सुसाइड-आखिर क्यों जीना नहीं चाहती नई पीढ़ी

सुसाइड- फांसी का फंदा बन जाते हैं सामाजिक बंधन

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सियासी नीतियां हैं जिम्मेदार

भारत में बढ़ती आत्महत्या-दर के लिए सियासी नीतियां खासतौर पर जिम्मेदार हैं. ‘बांटों और राज करो’ की घृणित नीति को हर सियासी पार्टी चलाती है, जिसके चलते भारतीय मानुष असमानता के भयानक चक्रव्यूह में फंसा हुआ है. यही असमानता आत्महत्या के ग्राफ को भी लगातार बढ़ा रही है. गरीब को गरीब रखने की नीति, अमीर को और अमीर बनाने की नीति, धर्म के नाम पर लोगों को बांटे रखने की नीति, इन्सान को इन्सान न समझ कर महज वोटबैंक बनाने की नीति, अमीर और गरीब के लिए अलग-अलग शिक्षा नीति, अलग-अलग स्वास्थ्य नीति जैसी अनेकानेक सियासी नीतियां हम भारतीयों के लिए ब्लैकहोल साबित हो रही हैं .

किसान कर्ज की मार से मर रहा है. हिन्दी मीडियम से निकला विद्यार्थी किसी भी प्रतियोगिता में खुद को सफल नहीं पाता है. उच्च डिग्रियां लेकर भी युवाओं को नौकरियां नहीं मिलतीं. खुद का रोजगार शुरू करने के लिए पर्याप्त पूंजी और अनुभव नहीं है. आजादी के सात दशकों में भी इस देश की किसी भी सरकार ने अमीर-गरीब के बीच की खाई को भरने, सबको समान शिक्षा और रोजगार की गारंटी देने की तरफ कदम नहीं उठाया. किसानों-मजदूरों के लिए कोई अच्छी योजना किसी सरकार में नहीं बनी है. न उनकी फसलों का मूल्य उन्हें मिलता है, न बर्बाद हुई फसल पर मुआवजा मिलता है और न ही कर्ज की मार से राहत मिलती है. चुनाव नजदीक आते हैं तो राजनीतिक पार्टियां उनके सामने योजनाओं के झुनझुने बजाने लगती हैं, और चुनाव खत्म होते ही झुनझुने कूड़े में फेंक दिये जाते हैं. तब गरीब के सामने मौत को गले लगाने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचता.

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