कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

“देखो नेहा, तुम पिछले 10 दिनों से इस बात को ले कर घर का माहौल तंग बनाए हुए हो. कल रात से तो हद ही कर दी है तुम ने. मेरे पूछे बिना तुम ने उस वकील ...क्या नाम था... हां ... विभा सहाय को अपने घर के मामले में डाला तब मैं ने कुछ नहीं कहा लेकिन अब तो पानी सिर से ऊपर जा रहा है. मम्मी कह रही थीं तुम ने आज सुबह पंडितजी को भी भलाबुरा कह कर उन की हाजिरी में मम्मी की इन्सल्ट की. अपनी औकात में रहना सीखो वरना मुझे भी अपनी उंगली टेढ़ी करना आती है,” राकेश ने जला देने वाली नजर उस की तरफ डाली तो एक पल को वह सहम गई लेकिन फिर अगले ही क्षण विभा सहाय की दी गई सलाह उस के जेहन में तैर गई और वह पूरे आत्मविश्वास से बोलने लगी, “ठीक है, मैं अपनी औकात में ही रहूंगी लेकिन मेरी औकात क्या है, यह मैं खुद तय करूंगी.”

“तुम्हारे कहने का मतलब क्या है? धमकी दे रही हो या समझौता कर रही हो?” राकेश ने उस का जवाब सुन कर शंकाभरी नजर उस पर डाली.

उस ने अब एक ठंडी आह भरी और आगे कहा, “जिंदगी में पैसा झगड़ा करवाता है. यह बात सुन रखी थी लेकिन अब अनुभव भी कर ली है. पापा के मुझे दिए गए पैसों को ले कर हमारे घर की सुखशांति भंग हो रही है, तो सोच रही हूं उन का दिया सारा पैसा उन्हें वापस कर दूं. इस से घर में शांति तो बनी रहेगी. नया मकान आज नहीं तो दसपन्द्रह साल बाद तुम खुद अपनी कमाई से ले ही लोगे.”

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...