नादिया निगहत के लिए पहली महिला फुटबौल कोच बनना कोई आसान काम नहीं था. जम्मू कश्मीर में किसी महिला के लिए ऐसा करना वास्तव में लोगों के माइंडसेट को बदलना था. उन्हें यह बताना था कि लड़कियां किसी भी फील्ड में आगे बढ़ सकती हैं.
कश्मीर के श्रीनगर में रहने वाली 20 वर्षीय निगहत को यह करियर चुनने के लिए बहुत सी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. अपने इस सफर के बारे में नादिया कहती हैं कि 40-50 लड़कों के बीच मैं अकेली लड़की थी, जिसने स्थानीय कालेज में प्रैक्टिस सेशन में भाग लिया. मुझे और मेरे परिवार को इसके लिए कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी.
उन्होंने आगे कहा, ‘शुरू में मेरा परिवार भी इसके खिलाफ था कि मैं लड़कों के साथ फुटबौल खेलूं. लेकिन बाद में मेरे परिवार ने मुझे सपोर्ट किया खासतौर पर पिता ने. बाद में मेरा पूरा परिवार ही मेरा साथ खड़ा रहा.’
पुर्तगाल के फुटबौल स्टार क्रिस्टियानो रोनाल्डो और अर्जेंटीना के लियोनल मेसी की जबरदस्त फैन नादिया की फुटबौल में स्कूल के समय से ही गहरी रुचि रही. नादिया अमर सिंह कालेज अकादमी में फुटबौल की बारीकियां सीखने गईं. बाद में जम्मू कश्मीर फुटबौल एसोसिएशन ने नादिया की इस बात के लिए मदद की कि वह फुटबौल में अपना करियर बना सकें.
घाटी में खराब हालात पर बात करते हुए नादिया कहती हैं, ‘जब भी हमारे क्षेत्र में कर्फ्यू लगता है, तब भी मैं अपना ट्रेनिंग सेशन किसी तरह पूरा करती हूं. इस तरह की परिस्थितियों में अपने सपने को पूरा करना आसान नहीं है. लेकिन यदि आपके भीतर समर्पण है तो रास्ते बनते चले जाते हैं.’
नादिया फिलहाल महाराष्ट्र, ठाणे के एक स्कूल में बच्चों को फुटबौल का प्रशिक्षण देती हैं. उन्होंने अभिभावकों से यह अपील की है कि वे अपनी बेटियों को फुटबौल सीखने के लिए भेजें. वह नहीं मानतीं कि फुटबौल लड़कों का खेल है.
नादिया कहती हैं, ‘मैं चाहती हूं कि हर व्यक्ति अपने सपने को पूरा करे और अपना लक्ष्य हासिल करे. अभिभावकों को अपने बच्चों को उसी क्षेत्र में अपना करियर बनाने देना चाहिए जिसमें वे बनाना चाहते है.’