उच्च पदों पर कार्यरत महिलाएं भले कितनी ही प्रतिभाशाली हों या लगन से काम कर रही हों पर तरहतरह के भेदभाव के चलते उन का उस पद पर काम करना मुश्किल बना रहता है. क्या है इस की वजह, जानिए. एक कस्टमर सरकारी बैंक में आ कर चिल्ला रहा था कि उसे बीमार पत्नी के इलाज के लिए पैसे की जरूरत है लेकिन वह निकाल नहीं पा रहा है क्योंकि एटीएम खराब है और बैंक का सर्वर डाउन है. वह बैंक की महिला मैनेजर से शिकायत किए जा रहा था और कह रहा था कि सरकारी बैंकों के कर्मचारी ठीक से काम नहीं करते. अभी सरकार की बेकार की नीतियों से बैंकों को महिलाओं को प्रधान बनाया जा रहा है और ये महिलाएं कुछ सही से नहीं कर पातीं, कोई निर्णय नहीं ले पातीं.

ऐसा सुनने पर उस महिला को गुस्सा आया और उस ने उस व्यक्ति को रोक कर सारी बातें सम?ाईं कि इस की वजह महिला या पुरुष कर्मचारी से तय नहीं होती बल्कि कम पैसे में खरीदे गए सर्वर की वजह से होता है. सर्वर डाउन हो तो काम कैसे हो पाएगा? आप को थोड़ा रुकना पड़ेगा. अभी एटीएम ठीक हो जाएगा, उसे रिपेयर करने वाला आ चुका है. थोड़ी देर में एटीएम के ठीक होते ही वह व्यक्ति पैसा निकाल कर वहां से चला जाता है. महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम कर रही हैं लेकिन उन की किसी बात को कोई सुनना नहीं चाहता.

सरकारी बैंक में मैनेजर की पोस्ट पर कार्यरत सुनीता से जब इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि आजकल महिलाओं को किसी भी प्रोफैशन में जगह मिलने की वजह समय पर काम का होना, कस्टमर से सही बातचीत बनाए रखना आदि हैं. इस का असर व्यापार पर पड़ता है. आजकल सरकारी काम को टिकाए रखना बहुत मुश्किल हो चुका है क्योंकि अगर कहीं कोई हायर पोस्ट वाले गलती करते हैं तो उस का खमियाजा उन के नीचे काम करने वाले को भुगतना पड़ता है. बैंक की नौकरी में हमेशा इस बात की चिंता रहती है कि कम से कम कस्टमर की बात उसे सुननी पड़े. इसलिए उसे बारबार बैंक के अंदर चक्कर लगा कर सारे ग्राहकों और कर्मचारियों की समस्या सुल?ानी पड़ती है. सर्वर की देखभाल असल में ऐसी समस्या आज आम हो चली है.

डिजिटल इंडिया बनाने के उद्देश्य से सर्वर बनाने वाली कंपनियों की भरमार हो चली है, जिन में कुछ फेमस कंपनियां तो कुछ स्टार्टअप कंपनियां हैं जो अपने सर्वर के सही होने का दावा करती हैं. नामचीन कंपनियों के सर्वर खरीदने पर सरकारी तंत्र को अधिक पैसे देने पड़ते हैं, इसलिए कम पैसे में काम निकालने की इच्छा से वे ऐसा कर जाते हैं और कुछ दिनों बाद ये सर्वर काम करना बंद कर देते हैं जिस का खमियाजा आम इंसान और उन का काम करने वाले कर्मचारियों को भुगतना पड़ता है. इस के अलावा, ऐसी मशीनों की बीचबीच में देखभाल करने की जरूरत होती है जो नहीं होती और अचानक से मशीन ठप हो जाती है व काम पूरा करने के लिए महिला कर्मचारियों को देररात तक ठहरना पड़ता है. मैनेजर सुनीता कहती हैं, ‘‘एक टूटी कुरसी पर बैठ कर मु?ो काम करना पड़ता है.

किसी के विरोध करने पर बड़े अधिकारी ट्रांसफर कर देने की धमकी देते हैं और फाइल खोलने की चेतावनी देते हैं. यही वजह है कि कई महिला कर्मचारी सरकारी नौकरी छोड़ कर प्राइवेट कंपनियों में जा रही हैं. महिलाओं को पुरुषों की तरह केवल बाहर ही नहीं, बल्कि घर और बच्चे भी संभालने पड़ते हैं.’’ महिलाएं बिठाती हैं सामंजस्य सुनीता आगे कहती हैं, ‘‘एक महिला बाहर और घर के काम करती हुई मानसिक स्ट्रैस को कम करने के लिए अगर छुट्टी पर जाना चाहती है तो उन्हें हजारों पैंडिंग काम गिना दिए जाते हैं. इस के अलावा सही समय पर वेतन का न मिलना, सैलरी का कट होना, असमानता का व्यवहार आदि कई चीजें हैं जिन की वजह से महिलाएं जौब छोड़ कर कुछ अलग काम करना पसंद कर रही हैं. यह सही भी है क्योंकि सरकारी तंत्र में उच्च पद पर काम करना एक कुएं में गिरने के समान है जहां अंदर डूबने का डर और बाहर आग में जल कर निकलने की तरह है.

‘‘यह सही है कि जिन कर्मचारियों का अपने बौस से सीधा संबंध नहीं होता उन को समस्या कम आती है. आज भी 10 से 20 प्रतिशत लोग जैंडर बायस हैं और उन्हें लगता है कि महिलाओं से कुछ बड़ा काम नहीं हो सकता. मेरी प्रतिभा कुछ तो होगी जिस से मैं यहां तक परीक्षा दे कर पहुंची हूं. बहुत अधिक मानसिक तनाव में जीना पड़ता है.’’ अर्थव्यवस्था में होगी उन्नति शोध में यह प्रमाणित हुआ है कि महिलाएं, जो पुरुषों की आबादी से बहुत कम अंतर पर हैं, काफी शिक्षित और एक्टिव हैं. इस आबादी को वर्कफोर्स में प्रयोग किया जाना काफी जरूरी है.

इस से देश की अर्थव्यवस्था में काफी बढ़ोतरी हो सकती है क्योंकि महिलाओं के कार्यक्षेत्र में हैल्दी कंपीटिशन, टीमवर्क और आपस में अच्छी बौंडिंग रखने की वजह से कंपनी को ग्रो करने में बहुत अधिक मदद मिलती है. इतना ही नहीं, आज हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है. विज्ञापनों में तो महिला का होना जरूरी माना जाता है. इस के अलावा कुछ फायदे निम्न हैं- द्य महिलाओं का वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर होना. द्य अपनी लाइफ पर उन का पूरी तरह से नियंत्रण होना. द्य शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होना. द्य सामाजिक भेदभावों का मजबूती से विरोध कर पाना. द्य भविष्य को अच्छी और मजबूत दिशा देना आदि. द मेकिनसे ग्लोबल इंस्टिट्यूट ने कहा है कि साल 2025 तक भारत में महिलाओं का वर्कफोर्स में शामिल होना अगर लगातार चलता रहे तो भारत विश्व की 700 बिलियन डौलर का योगदान ग्लोबल जीडीपी ग्रोथ में कर सकेगा. इस के लिए भारत को महिलाओं को अधिक से अधिक जौब करने के अवसर प्रदान करने होंगे.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...