मैंने मिठाई का एक टुकड़ा उठाया और अनमने से मुंह में डाल लिया. सविता चाय का कप मेरी ओर बढ़ाते हुए बोली, ‘‘आप को पता है, कालोनी में हमारे अलावा बाकी सब के पास कार है,’’ ‘‘यानी कि हमीं लोग बेकार हैं?’’ मैं ने हंसने की कोशिश की. ‘‘छोडि़ए भी, यह मजाक की बात नहीं है. आप ने कभी भी मेरी बात को गंभीरता से लिया है?’’ ‘‘क्यों नहीं लिया, मैं भी तो कोशिश कर रहा हूं कि कार जल्दी ही खरीद ली जाए, मगर...’’ ‘‘बसबस, रहने दीजिए, आप तो बस, कोशिश ही करते रहेंगे, कालोनी में सब के यहां कार आ चुकी है.’’ ‘‘जरूर आ चुकी है, मगर तुम जानती हो, वे सब व्यापारी या सरकारी अफसर हैं, लेकिन मैं तो एक साधारण सा वकील हूं. फिर भी...’’ ‘‘छोटे देवरजी कौन से व्यापारी हैं?
साधारण से डाक्टर ही तो हैं, फिर भी देवरानी को कार में घूमते हुए 2 साल हो गए और आप हैं कि...’’ ‘‘अरे, क्या बात करती हो...जीतू, मेरा छोटा भाई, एक काबिल सर्जन है. 10 सालों में उस ने कितना नाम कमा लिया है.’’ ‘‘छोड़ो भी, आप को भी तो वकालत करते 15 साल हो गए हैं, मगर अभी तक लेदे कर एक फ्लैट ही तो खरीद पाए हैं.’’ ‘‘ऐसा न कहो. सबकुछ तो है अपने पास. टीवी, फ्रिज, एसी, कूलर, स्कूटर, वाश्ंिग मशीन, गहने, कपड़े...’’ ‘‘ठीक है, ठीक है. ये चीजें तो सब के यहां होती हैं. जरा सोचिए, आप कार में कोर्ट जाएंगे तो लोगों पर रोब पड़ेगा और बच्चे भी काफी खुश होंगे.’’ ‘‘हूं, तुम ठीक कहती हो,’’ मैं ने सहमति में सिर हिलाया. फिर अलमारी के लौकर से बैंक की पासबुक निकाल लाया, ‘‘सविता, बैंक खाते में 1 लाख रुपए हैं, चाहें तो पुरानी गाड़ी खरीद सकते हैं.’’ ‘‘नहीं प्रेम, पुरानी गाड़ी नहीं लेंगे. गाड़ी तो नई ही होनी चाहिए.’’ ‘‘ठीक है. फिर तो और रुपयों की व्यवस्था करनी होगी.’’