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कुछ दिन तक तो उसे इन तथाकथित स्वामीजी की बेतुकी बातें, बेहूदी निगाहें व उपस्थिति ?ोलनी ही पड़ेंगी. स्वामीजी को सोफे पर बैठा कर नरेन जब कमरे में कपड़े बदलने गया तो वह पीछेपीछे चली आई. ‘नरेन, कौन हैं ये दोनों, कहां से पकड़ लाए हो इन को?’ ‘तमीज से बात करो, रवीना. ऐसे महान लोगों का अपमान करना तुम्हें शोभा नहीं देता.’ ‘लौटते हुए स्वामीजी के आश्रम में चला गया था. स्वामीजी की सेहत कुछ ठीक नहीं चल रही है, इसलिए पहाड़ी स्थान पर हवा बदलने के लिए आ गए. उन की सेवा में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए.’

यह सुन कर रवीना पसीनापसीना हो गई, ‘कुछ दिन का क्या मतलब है. तुम औफिस चले जाओगे, बच्चे स्कूल और मैं इन 2 मुस्टंडों के साथ घर पर अकेली रहूंगी? मु?ो डर लगता है ऐसे बाबाओं से. इन के रहने का बंदोबस्त कहीं घर से बाहर करो,’ रवीना गुस्से में बोली. ‘वे यहीं रहेंगे घर पर,’ नरेन रवीना के गुस्से को दरकिनार कर तैश में बोला, ‘औरतों की तो आदत ही होती है हर बात पर शिकायत करने की. मु?ा में दूसरा कोई व्यसन नहीं. तुम्हें मेरी ये सात्विक आदतें भी बरदाश्त नहीं होतीं. आखिर यह मेरा भी घर है.’ ‘घर तो मेरा भी है,’ रवीना तल्खी से बोली, ‘जब मैं तुम से बिना पूछे कुछ नहीं करती तो तुम क्यों करते हो?’ ‘ऐसा क्या कर दिया मैं ने?’ नरेन का क्रोधित स्वर ऊंचा होने लगा, ‘हर बात पर तुम्हारी टोकाटाकी मु?ो पसंद नहीं.

जा कर स्वामीजी के लिए खानपान व स्वागतसत्कार का इंतजाम करो,’ कह कर नरेन बातचीत पर पूर्णविराम लगा बाहर निकल गया. रवीना के सामने कोई चारा नहीं था, वह किचन में चली गई. नरेन का दिमाग अनेक अंधविश्वासों व विषमताओं से भरा था. वह अकसर ही ऐसे लोगों के संपर्क में रहता और उन के बताए टोटके घर में आजमाता रहता, साथ ही घर में सब को ऐसा करने के लिए मजबूर करता. यह देख रवीना परेशान हो जाती. उसे अपने बच्चों को इन सब बातों से दूर रखने में मुश्किल हो रही थी. घर का नजारा तब और भी दर्शनीय हो जाता जब उस की सास उन के साथ रहने आती. सासुमां सुबह की दिनचर्या कर टीवी पर धार्मिक कार्यक्रम चलवा देतीं.

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