल और भद्र महिला है…’

विनायक फिर से सोचने लग जाता,’कहीं विमला तुम्हारी पत्नी रंभा की तरह अव्यवहारिक और छिछोरी निकली तो जिंदगी बद से बदतर हो जाएगी. स्वर्ग की तलाश में कहीं नरक में न फंस जाओ…’

वहीं दूसरे ही पल उस के दिल ने कहा,’नहींनहीं, विमला ऐसा नहीं कर सकती है. उसे वह 1-2 सालों से जानता है, जब उस के पति मनोज की मौत ऐक्सीडैंट में हुई थी. अभी विमला के विचार व व्यवहार में कोई खोट नहीं है. वह हमेशा रंभा की तुलना में गंभीर और शालीन लगती है.’

विनायक फिर सोचने लगा,’अभी तक जवान विमला के शादी नहीं करने की वजह उस की बेटी वंदना हो सकती है. शायद वह उस की शादी के बाद ही अपने बारे में कुछ सोचे.’

जब वंदना अपने घर पहुंची तो देखा कि उस की मां सोफे पर बैठे बैंक वाले विनायक अंकल से हंसहंस कर बातें कर रही थी. सामने ड्रैसिंग टेबल पर एक तश्तरी में कुछ नमकीन और बगल में चाय का 2 कप रखा हुआ था। चाय पीने के बाद थोड़ी सी चाय बची हुई थी.

यह सब देख कर पता नहीं क्यों उसे अच्छा नहीं लगा. वह बिना कुछ बोले चुपचाप अपने कमरे में चली गई. हालांकि वंदना को अपने कमरे में जाते हुए देख कर उस की मां विमला और विनायक पर कोई असर नहीं पड़ा. वे पहले की भांति अपनी बातें जारी रखे हुए थे.

वंदना को अपने घर में विनायक अंकल का आना और उस की मां से बातें करना बिलकुल पसंद नहीं था. उस को लगता था कि उस की मां अंकल के प्यार के झांसे में आ कर उस से दूर होती जा रही है. वह दिनरात अपनेआप में खोई रहती. उसे लगता कि मां को यह भी भान नहीं कि घर में एक जवान बेटी शादी योग्य है.

वंदना अपने कमरे में खड़ीखड़ी इन्हीं बातों में तल्लीन थी कि तभी वहां उस की मां आ गई और तल्ख आवाज में बेटी को नसीहत देने लगी,”यह क्या बदतमीजी है? घर आए मेहमान से हैलोहाय भी नहीं। जैसेजैसे तेरी उम्र बढ़ती जा रही है, वैसेवैसे तेरी अक्ल घास चरने लगी है. आगे तू क्या करेगी मुझे नहीं पता।”

“कौन सा मेहमान…जो रोज तुम से मिलने आता है…ऐसे लोग मुझे नहीं भाते। वैसे लोगों से दूर रहना ही बेहतर है, जो औरतों और लड़कियों को घूरते रहते हैं,” वंदना ने अपने गुस्से पर काबू रखते हुए शांत स्वर में जवाब दिया.

“तू मर्यादा की हदें पार कर रही है. 2 पैसे कमाने क्या लगी है, मेरे सिर चढ़ कर बोलने लगी है. वे दिन भूल गईं जब ऐक्सीडैंट में तेरे पिता की मौत हो गई थी और आगेपीछे देखने वाला कोई नहीं था… अपनेपराए सभी दरकिनार हो गए थे. उस विषम परिस्थितियों में विनायक बाबू ने हमारी आर्थिक, मानसिक और सामाजिक मदद की थी, वरना हमारा अस्तित्व ही मिट गया होता…और तू ऐसे व्यक्ति पर चरित्रहीनता का लांछन लगा रही है…” इतना बोलतेबोलते विमला की आंखें भर आईं और वह रोने लगी.

“इस एहसान के पीछे जरूर कोई रहस्य होगा. आज के युग में कोई ऐसे ही किसी की मदद नहीं करता। आसपड़ोस में तेरी कितनी इज्जत है, अपने किसी शुभचिंतक से पूछ लो,” वंदना गुस्से में बोली.

“अरे बेरहम लड़की, मुझ पर थोड़ा सा रहम तो कर. कोई और बोले या न बोले, लेकिन तू मुझे नंगा करने पर तुली है.”

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