प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के इंदिरा गांधी इंदौर स्टेडियम में खेलो इंडिया स्कूल गेम्स के उद्घाटन के बाद कहा कि देश में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है और सरकार ऐसे खिलाडि़यों का सहयोग करना चाहती है, जिन्हें खेल से प्यार है. उन्होंने कहा कि खेल इंडिया का मतलब पदक जीतना नहीं है, यह और अधिक खेलने के जन आंदोलन को मजबूत बनाने की कोशिश है.
इस लिहाज से प्रधानमंत्री की यह चिंता और पहल काबिलेतारीफ है कि वे युवाओं का सहयोग करना चाहते हैं. पर उन के इस जोशीले भाषण से लगता है कि या तो उन्हें यह अंदाजा नहीं है कि गड़बड़झाला कहां और कैसा है या फिर उन्हें सबकुछ मालूम है कि कैसे मौजूदा सिस्टम में खेल और खिलाड़ी भी बाबूशाही के शिकार हो कर उस की गिरफ्त में हैं.
खिलाडि़यों को सरकार सीधे पैसा या दूसरी सुविधाएं नहीं देती है बल्कि जिस किसी सरकारी एजेंसी के जरिए देती है वह खिलाडि़यों का वैसे ही शोषण करती है जैसे पटवारी किसानों का करता है.
सरकारी बाबुओं की धौंस राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक है, जो ज्यादातर खिलाडि़यों को एहसास दिलाते हैं कि बिना कुछ लिएदिए या चापलूसी किए तुम्हारा भला नहीं हो सकता. खिलाडि़यों को भी इन के चक्कर लगातेलगाते ज्ञान हो जाता है कि असल सरकार तो यही हैं और यही हमारा भला कर सकते हैं. मगर कुछ खिलाड़ी ऐसे भी हैं जो इन के खिलाफ आवाज बुलंद करते हैं पर कुछ दिनों बाद उन की भी बोलती बंद कर दी जाती है.
कई ऐसे खिलाड़ी हैं इस देश में जो राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मैडल जीत चुके हैं पर गुमनामी में जी रहे हैं या फिर वे पसरी बाबूशाही और भेदभाव को देख खेलने का अपना सपना छोड़ खेती करते हैं, मजदूरी करते हैं, गाडि़यों के शीशे साफ करते हैं या चायपकौड़े का ठेला लगा कर गुजारा कर रहे हैं.