भारत को ओलंपिक में पहला व्यक्तिगत मेडल दिलाने वाले पहलवान काशाबा दादासाहेब जाधव (केडी जाधव) के परिवार उनके इस ऐतिहासिक मेडल को बेचने की धमकी दी है. ये कदम उनके परिवार द्वारा एक रेसलिंग अकादमी खोलने के लिए आ रही पैसे की कमी की वजह से किया जा रहा है.

महाराष्ट्र सरकार ने जाधव के परिवार को इस अकादमी के लिए पैसे देने का वादा किया था लेकिन फिर भी अब तक उन्हें एक भी पैसा नहीं मिला है.

इस दिग्गज पहलवान के बेटे रंजीत जाधव ने बताया कि कांस्य पदक की नीलामी का फैसला पीड़ादायक था, क्योंकि अकादमी बनाने के वादे से राज्य सरकार के पीछे हटने पर हमारे पास अधिक विकल्प नहीं बचे थे.

रंजीत ने कहा कि 2009 में जलगांव में कुश्ती प्रतियोगिता के दौरान राज्य के तत्कालीन खेल मंत्री दिलीप देशमुख ने घोषणा की थी कि सरकार मेरे दिवंगत पिता के नाम पर सतारा जिले में राष्ट्रीय स्तर की कुश्ती अकादमी बनायेगी. उन्होंने कहा कि आठ साल बाद भी कुछ नहीं हुआ है. दिसंबर 2013 में परियोजना के लिए एक करोड़ 58 लाख रपये स्वीकृत किए गये थे, लेकिन यह परियोजना आकार नहीं ले पायी.

रंजीर ने कहा, ‘हमने राज्य सरकार को 14 अगस्त का अल्टीमेटम दिया है, जोकि मेरे पिता की 33 वीं बरसी है. इसी दिन 1984 में 58 साल की उम्र में केडी जाधव का निधन हुआ था. अगर वे अकादमी के लिए किए गए अपने वादे को निभाने में असफल रहते हैं तो 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के दिन से उनका परिवार और गांव वाले भूख हड़ताल करेंगे.’

रंजीत ने कहा कि मेरे पिता ने कभी अपनी उपलब्धियों का गुणगान नहीं किया. वह 1984 तक जीवित रहे लेकिन सरकार ने कभी उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया, जो उन्हें उनके निधन के 16 साल बाद मिला. प्रतिष्ठित लोगों को उस समय क्यों नहीं सम्मानित करते जब वे जीवित होते हैं.

आपको बता दें कि 1952 हेलसिंकी ओलंपिक में पहलवान जाधव ने 27 बरस की उम्र में इतिहास रचते हुए व्यक्तिगत खेल में ओलंपिक पदक (कांस्य) जीतने वाले पहले भारतीय बने थें.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...