देश के प्रतिष्ठित खेल सम्मान अर्जुन अवार्ड से सम्मानित पैराओलम्पिक खिलाडी और रियो चैंपियनशिप में गोल्ड मैडल विजेता मरियप्पन थांगवेलु इन दिनों अपने परिवार को मदद करने के लिए किसी नौकरी की तलाश में हैं. मरियप्पन थांगवेलु देश के उन 17 खिलाडियों में शामिल हैं, जिन्हें खेल क्षेत्र में श्रेष्ठ अर्जुन अवार्ड से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों सम्मानित किया गया है. गोल्ड मेडल जितकर देश लौटने के बाद इस खिलाड़ी ने देशवासियों का दिल जीत लिया था. आज के समय में जितना जल्दी हो सके वो कोई सरकारी नौकरी कर परिवार की मदद करना चाहते हैं.

मां कुछ दिनों पहले तक बेचती थी सब्जी

अर्जुन अवार्ड विजेता मरियप्पन थांगवेलु तमिलनाडु के एक मिडिल क्लास परिवार से ताल्लुक रखते हैं. मरियप्पन थांगवेलु को यहां तक पहुंचने में उनकी मां का सराहनीय योगदान रहा है. मैडल जीतने से पहले तक इस खिलाड़ी की मां ने तमिलनाडु के एक स्थानीय बाजार में सब्जी बेचकर थांगवेलु को इस काबिल बना दिया कि आज देश की हर मां अपने बेटे को वहां देखना चाहती है जहां आज थांगवेलु पहुंच चुके हैं.

परिवार में दो जवान भाई के अलावा मां हैं

हालांकि इस पैराओलम्पिक खिलाड़ी का परिवार छोटा है. परिवार में दो जवान बेरोजगार भाई के अलावा मां है. मरियप्पन थांगवेलु कोई सरकारी नौकरी कर अपने परिवार की जिम्मेवारी अपने कंधे पर लेना चाहते हैं. उन्होंने बताया कि वो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री समेत कई लोगों को इस मामले में पत्र लिख चुके हैं, लेकिन कोई संतुष्टि पूर्ण जबाब नहीं मिला है. अर्जुन अवार्ड विजेता खिलाडी ने कहा कि वो सरकारी नौकरी करना चाहते हैं ताकि अपने दो भाई और मां की देखभाल कर सके. उन्होंने बताया कि प्राईज के तौर पर मिले पैसे से अपनी मां के लिए जमीन का टुकड़ा खरीदा ताकि वो चावल और सब्जी ऊगा पाए, इसके अलावा कुछ पैसा फिक्स कर दिया. अर्जुन अवार्ड के साथ मिले 5 लाख रूपए के बजाय इस खिलाडी ने सरकारी नौकरी को ज्यादा प्राथमिकता दिया.

पैराओलम्पिक में मेडल जीत बनाया रिकौर्ड

टी-42 वर्ग की प्रतियोगिता में थंगावेलु ने 1.89 मीटर ऊंची छलांग लगाकर गोल्ड मेडल पर कब्जा जमाया और इसके साथ ही यह गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले भारतीय खिलाडी बन गए. पैराओलंपिक में भारत को इससे पहले दो स्वर्ण पदक मिल चुके हैं. 1972 में हीडलबर्ग में आयोजित पैराओलंपिक में मुरलीकांत पेटकर ने तैराकी में और देवेंद्र झाझरिया ने 2004 के एथेंस पैराओलंपिक के दौरान भाला फेंक में गोल्ड मेडल जीते थे. पांच साल के थे जब एक सड़क हादसे में उनका पैर खराब हो गया था.

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