संसार में 2 तरह के लोगों के बारे में ही ज्यादा कहा और लिखा गया है. पहले वे लोग हैं, जो सोचते जाते हैं और काम करते जाते हैं. वे अपना काम समय से पहले खत्म कर लेते हैं. दूसरे वे लोग हैं जो पहले सोचते हैं और फिर करते हैं. ऐसे व्यक्ति अपना कार्य ठीक प्रकार से कर तो लेते हैं, लेकिन उन्हें अधिक सफल नहीं कहा जा सकता. कुछ लोग हैं जो न तो सोचते हैं और न ही कुछ करते हैं. हमेशा अकर्मण्य ही बने रहते हैं. उन का जीवन दूसरों पर निर्भर रहता है. आखिर में वे अस्तित्व की लड़ाई हार जाते हैं और सारा दोष दूसरों पर मढ़ देते हैं. यह वास्तविकता है जो सोच नहीं सकता, वह कुछ कर भी नहीं पाता, क्योंकि कुछ करने के लिए सब से पहले विचार की आवश्यकता होती है. बौद्धिक क्षमता तो अन्य बातों को आगे बढ़ाती है. वे सपने भी नहीं देख पाते, क्योंकि सपनोें को देखने से ही विचार उत्पन्न होता है और अंत में विचारों की ही परिणति कृति में होती है.

यदि व्यक्ति ने अपनी विचारशक्ति को मजबूत कर उस का भरपूर उपयोग कर लिया तो वह व्यक्ति उस वस्तु को भी पा लेता है जिस का उस ने विचार पाला था. पश्चिमी और भारतीय दोनों विचारकों ने सोच कर ही कर्म करने की सलाह दी है. भावुकता, अंधानुकरण, अंधविश्वास, पाखंड या कुरीतियों में फंस कर खुद के लिए खतरा न बनें. यह तभी संभव होगा जब हमारी सोच में भौतिकता व नैतिकता का संतुलन हो. तुम कुछ कर सकते हो यह बात व्यक्ति के हृदय व मन से उत्पन्न होती है जो एक आश्चर्यचकित कर देने वाली ऊर्जा लिए हुए होती है. यही शक्ति व्यक्ति को दुविधा से निकाल कर उस के द्वारा कुछ किए जाने की क्षमता को और अधिक मुखर बना देती है.

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