कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

जमीन पर सोएं, साधारण खाना खाएं, गरीबों की मदद करें, यहां क्या कर रहे हैं. उन्हें गाडि़यां, आलीशान घर, सुखसाधन संपन्न भक्त की भक्ति ही क्यों प्रभावित करती है. स्वामीजी हैं तो सांसारिक मोहमाया का त्याग क्यों नहीं कर देते. लेकिन मन मसोस कर रह जाती. दूसरे दिन वह घर के काम से निबट, नहाधो कर निकली ही थी कि उस की 18 साला भतीजी पावनी का फोन आया कि उस की 2-3 दिन की छुट्टी है और वह उस के पास रहने आ रही है. एक घंटे बाद पावनी पहुंच गई. वह तो दोनों बच्चों के साथ मिल कर घर का कोनाकोना हिला देती थी. चंचल हिरनी जैसी बेहद खूबसूरत पावनी बरसाती नदी जैसी हर वक्त उफनतीबहती रहती थी. आज भी उस के आने से घर में एकदम शोरशराबे का बवंडर उठ गया, ‘‘अरे, जरा धीरे पावनी,’’ रवीना उस के होंठों पर हाथ रखती हुई बोली.

‘‘पर, क्यों बूआ, कर्फ्यू लगा है क्या?’’ ‘‘हां दी,’’ स्वामीजी आए हैं, रवीना के बेटे शमिक ने अपनी तरफ से बहुत धीरे से जानकारी दी पर शायद पड़ोसियों ने भी सुन ली हो. ‘‘अरे वाह, स्वामीजी,’’ पावनी खुशी से चीखी, ‘‘कहां हैं वे बूआ, मैं ने कभी सचमुच के स्वामीजी नहीं देखे. टीवी पर ही देखे हैं.’’ यह सुन कर रवीना की हंसी छूट गई. ‘‘मैं देख कर आती हूं. ऊपर हैं न?’’ रवीना जब तक कुछ कहती, तब तक चीखतेचिल्लाते तीनों बच्चे ऊपर भाग गए. रवीना सिर पकड़ कर बैठ गई. ‘अब हो गई स्वामीजी के स्वामित्व की छुट्टी...’ पर तीनों बच्चे जिस तेजी से गए, उसी तेजी से दनदनाते हुए वापस आ गए. ‘‘बूआ, वहां तो आम से 2 नंगधड़ंग आदमी, भगवा तहमत लपेटे बिस्तर पर लेटे हैं. उन में स्वामीजी जैसा तो कुछ भी नहीं लग रहा?’’ ‘‘आम आदमी के दाढ़ी नहीं होती, दी. उन की दाड़ी है,’’ शमिक ने अपना ज्ञान बघारा. ‘‘हां, दाढ़ी तो थी,’’ पावनी कुछ सोचती हुई बोली, ‘‘स्वामीजी क्या ऐसे ही होते हैं?’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...