तुम ठीक कहती हो,’’ मैं ने सहमति में सिर हिलाया. फिर अलमारी के लौकर से बैंक की पासबुक निकाल लाया, ‘‘सविता, बैंक खाते में 1 लाख रुपए हैं, चाहें तो पुरानी गाड़ी खरीद सकते हैं.’’ ‘‘नहीं प्रेम, पुरानी गाड़ी नहीं लेंगे. गाड़ी तो नई ही होनी चाहिए.’’ ‘‘ठीक है. फिर तो और रुपयों की व्यवस्था करनी होगी.’’
मैं सोच में डूब गया. पत्नी भी कुछ देर तक सोचती रही. फिर जैसे अचानक कुछ याद आ गया हो, मेरे करीब आते हुए बोली, ‘‘आप के नाम से तो गांव में कुछ जमीन भी है न?’’ ‘‘हां, 5-6 एकड़ के करीब है तो सही, मगर बाबूजी के नाम से है. अगर कहूं तो वे उसे कल ही मेरे नाम कर देंगे.’’ ‘‘जमीन कितने की होगी?’’ ‘‘पता नहीं, वहां जा कर ही मालूम होगा.’’ सविता खुश हो गई, ‘‘फिर क्या सोचना, बेच दीजिए इस जमीन को.’’ ‘‘सो तो ठीक है, मगर इतने सालों बाद गांव जा कर यह सब करना क्या उचित होगा? जगदीश भैया क्या सोचेंगे?’’ ‘‘सोचेंगे क्या, हम उन की जमीन थोड़े ही ले रहे हैं. अपने हिस्से की जमीन बेचेंगे. वैसे भी बेकार ही तो पड़ी है.’’ समस्या का हल निकल चुका था. बस, थोड़े दिनों के लिए गांव जा कर यह सब निबटा देना था.