बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में नन्हेनन्हे बच्चे लगातार मौत के मुंह में समाते जा रहे हैं, मांबाप के विलाप से धरती कांप रही है, हर तरफ दर्द, चीखें, आंसू, छटपटाहट, बदहवासी का आलम है और पूरा तंत्र जैसे लकवाग्रस्त है. किसी के बस में नहीं कि मासूम बच्चों को काल के गाल में जाने से रोक ले.

एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी चमकी बुखार से मरने वाले बच्चों की संख्या 150 हो गई है, वहीं अस्पतालों में भरती होने वाले बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. लेख लिखे जाने तक 414 बच्चे अस्पतालों में भरती हैं.

उत्तर प्रदेश और बिहार की खस्ताहाली तो बयान करने लायक ही नहीं है, मगर इस दुर्दशा से उबरने की कोई राजनीतिक इच्छा भी दिखती नहीं है. न राज्य स्तर पर और न ही केंद्रीय स्तर पर. बिहार का स्वास्थ्य विभाग तो खुद आईसीयू में है, आखिरी सांसें ले रहा है, वह क्या मरते हुए बच्चों को जीवनदान देगा. राज्य के अस्पतालों में न डाक्टर हैं, न दवाएं, न इंजैक्शन, न मरीजों के लिए पर्याप्त बैड.

वर्ष 2012 में इसी मुजफ्फरपुर में इंसेफेलाइटिस के चलते 120 बच्चों ने अपनी जानें गंवाई थीं. वर्ष 2013 में 39 बच्चे मर गए. 2014 में यहां 90 बच्चे खत्म हो गए. 2015 में 11 और 2016 में 4 बच्चे मारे गए. वर्ष 2017 में 11 बच्चे इंसेफेलाइटिस से मरे तो 2018 में 7 बच्चों की जानें गईं. मगर इस बार तो आंकड़ा बेहद डरावना है. यह सिर्फ मुजफ्फरपुर के आंकड़े हैं. अन्य जिलों में भी मौतों का आंकड़ा भयावह है. वैशाली, मोतीहारी, गया, चंपारण और बेगुसराय में भी लगातार मौतें हुई हैं. इस वक्त भी ये जिले इस बीमारी की चपेट में हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...