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उन दोनों के बीच की दूरियां बढ़ती जा रही थीं. उसे देररात तक पढ़ने का शौक था और उस के प्रोफैशन के लिए भी पढ़ना जरूरी था. अविरल के लिए उस की अंकशायिनी बनने का मन ही नहीं होता था. इसलिए भी अविरल का फ्रस्ट्रैशन बढ़ता जा रहा था. समय बीतने के साथ वह मांजी और अविरल के स्वभाव व खानपान को अच्छी तरह से समझ चुकी थी. वह मांजी की दवा वगैरह का पूरा खयाल रखती और उस ने एक फुलटाइम मेड रख दी थी. सुबहशाम मांजी के पास थोड़ी देर बैठ कर उन का हालचाल पूछती. अब मांजी उस से बहुत खुश रहतीं. वह कोशिश करती कि अविरल की पसंद का खाना बनवाए. संभव होता तो वह डाइनिंग टेबल पर उसे खाना भी सर्व कर देती. लेकिन वह महसूस करती थी कि अविरल की अपेक्षाएं बढ़ती ही जा रही हैं. उस का पुरुषोचित अहं बढ़ता ही जा रहा था. वह उस पर अधिकार जमा कर उस पर शासन करने की कोशिश करने लगा था. बातबेबात क्रोधित हो कर चीखनाचिल्लाना शुरू कर दिया था. शादी उस के कैरियर में बाधा बनती जा रही है.

शुरू के दिनों में तो वह उस की बातों पर ध्यान देती और उस की पसंद को ध्यान में रख कर काम करने की कोशिश करती पर जब उस के हर काम में टोकाटाकी और ज्यादा दखलंदाजी होने लगी तो उस ने चुप रह प्रतिकार करना शुरू कर दिया था. अपने मन के कपड़े पहनती, अपने मन का खाती. मांबेटे दोनों को उस ने नौकरों के जिम्मे कर दिया था. यदि अविरल कोई शिकायत करते तो साफ शब्दों में कह देती, ‘मेरे पास इन कामों के लिए फुरसत नहीं है.’

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