Superstition : 60-70 के दशक में यह उम्मीद की जाती थी कि जैसेजैसे लोग शिक्षित होंगे वैसेवैसे अंधविश्वास कम होंगे लेकिन हुआ उलटा, अंधविश्वास और अंधविश्वासी और बढ़ रहे हैं क्योंकि उन का पहला स्कूल घर और पहले टीचर खुद पेरैंट्स हैं जिन के साथ रहना आर्थिक और भावनात्मक के अलावा सामाजिक विवशता भी है.
मैं तब बेंगलुरु के एक नामी इंस्टिट्यूट से एमबीए कर रहा था और होस्टल में रहता था. एक दिन सुबह सुबह मम्मी का फोन आया कि रिश्ते के एक चाचा नहीं रहे. इसलिए मुझे तला कुछ नहीं खाना है और 10 दिनों तक शेव नहीं करना है. क्यों, यह पूछने पर वही पुराना जवाब मिला कि घर में सूतक लगे हैं.
28 वर्षीय संकेत याद करते बताता है, ‘मुझे न पहले कभी समझ आया था, न तब आया था और आगे भी कभी शायद ही आए कि यह सूतक होती क्या बला है. क्योंकि ऐसा पहले भी दोतीन बार हो चुका था और सूतक लगने पर घर में कड़ाही का इस्तेमाल नहीं हुआ था. पापा ने 10 दिन यानी शुद्धि के दिन तक दाढ़ी नहीं बनाई थी और भी कुछ बंदिशें थीं. तब मैं छोटा था, इसलिए खामोश रहा था और 10 दिन उबलाथुबला, बेस्वाद खाना जैसेतैसे गले के नीचे उतार लेना मजबूरी थी. पर यह मजबूरी आज से 4 साल पहले नहीं थी, जब वे चाचा नहीं रहे थे जिन्हें मैं ने होश संभालने तक कभी देखा भी नहीं था. यहां होस्टल में न मम्मी थी और न ही पापा थे, इसलिए कोई परहेज नहीं किया था.’
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