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दिल्ली देश की ही नहीं, खबरों की भी राजधानी है. आम आदमी तो खबरें पढ़पढ़ कर वैसे घबराया रहता है जैसे सारे अपराध दिल्ली में ही होते हों. जितना हो सकता था उन्होंने वैशाली को ऊंचनीच समझाई. फिर भी डर था कि जाने का नाम नहीं ले रहा था.

दिल्ली में निवास करने वाले अड़ोसपड़ोस के दूरदराज के रिश्तेदारों के पते लिए जाने लगे. न जाने कितने नंबर इधरउधर के परिचितों के ले कर वैशाली के मोबाइल की कांटैक्ट लिस्ट में जोड़े जाने लगे. तसल्ली इतनी थी कि किसी गाढ़े वक्त में बेटी फोन मिला देगी तो कोई मना थोड़ी न कर देगा. आखिर इतनी इंसानियत तो बची ही है जमाने में. उन्हें क्या पता कि दिल्ली घड़ी की नोंक पर चलती है.

मां ने डब्बाभर कर लड्डू व मठरी रख दिए साथ में. कुछ नहीं खा पाएगी, तो भी ये लड्डू, मठरी, सत्तू तो साथ देगा ही. दिल लाख आगेपीछे कर रहा हो, पर बेटी की इच्छा तो पूरी करनी ही थी. लिहाजा, कदम चल पड़े दिल्ली की ओर.

औफिस के श्याम ने ‘ओय’ होटल बुक कर दिया था. यह सस्ता होता है, दोचार दिन तो टिकना ही पड़ेगा, यही ठीक रहेगा. वैशाली के लिए गर्ल्स पीजी की ढूंढा जाने लगा. आखिरकार, लक्ष्मीनगर में एक गर्ल्स पीजी किराए पर ले लिया था. खानानाश्ता मिल ही जाएगा. औफिस, बस, 2 मेट्रो स्टेशन दूर था. यहां सब लड़कियां ही थीं. पिता बेफिक्र हुए कि उन की लड़की सुरक्षित है.

वैशाली अपना रूम एक और लड़की से शेयर करती थी. उस का नाम था मंजुलिका. मंजुलिका वेस्ट बंगाल से थी. जहां वैशाली दबीसिकुड़ी सी थी, मंजुलिका तेजतर्रार, हाईफाई. कई साल से दिल्ली में रह रही थी. चाहे आप इसे आबोहवा कहें या वक्त की जरूरत, दिल्ली की ख़ास बात है कि वह लड़कियों को अपनी बात मजबूती से रखना सिखा ही देती है. मंडे को जौइनिंग थी. मातापिता जा चुके थे.

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