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मौसम के बदलते मिजाज के कारण सुबह की हवा सर्द होने लगी थी. लेकिन मौसम साफ होने के कारण गुनगुनी धूप सुहानी लग रही थी. संध्या अपनी सुबह की चाय के साथ अखबार का आनंद लेने के लिए बालकनी में पड़ी कुरसी खींच कर बैठने ही लगी कि उस का मोबाइल बज उठा. मोबाइल लेने को वह उठती, उस से पहले चंद्रा फोन ले कर पहुंच गई.

‘इतनी सुबहसुबह किस का फोन आ गया?’ अपना चश्मा ठीक करते हुए संध्या बुदबुदाई. लेकिन जैसे ही स्क्रीन पर अपूर्व का नाम देखा, उस का चेहरा चमक उठा. लेकिन दूसरे ही पल उस ने एक छोटी बच्ची की तरह मुंह फुला लिया.

“प्रणाम मां. कैसी हैं आप?” उधर से अपूर्व बोला. लेकिन संध्या ने कुछ जवाब नहीं दिया. “बात नहीं करेंगी मां, गुस्सा हैं अभी भी मुझ से?”

“मैं होती ही कौन हूं तुम से गुस्सा करने वाली,” फोन को स्पीकर मोड पर रख ठंडी चाय सुड़कती हुई संध्या बोली. संध्या की आदत थी चाय ठंडी कर के पीने की.

“लेकिन मां, सुनिए तो,” अपूर्व को हंसी भी आई कि उस की मां सच में बच्ची ही है, “अच्छा, यह तो बताइए कि आप के स्कूल का काम कैसा चल रहा है?” अपूर्व ने बात को बदलना चाहा.

“जैसा भी चल रहा हो, तुम्हें क्या? अगर तुम्हें मां की इतनी ही फिक्र होती न, तो फोन करता. यों तरसाता नहीं मुझे. पता भी है, कान तरस गए तेरी आवाज सुनने को. और कहता है गुस्सा हो मां. हां हूं गुस्सा,” बोलती हुई संध्या का गला भर आया.

“अच्छा, सौरी मां,माफ कर दो मुझे,” कान पकड़ते हुए अपूर्व बोला. लेकिन वह अपनी मां को कैसे बताता कि उस का ऐक्सिडैंट हो गया था, इस कारण वह संध्या से बात नहीं कर पा रहा था. बात करता तो हमेशा की तरह अपनी कसम खिला कर पूछती कि कैसा है वह? तबीयत तो ठीक है उस की? खुद का ध्यान तो रख रहा है न वह? उस से भी मन न भरता, तो वीडियो कौलिंग करने को कहती. फिर तो सब पता चल ही जाता न. इसलिए अपूर्व ने इतने दिनों तक अपनी मां से बात नहीं की और झूठ बोल गया कि काम की व्यस्तता के चलते उसे फोन नहीं कर पाया.

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