15 अक्तूबर, 2016 की रात दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से गायब हुए छात्र नजीब अहमद का आज तक कोई अतापता नहीं लग सका है. बेबस मां फातिमा नफीस पिछले कई महीनों से नजीब के साथी छात्रों के सहारे दिल्ली में दरदर की खाक छान रही हैं.

फातिमा नफीस देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी गुहार लगा चुकी हैं, लेकिन नतीजा अभी तक ढाक के तीन पात है. राष्ट्रपति को दी गई अपनी अर्जी में फातिमा नफीस ने मामले की जांच सरकारी और राजनीतिक दखल से परे रख कर कराने की मांग की है. उन्होंने जेएनयू प्रशासन, दिल्ली पुलिस और सीबीआई के काम करने के तरीके पर भी सवाल उठाए हैं.

फातिमा नफीस का आरोप है कि जब वे मामले की रिपोर्ट दर्ज कराने संबंधित थाने में गईं, तो पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट लिखने से आनाकानी की. बाद में जब जेएनयू छात्रसंघ और गवाहों ने अपने बयान समेत लिखित शिकायत की, तब जा कर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की.

मामले की जांच कर रही सीबीआई ने 14 नवंबर, 2017 को दिल्ली हाईकोर्ट को सौंपी गई अपनी स्टेटस रिपोर्ट में पुलिसिया जांच पर कई सवाल खड़े किए हैं. सीबीआई ने पुलिस द्वारा 16 नवंबर, 2016 को हिरासत में लिए गए उस आटोरिकशा चालक से भी गहन पूछताछ की, जो कथित रूप से नजीब को जेएनयू से जामिया मिल्लिया इसलामिया ले गया था. आटोरिकशा चालक पुलिस को दिए गए अपने बयान से साफ मुकर गया. उस का कहना था कि उस ने ऐसा पुलिस के दबाव में आ कर बोला था.

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गौरतलब है कि दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देश पर सीबीआई ने इसी साल 16 मई को नजीब अहमद के मामले की जांच अपने हाथ में ली थी. इस से पहले जांच दिल्ली पुलिस के जिम्मे थी, जो कदम दर कदम नाकाम रही.

सीबीआई ने अदालत को बताया कि मामले से जुड़े 9 संदिग्ध छात्रों के मोबाइल फोन जब्त किए गए हैं, जिन की फौरैंसिक जांच रिपोर्ट आना बाकी है.

दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस एस. मुरलीधर व जस्टिस आईएस मेहता की 2 सदस्यीय खंडपीठ का मानना था कि जांच के दौरान सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट को ओपन कोर्ट करने की जरूरत महसूस नहीं होती. सीबीआई ने भी नजीब की मां के वकील को स्टेटस रिपोर्ट की कौपी देने से इनकार कर दिया है.

अदालत में सुनवाई के दौरान सीबीआई काउंसिल निखिल गोयल ने बताया कि सभी 9 संदिग्ध छात्रों के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स की जांच हो चुकी है, सिर्फ रिपोर्ट आना बाकी है. इस के बाद सीबीआई ने मांग की है कि मामले की इनचैंबर प्रोसीडिंग की जाए, जिस पर अदालत ने 21 दिसंबर, 2017 की सुनवाई के दौरान विचार करने का अश्वासन दिया है.

वहीं दूसरी तरफ अतिरिक्त मुख्य मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल की अदालत ने सीबीआई की उस अर्जी को विचार के लिए स्वीकार कर लिया है, जिस में आरोपी छात्रों का लाई डिटैक्शन टैस्ट कराने की मांग की गई है.

गौरतलब है कि जेएनयू के माहीमांडवी होस्टल के कमरा नंबर 106 में रहने वाला नजीब अहमद स्कूल औफ बायोटैक्नोलौजी का छात्र था. बताते हैं कि 15 अक्तूबर, 2016 को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कुछ समर्थक छात्रों के साथ नजीब का झगड़ा हुआ था और उसी रात वह लापता हो गया.

सूचना पा कर उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले से आईं मां फातिमा ने इस बात की एफआईआर दिल्ली के वसंतकुंज नौर्थ थाने में दर्ज कराई. 6 नवंबर, 2016 को नजीब की गुमशुदगी को ले कर छात्रों ने उस की मां फातिमा और दूसरे परिवार वालों के साथ विरोधप्रदर्शन किया, तो पुलिस ने फातिमा समेत बड़ी तादाद में छात्रों को हिरासत में ले लिया, जिन्हें बाद में छोड़ दिया गया. साथ ही, ऐलान हुआ कि जो भी शख्स नजीब के मामले में कोई कारगर सुराग देगा, उसे 5 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा.

इसी बीच यूनिवर्सिटी द्वारा बिठाई की गई जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश की कि नजीब से हुए झगड़े के लिए अखिल भारतीय विधार्थी परिषद के समर्थक छात्र जिम्मेदार हैं. जेएनयू की सिक्योरिटी और वार्डन ने अपनी लिखित टिप्पणी में कहा कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के समर्थकों ने नजीब को पीटा था. लेकिन आरोप यह है कि यूनिवर्सिटी की जांच समिति की रिपोर्ट साजिशन बदल दी गई.

खुद के हाईटैक होने का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस जांच के नाम पर महज खानापूरी करती रही. कभी वह यूनिवर्सिटी की तलाशी लेती तो कभी माहीमांडवी होस्टल की. साथ ही, उस ने यह भी शिगूफा छोड़ा कि नजीब आईएसआईएस में शामिल हो गया है.

जब दबाव बढ़ा, तो नजीब को खोजने के लिए घोषित इनामी रकम 10 लाख रुपए कर दी गई. साल 2017 की शुरुआत में यानी 22 जनवरी, 2017 को पुलिस ने एक नौजवान को नजीब के परिवार से फिरौती मांगने के आरोप में गिरफ्तार किया. हालांकि कोई सुबूत न होने के चलते उसे बाद में छोड़ दिया गया.

अफसोस की बात यह है कि देश की भरोसेमंद संस्था सीबीआई की जांच प्रक्रिया भी ढीली रही है. 6 महीने से ज्यादा गुजर चुके हैं, लेकिन अभी तक सिर्फ उस की स्टेटस रिपोर्ट ही अदालत के सामने आई है. 7 महीने का समय दिल्ली पुलिस पहले ही बरबाद कर चुकी है.

दरअसल, नजीब की गुमशुदगी सिर्फ सीबीआई और दिल्ली पुलिस प्रशासन की नाक का सवाल नहीं है, बल्कि यह देश की राजधानी से जुड़ा वह मामला है, जिस के चलते केंद्र सरकार की इज्जत भी दांव पर है.

सवाल यह है कि नजीब कहां है, किस हाल में है, किस के कब्जे में है, किस के दबाव में है, जो वह सामने नहीं आ रहा है, नेताओं ने भी नजीब मामले में चुप्पी साध रखी है. सिर्फ राज्यसभा सदस्य शरद यादव ने ही सीबीआई दफ्तर पर विरोध प्रदर्शन के दौरान फातिमा नफीस के आंसू पोंछे, बाकी को सांप सूंघ गया.

हालात की गंभीरता का अंदाजा लगाइए कि एक मां पिछले कई महीनों से अपने लापता लाड़ले की बाट जोह रही है, जिसे उस ने न जाने कितनी मुसीबतें सह कर पालापोसा, भविष्य बनाने की गरज से अपनी नजरों से दूर कर दिल्ली पढ़ने के लिए भेजा और आज उसी जिगर के टुकड़े को तलाशते तलाशते उस की आंखें पथराने को हैं. यह तो भला हो नजीब के उन साथी छात्रों का, जिन्होंने फातिमा का हाथ थाम रखा है, वरना हमारी व्यवस्था ने नकारेपन की सारे हदें लांघ रखी हैं.

किसी ने कभी सोचा कि दिल्ली में एक आदमी के रहनेखाने और इधरउधर पैरवी करने में हर महीने कितनी रकम खर्च होती है? एक गरीब परिवार के लिए यह हालत कितनी दुखदायी होती है, समझना आसान है. लेकिन हमारी व्यवस्था की बागडोर संभालने वाले इस से अनजान बने हुए हैं.

हमारे नेता भले ही हालात की नजाकत को समझें, लेकिन सच यही है कि नजीब मामले पर देशभर के लोगों की नजर हैं. यही नहीं, उन की आंखों में कई सवाल भी हैं, जिन्हें समझना कोई मुश्किल काम नहीं है. नजीब की किसी भी हाल में बरामदगी ही इन तमाम सवालों का जवाब है.

सीबीआई को चाहिए कि वह जल्द से जल्द मामले का परदाफाश करे, कुसूरवारों को सजा मिले, जिस से फातिमा नफीस और उन के बेटे के साथ इंसाफ हो सके.

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