Bihar Election Result 2025: बिहार में एनडीए गठबंधन भारी बहुत से जीत गई है. वजहें चाहे जो हों पर इसे विपक्ष की हार कहना गलत नहीं होगा क्योंकि 20 सालों बाद भी वे नीतीश को सत्ता से हटा नहीं पाए. आखिर क्या कारण है कि समाजवादी राजनीति दक्षिणपंथ के खिलाफ हिंदी पट्टी में दम तोड़ती नजर आ रही है?
बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस की अगुवाई वाले महागठबंधन की हार ने नए राजनीतिक चिंतन को जन्म दिया है. समाजवादी विचारधारा सत्तावाद के दवाब में बिखर क्यों जाती है ? दूसरी तरफ भगवावाद है जो अपने विचारों को खुद से चिपका कर रखता है. वह अपने वोटर को विचारधारा से अलग नहीं होने देते हैं. उदाहरण के लिए भारतीय जनसंघ को ही लें, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी बनी वह धर्म के सिद्वांत पर पहले की तरह की कायम है. दूसरी तरफ समाजवादी विचारधारा से बने दल अपने सिद्धांत को भूल कर परिवारवाद के चक्कर में उलझ कर रह गए हैं.
समाजवाद और परिवारवाद के सिद्धांत अलगअलग हैं. समाजवाद निजी संपत्ति और लाभ पर आधारित पूंजीवाद का विरोध करता है. समाजवाद का लक्ष्य सामूहिक हित और समानता को बढ़ावा देना है. समाजवाद सभी के लिए एक समान अवसर लाने की बात करता है. समाजवाद उत्पादन के साधनों और धन के वितरण पर सार्वजनिक नियंत्रण का समर्थन करता है. समाजवाद पारंपरिक लिंग भूमिकाओं पर सवाल उठाता है और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने का प्रयास करता है.
यह परिवारवादी मूल्यों के विपरीत होते हैं. परिवार के भीतर संपत्ति के उत्तराधिकार और हस्तांतरण की पारंपरिक प्रथाओं से अलग है. परिवारवाद में अकसर पितृसत्तात्मक संरचनाएं शामिल होती हैं जहां परिवार के भीतर पुरुश और महिला की भूमिकाएं अलग होती हैं. समाजवाद का तर्क है कि सार्वजनिक स्वामित्व आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है, जबकि परिवारवाद इस सुरक्षा को परिवार के भीतर से प्राप्त करने पर निर्भर करता है.
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