‘‘जब तक पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंक फैलाना और सैनिकों पर फायरिंग बंद नहीं करता, तब तक दोनों देशों के बीच क्रिकेट सीरीज की कोई संभावना नहीं है,’’ विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के इस बयान से आम लोगों को कोई खास हैरत नहीं हुई. जब भी सीमापार से पाकिस्तान अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देता है तबतब राजनीति गरमाने के लिए ऐसी बयानबाजी करना आम बात है.

पाकिस्तान के साथ क्रिकेट न खेलने की बयानबाजी से यह जताने की कोशिश की जाती है कि आतंकी गतिविधियां अब बरदाश्त के बाहर हो चली हैं और क्रिकेट न खेलना ही इस का एकलौता हल है.

यह दीगर बात है कि पाकिस्तान ने कभी इन सियासी धमकियों को संजीदगी से लेना तो दूर की बात है, भारत के साथ क्रिकेट खेलने तक की कोई उत्सुकता या पेशकश नहीं की है. फिर ऐसे बयानों के माने क्या रह जाते हैं? इस सवाल का जबाब भी उतना ही बेमानी है जितना यह कि पाकिस्तान अपनी बेजा हरकतों से न पहले कभी बाज आया था न अब उस से यह उम्मीद करनी चाहिए.

दरअसल, यह सियासी क्रिकेट है जिस की पिच पर दोनों देशों के नेता ऐसी निरर्थक बयानबाजी कर सनसनी फैलाने की कवायद करते रहते हैं. विलाशक आतंक एक गंभीर समस्या है लेकिन क्रिकेट न खेला जाना इस का हल होता तो बात कभी की बन चुकी होती. अब तो क्रिकेट अपनेआप में एक धर्म बन चुका है. जब भी भारतपाकिस्तान आमनेसामने होते हैं तबतब इस का रोमांच शबाब पर होता है और लोग हारजीत को स्टेडियम से हट कर सरहद से जोड़ कर देखने लगते हैं.

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