प्रकाशोत्सव यानी रौशनी के त्योहार दीवाली के मनाये जाने के एक पखवाड़ा पहले सुनाया गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश में कितना लागू होगा, यह दीवाली के दूसरे दिन मालूम हो सकेगा.  लेकिन, पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि कोर्ट के फैसले पर अमल होना फिलहाल नामुमकिन है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनज़र, अब पूरे देश में कम धुएं और कम आवाज़ वाले पटाखे यानी ग्रीन पटाखे ही बनाए और छुडाए जा सकेंगे. पटाखे अब ध्वनि और वायु प्रदूषण के मानकों के तहत बनाए जाएंगे. कोर्ट ने यह भी कहा है कि पटाखे औनलाइन साइट्स पर नहीं बेचे जा सकेंगे.

ध्वनि प्रदूषण नियमों के मुताबिक, रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक पटाखे चलाने पर रोक है, लेकिन शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि दीवाली के मौके पर इस अवधि को शाम 8 बजे से 10 बजे तक सीमित कर दिया जाए.

दीवाली से मात्र एक पखवाड़े पहले आए कोर्ट के फैसले पर पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि इतने कम समय में शर्तों पर अमल होना नामुमकिन सा है. उन्हें लगता है कि इस दीवाली पर प्रदूषण बढ़ सकता है.  हालांकि, कोर्ट के निर्देशों पर पालन हो जाए तो प्रदूषण का स्तर नहीं बढेगा.

यह अच्छी बात है कि अब सिर्फ ईको-फ्रेंडली पटाखों की बात होने लगी है.  लेकिन, जब ज़्यादातर पटाखे मैनुफैक्चरिंग कंपनियों के दरवाजों के बाहर आ चुके हैं और बाजारों में पहुंच भी रहे हैं तो थोक विक्रेता और फुटकर विक्रेता उन्हें बेचेंगे ही और लोग उन्हें खरीदेंगे भी. फिर वे स्वाभाविक रूप से उन पटाखों का इस्तेमाल भी करेंगे.

दरअसल, भारतीय बाज़ार में अभी ग्रीन पटाखों की पहचान नहीं बन पाई है. ग्राहक और ट्रेडर दोनों में जागरूकता नहीं है. सो, सरकार को चाहिए कि वह सब से पहले नौन-पोलूटिंग पटाखों के लिए एक ट्रेडमार्क बनाए और उसे प्रचारित करे.

यह भी सच है कि बड़े देश भारत में ग्रीन पटाखों के पूरी तरह चलन में आने में 1 से 3 साल का समय लग सकता है.  फिलहाल, पटाखों के लिए 4 मीटर की दूरी पर अलगअलग जोन के लिए 90 से 125 डेसिबल तक ध्वनि की ही इजाज़त है. पटाखे बनाने में कुछ धातुओं और केमिकलों के इस्तेमाल पर रोक है. लेकिन मैनुफैक्चरर्स और सरकार में कंटेंट को लेकर एक राय नहीं बन पाई है और इंडस्ट्री में 10 फीसदी इकाईयां ही सुझाए गए इन्ग्रीदिएंट्स का इस्तेमाल कर रही हैं.

गौरतलब है की कोर्ट ने वर्ष 2005 में ही पटाखों के शोर को नियंत्रित करने की पहल की थी, लेकिन अभी तक इस पर अमल नहीं हो पाया है.  कोर्ट ने, हालांकि, अब कई बंदिशों के साथ इजाज़त दी है, लेकिन सवाल कायम है. ग्रीन पटाखों की अभी तक कोई निश्चित परिभाषा तय नहीं हो पाई है. देश में बिकने और विदेशों को एक्सपोर्ट यानी निर्यात करने वाले पटाखों के मानक अलगअलग हैं. 80 फीसदी पटाखा इंडस्ट्री असंगठित क्षेत्र में है. ऐसे में बहुत बड़े स्तर पर काम करने  की ज़रुरत है, तब कहीं जा कर पूरे देश में दीवाली पर ग्रीन पटाखे छुडाए जा सकेंगे, वरना तो पटाखों के शोर में ग्रीन नियम दबे ही रहेंगे.

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