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शाम के 5 बजे थे. आज अविरल औफिस से जल्दी आ गया था. पतिपत्नी दोनों बैठ कर कौफी पी रहे थे. तभी अविरल ने कहा, ‘‘आरोही, अगले महीने 5 दिनों की छुट्टी है, कश्मीर चलते हैं. एक दिन डल लेक में सैर करेंगे. बचपन से ही मुझे स्नोफौल देखने की बहुत बड़ी तमन्ना है. मैं ने वेदर फोरकास्ट में देखा था, श्रीनगर में स्नोफौल बता रहा है.’’ वह उम्मीदभरी नजरों से पत्नी के चेहरे को देख रहा था.

आरोही आदतन अपने मोबाइल पर नजरें लगाए कुछ देख रही थी. अविरल आईटी की एक मल्टीनैशनल कंपनी में सीनियर मैनेजर था. उस की औफिस की व्यस्तता लगातार बनी रहती थी. पत्नी डा. आरोही सर्जन थी. वह एक बड़े हौस्पिटल में डाक्टर थी. उस ने अपने घर पर भी क्लीनिक खोल रखा था. इसलिए यहां भी मरीज आते रहते थे. दोनों पतिपत्नी अपनीअपनी दिनचर्या में बहुत बिजी रहते थे.

वह धीरे से बुदबुदाई, ‘‘क्या तुम कुछ कह रहे थे?’’

‘‘आरोही, तुम्हें भी सर्जरी से ब्रेक की जरूरत है और मैं भी 2-4 दिनों का ब्रेक चाहता हूं. इसलिए मैं ने पहले ही टिकट और होटल में रूम की बुकिंग करवा ली है.’’

वह पति की बात को समझने की कोशिश कर रही थी क्योंकि उस समय उस का ध्यान अपने फोन पर था.

‘‘आजकल लगता है कि लोग छुट्टियों से पहले से ही प्लानिंग कर के रखते हैं. बड़ी मुश्किल से रैडिसन में रूम मिल पाया. एअरलाइंस तो छुट्टी के समय टिकट का चारगुना दाम बढ़ा देती हैं,’’ अविरल बोल रहा था.

‘‘कहां की बुकिंग की बात कर रहे हो?’’

‘‘तुम से तो बात करने के लिए लगता है कि कुछ दिनों के बाद मुझे भी पहले अपौइंटमैंट लेना पड़ेगा,’’ वह रोषभरे स्वर में बोला, ‘‘श्रीनगर.’’

‘‘श्रीनगर, वह भी दिसंबर में, न बाबा न. मेरी तो कुल्फी दिल्ली में ही जमी रहती थी और तुम कश्मीर की बात कर रहे हो.’’

‘‘तुम्हारे साथ तो कभी कोई छुट्टी का प्लान करना ही मुश्किल रहता है. कहीं लंबा जाने का सोच ही नहीं सकते,’’ अविरल मुंह बना कर बोला.

अविरल के मुंह से श्रीनगर का नाम सुनते ही आरोही का मूड औफ हो गया था, ‘‘जब तुम जानते हो कि पहाड़ों पर जाने से मेरी तबीयत खराब हो जाती है, फिर भी तुम हिल्स पर ही जाने का प्रोग्राम बनाते हो. तुम्हें मेरी इच्छा से कोई मतलब ही नहीं रहता. मैं ने कितनी बार तुम से कहा है कि मुझे महाबलीपुरम जाना है. समुद्र के किनारे लहरों का शोर, उन का अनवरत संघर्ष देख कर मुझे जीवन जीने की ऊर्जा सी मिलती है. लहरों की गर्जन मुझे बहुत आकर्षित करती है.’’

‘‘हद करती हो, रहती मुंबई में हो और सी बीच के लिए महाबलीपुरम जाना है?’’

‘‘तुम्हें कुछ पता भी है, यह शहर तमिलनाडु के सब से सुंदर और लोकप्रिय शहरों में गिना जाता है. यहां 7वीं और 8वीं शताब्दी में पल्लववंश के राजाओं ने द्रविड़ शैली के नक्काशीदार अद्भुत भवन बनवाए थे, वे तुम्हें दिखाना चाहती हूं. मुझ से बिना पूछे तुम ने क्यों बुकिंग करवाई जबकि तुम्हें मालूम है कि मुझे पहाड़ों पर जाना पसंद ही नहीं,’’ आरोही उत्साह के साथ बोली.

‘‘क्या तुम ने कसम खा रखी है कि तुम वहीं का प्रोग्राम बनाओगी जहां मुझे जाने में परेशानी होने वाली है?’’ अविरल नाराजगी के साथ बोला. उन दोनों की शादी हुए 3 साल हो चुके थे. दोनों की पसंद बिलकुल अलगअलग थी. इसी वजह से आपस में अकसर नोकझोंक हो जाया करती थी और फिर दोनों के बीच आपस में कुछ दिनों तक के लिए बोलचाल बंद हो जाती थी.

आरोही ने गाड़ी की चाबी उठाई और बोली, ‘‘अब बंद करो इस टौपिक को. कहीं नहीं जाएंगे. आओ, बाहर मौसम कितना सुहावना हो रहा है, चलते हैं, कहीं आइसक्रीम खा कर आते हैं. थोड़ा ठंडी हवा में बैठेंगे. आज के औपरेशन ने मुझे बिलकुल थका कर रख दिया है.’’ अविरल ने साफ मना कर दिया, ‘‘मुझे तुम्हारी तरह भटकना पसंद नहीं.’’

इस के बाद लगभग 15 दिनों तक दोनों के बीच बोलचाल बंद रही. एक दिन यों ही समझौता करने के लिए आरोही पति से कहने लगी, ‘‘अविरल, हमारे यहां लोग सर्जरी से बचने के लिए बाबाओं और हकीमों के पास चक्कर काटते रहते हैं और जब बीमारी बढ़ कर लाइलाज हो जाती है तो डाक्टर से बारबार पूछते हैं कि डाक्टर, ठीक तो हो जाएंगे न? मरीज के पत्नी, बेटे के चेहरे की मायूसी देख कर मेरा दिल दुख जाता है. अवि प्लीज, थिएटर में अमोल पालेकर का ड्रामा है. मैं ने औनलाइन टिकट बुक कर लिए हैं. रात में 8 से 10 तक का समय है.’’

‘‘मेरी तो जरूरी मीटिंग है.’’

‘‘उफ, अविरल तुम कितने बदल गए हो, पहले मेरे साथ आइसक्रीम पार्लर भी उछलतेकूदते चल देते थे. अब तो जहां कहीं भी चलने को कहती हूं, तुरंत मना कर देते हो.’’

‘‘बस भी करो, आरोही. मैं तो तुम्हें खुश करने के लिए तुम्हारे साथ चल देता था. मुझे कभी भी यहांवहां भटकना पसंद नहीं था.’’

‘‘शायद, तुम्हें याद भी नहीं है कि आज मेरा बर्थडे है. सुबह से मैं तुम्हारे मुंह से ‘हैप्पी बर्थडे’ सुनने का इंतजार कर रही थी लेकिन छोड़ो, जब तुम्हें कोई इंटरैस्ट नहीं तो अकेला चना कहां तक भाड़ झोंकता रहेगा,’’ कहते हुए उस ने तेजी से कमरे के दरवाजे को बंद किया और लिफ्ट के अंदर चली गई. आंखों से आंसू बह निकले थे. उस ने अपने आंसू पोंछे और लिफ्ट से बाहर आ कर सोचने लगी कि अब वह कहां जाए? तभी उस का मोबाइल बज उठा था. उधर उस की बहन अवनी थी, ‘‘हैप्पी बर्थडे, दी. जीजू को आप का बर्थडे याद था कि नहीं?’’

‘‘उन के यहां ये सब चोंचले नहीं होते,’’ कह कर वह हंस दी.

‘‘दी, क्या सारे आदमी एक ही तरह के होते हैं? यहां रिषभ का भी यही हाल है. उसे भी कुछ याद नहीं रहता. इस बार तो ऐनिवर्सरी भी मैं ने ही याद दिलाई तो महाशय को याद आई थी.’’

वह जानती थी कि रिषभ इन सब बातों का कितना खयाल रखता है. आज सुबह सब से पहला फोन उसी का आया था. अवनी केवल उस का मूड अच्छा करने और उसे बहलाने के लिए कह रही थी. वह थोड़ी देर तक सोसाइटी के लौन में वौक करतेकरते बहन से बात करती रही, फिर घर लौट आई. डिनर का टाइम हो रहा था. श्यामा उसे देखते ही बोली, ‘‘मैडम, खाना लगाऊं?’’

‘‘चलो, मैं हाथ धो कर किचन में आती हूं.’’

‘‘सर ने कहा है कि आज सब लोग साथ में खाएंगे.’’

अविरल अभी भी अपने फोन पर गेम खेल रहा था. उसे उस का गेम खेलते देख मूड खराब हो जाता था. वह रातदिन काम करकर के परेशान रहती है और इन साहब को इतनी फुरसत रहती है कि बैठ कर गेम खेल रहे हैं. अविरल का कहना था कि गेम खेल कर वह अपना स्ट्रैस कम करता है. उसे भी अपनेआप को कंट्रोल करना चाहिए. लेकिन आरोही को तो खुद को रिलैक्स करने के लिए बाहर जा कर शौपिंग करना या आइसक्रीम खाना पसंद है. उस के चेहरे पर मुसकराहट आ गई थी. तब तक मांजी डाइनिंग टेबल पर बैठ चुकी थीं. श्यामा ने भी खाना लगा दिया था. उस ने डोंगा खोला तो छोले देख उस के मुंह में पानी आ गया था, ‘‘ओह, आज कुछ खास बात है क्या?’’

‘‘मैडम, सर ने आज कुछ स्पैशल बनाने के लिए बोला था. आज मूंगदाल का हलवा भी बना है.’’

मूंग दाल का हलवा हमेशा से उस का फेवरेट रहा है.

‘‘मेरे तो मुंह में पानी आ रहा है, अवि. जल्दी आओ, प्लीज.’’ अविरल फोन पर किसी से बात कर रहा था.

मांजी ने उस के सिर पर हाथ रखा और उस के हाथ में अंगूठी का डब्बा पकड़ा दिया, ‘‘हैप्पी बर्थडे आरोही, यह अविरल अपनी पसंद से लाया है.’’ वह जानती थी कि यह काम अकेली मांजी का है, अविरल का दिमाग इन सब में चलता ही नहीं है, लेकिन अविरल के चेहरे की मंदमंद मुसकान देख उसे उस पर बहुत प्यार आ रहा था. अविरल मुसकरा कर बोला, ‘‘सुबह जब मैं फ्रैश हो कर इधर आया, तुम अस्पताल जा चुकी थीं. इसलिए मैं ने यह सरप्राइज प्लान कर लिया. कैसा लगा डा. आरोही, मेरा सरप्राइज?’’

‘‘ओह अविरल, यू आर वैरी क्यूट.’’

वह खाना सर्व ही कर रही थी कि तभी कौलबेल बजी. घर के अंदर मामाजी रोनी सी सूरत बना कर आए. कमरे का माहौल बदल चुका था, वे अपने हाथ में एक फाइल लिए हुए थे, ‘‘मेरी आरोही बहू इतनी बड़ी डाक्टरनी है. पहले उसे दिखाएंगे.’’ सब की निगाहें उस पर अटकी हुई थीं और आरोही के हाथ में उन्होंने फाइल पकड़ा दी.

‘‘मामाजी, आप भी खाना खा लीजिए.’’

‘‘अरे डाक्टर बहू, तुम खाने की बात कर रही हो, यहां मेरी सांसें रुकी जा रही हैं.’’

मजबूरन उस ने फाइल हाथ में ले ली, सरसरी निगाहों से देखा फिर बोली, ‘‘डाक्टर मयंक ने बायोप्सी के लिए लिखा है तो आप को सब से पहले बायोप्सी करवानी पड़ेगी.’’

‘‘बहू, तुम समझती क्यों नहीं, मुझे दर्दवर्द बिलकुल नहीं है. तुम तो बेमतलब की बात कर रही हो. काटापीटी होगी तो बीमारी बढ़ नहीं जाएगी?’’

वह पहले भी कई बार स्पष्ट रूप से सब से कह चुकी थी कि वह हार्ट की डाक्टर है, कैंसर के बारे में ज्यादा नहीं जानती लेकिन मामाजी तो, बस, बारबार बहूबहू कर के पीछे पड़ कर रह गए हैं. उस ने फाइल पकड़ाते हुए कहा, ‘‘बायोप्सी जरूरी है. यह आवश्यक नहीं कि कैंसर ही हो, फाइब्रौड भी हो सकता है. वह औपरेट कर के आसानी से निकाल दिया जाएगा.’’

‘‘अरे बहू, तुम तो इतनी बड़ी डाक्टर हो, कुछ और इलाज बता दो, औपरेशन न करवाना पड़े.’’

यह पहली बार नहीं था. कभी मामाजी तो कभी मौसाजी, तो कभी कोई अंकल हर 8-10 दिनों बाद कोई न कोई समस्या ले कर उस के सामने आ खड़े होते. मामाजी ने तो उस के लिए मुसीबत ही खड़ी कर रखी है. एक ही बात, कभी कहते कि फलां वैद्य का इलाज चल रहा है, मैं कहता था न कि अब गांठ एकदम छोटी हो गई है तो कभी कहते कि वैद्यजी सही कह रहे थे कि डाक्टर तो बस अपना धंधा चलाते हैं. देखिएगा, मैं शर्तिया 15 दिनों में ठीक कर दूंगा.

 

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