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कल रात से ही वह अपनी सास से हुई बहस को ले कर परेशान थी. उस पर सोते वक्त पति के सामने अपना दुखड़ा रो कर मन हलका करना चाहा तो उस के मुंह से रमा सहाय का नाम सुन कर पति का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. सारी रात आंखों में ही कुछ समझते हुए और कुछ न समझ आने पर उस पर गहन विचार करते हुए उस ने गुजार दी.

सुबह उठी तो आंखें बोझिल हो रही थीं और सिर भारी हुआ जा रहा था. रात को सास और फिर पति के संग हुई बहस की वजह से आज उस का मन किसी से भी बात करने को न हो रहा था. न चाहते हुए भी भारी मन से पति के लिए टिफिन बना कर उन्हें नौकरी के लिए विदा किया और फिर आंखें बंद कर बैठ गई. वैसे भी इंसान को अपनी समस्याओं का कोई हल नहीं मिलता तो अंतिम सहारे के रूप में वह आंख बंद कर प्रकृति के बारे में सोचने लगता है.

“अब बंद भी कर यह नाटक और रसोई की तैयारी कर.” तभी उस के कानों में तीखा स्वर गूंजा.

अपनी सास की बात का कोई जवाब न दे कर वह हाथ जोड़ कर अपनी जगह से खड़ी हो गई. सास से उस की नजरें मिलीं. एक क्षण वह वहां रुकी और फिर चुपचाप रसोई में आ गई. उस के वहां से उठते ही उस की सास अपनी रोज की क्रिया में मग्न हो गई.

अभी भी कल वाली ही बात पर विचार कर वह अनमनी सी रसोई के प्लेटफौर्म के पास खड़ी हुई थी. तभी रसोई के प्लेटफौर्म की बगल वाली खिड़की से उस की नजर बाहर जा कर टिक गई. रसोईघर के बाहर खाली पड़ी जगह में पड़े अनुपयोगी सामान के ढेर पर कुछ दिनों से कबूतर का एक जोड़ा तिनकातिनका जोड़ कर घोंसला बनाने की कोशिश कर रहा था लेकिन थोड़े से तिनके इकट्ठे करने के बाद दोनों में न जाने किस बात को ले कर जोरजोर से अपने पंख फड़फड़ाते व सारे तिनके बिखर कर जमीन पर आ गिरते. जैसेतैसे आपस में लड़तेझगड़ते और फिर एक हो कर आखिरकार घोंसला तो उन्होंने तैयार कर ही लिया था और कबूतरी घोंसले में अपने अंडों को सेती हुई कई दिनों से तपस्यारत इत्मीनान से बैठी हुई थी. उसे आज घोंसले में कुछ हलचल नजर आई. अपनी जिज्ञासा मिटाने के लिए वह खिड़की के पास के दरवाजे से बाहर गई और अपने पैरों के पंजों को ऊंचा कर घोंसले में नजर डालने लगी. उस की इस हरकत पर घोंसले में बैठी हुई कबूतरी सहम कर अपनी जगह से थोड़ी सी हिली. 2 अंडों में से एक फूट चुका था और एक नन्हा सा बच्चा मांस के पिंड के रूप में कबूतरी से चिपका हुआ बैठा था. सहसा उस के चेहरे पर छाई उदासी की लकीरों ने खुदबखुद मुड़ कर मुसकराहट का रूप ले लिया. उस ने अपना हाथ बढ़ा कर कबूतरी को सहलाना चाहा लेकिन कबूतरी उस के इस प्रयास को अपने और अपने बच्चे के लिए घातक जान कर गला फुला कर अपनी छोटी सी चोंच से उसे दूर खदेड़ने का यत्न करने लगी.

एक छोटा सा नजारा उस के मन को अपार खुशी से भर गया. वह वापस अंदर रसोई में आने को मुड़ी और उस के होंठों से अनायस ही उस का पसंदीदा गाना, मधुर आवाज के साथ, निकल कर उस के मन के तारों को झंकृत करने लगा.

“न समय देखती है न बड़ों का लिहाज करती है. यह कोई समय है फिल्मी गाना गाने का? गाना ही है तो भजन गा तो मेरी पूजा भी सफल हो जाए,” सास का यह नाराजगीभरा स्वर सुन कर उस की आवाज बंद होंठों के अंदर सिमट गई और चेहरे पर कुछ देर पहले छाई हुई मुसकराहट को उदासी ने वापस अपनी आगोश में समा लिया. हाथ धो कर उस ने फ्रिज खोला और उस में रखा पत्तागोभी निकाल कर अनमने भाव से उसे काटने लगी.

तभी डोरबैल बजने पर उस ने जा कर दरवाजा खोला तो अपने सामने एक अपरिचित व्यक्ति को खड़ा पा कर अचरज से उस से कुछ पूछने जा ही रही थी कि तभी पीछे से आ कर उस की सास ने उस व्यक्ति को नमस्ते करते हुए अंदर आने को कहा. उस ने भगवा धोतीकुरता पहने उस व्यक्ति को गौर से देखा. उस के माथे पर लंबा तिलक लगा हुआ था और उस ने गले में रुद्राक्ष की माला पहन रखी हुई थी. उस की सास उस पंडितवेशधारी व्यक्ति से कुछ दूरी बना कर उस के साथ सोफे पर बैठ गई और उसे पानी लाने के लिए कहा.

पानी देने के बाद खाली गिलास ले कर वह अंदर जाने को हुई तो सास ने उसे टोका, “यहां पंडितजी के पास बैठ. ये बहुत बड़े ज्ञानी है और हाथ देख कर सारी समस्याओं का हल बता देते हैं.”

सास की बात सुन कर वह चौंक गई. उस ने मना करना चाहा लेकिन फिर कल रात परिवार में हुई अनबन को याद कर बात को और आगे न बढ़ाने के लिए वह पंडितजी से कुछ दूरी बना कर उन के पास बैठ गई. पंडितजी ने मुसकरा कर उस की तरफ देखा और उसे अपना सीधा हाथ आगे बढ़ाने को कहा. उस ने झिझकते हुए अपने सीधे हाथ की हथेली उन के आगे कर दी. पंडितजी ने उस की हथेली को छूते हुए उस पर हलका सा दबाव डाला. उस ने अपनी हथेली पीछे करनी चाही पर उस के ऐसा करने से पहले ही पंडित उस की हथेली पर अपनी उंगलिया फेरते हुए उस की सास से पूछने लगे, “तो यह आप की बहू है?”

 

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