दिल्ली स्थित एक आईटी कंपनी में डेटा संभालने का काम करते हुए प्रेम प्रकाश ने एमबीए की पढ़ाई के लिए एक वैबसाइट इंटरनैशनल प्रोफैशनल मैनेजर्स सर्टिफिकेट यानी आईपीएमसी पर अक्तूबर 2014 में नामांकन करवाया था, जिस का मुख्यालय उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में था. उसे 2 विषयों के साथ पूरे कोर्स के लिए 2 सालों के दौरान 60 हजार रुपए किस्तों में भुगतान करने थे. पहली किस्त के तौर पर प्रेम प्रकाश ने 10 हजार रुपए 2 बार में जमा करवा दिए थे. तब उसे बताया गया था कि सर्टिफिकेट शोभित विश्वविद्यालय से मिलेगा और दिसंबर माह में पहले टर्म की औनलाइन परीक्षा होगी. साथ ही, उसे पहले सैमेस्टर की पढ़ाई संबंधी स्टडी मैटीरियल की सीडी डाक द्वारा भेज दी गई. लेकिन जब परीक्षा का समय आया तब उस की तारीख अनिश्चितकाल के लिए बढ़ा दी गई, जो कई बार बढ़ी. परीक्षा में होने वाली देरी के संबंध में काउंसलर द्वारा फोन से आश्वासन मिलता रहा. अंत में उसे बताया गया कि उस की पढ़ाई अब दूसरे विश्वविद्यालय हिमालयन के अंतर्गत होगी. परीक्षा में देरी का यही कारण बताया गया और दोबारा फौर्म भरने को कहा गया. यह प्रेम प्रकाश के लिए असहजता लिए एक झटके के समान था, क्योंकि नामांकन लिए हुए सत्र का आधा समय बीत चुका था और उस की पढ़ाई एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई थी. ऊपर से जब उसे यह भी मालूम हुआ कि मिलने वाले सर्टिफिकेट का इस्तेमाल केवल प्राइवेट जौब के लिए हो सकता है, तब उस ने आगे की किस्त नहीं जमा की और औनलाइन पढ़ाई से तौबा कर ली.
कुछ इसी तरह का कड़वा अनुभव पटना की निशा सिंह को भी हुआ. उस ने भी दर्जनों कोर्सेज करवाने का दावा करने वाली एक वैबसाइट के जरिए बीए में अपना नामांकन करवाया था. वह चाहती थी कि घर में रह कर डेढ़ साल के बच्चे की देखभाल के साथ डिगरी हासिल कर ले. बाद में उसे भी एहसास हुआ कि उस की पढ़ाई किसी मान्यताप्राप्त विश्वविद्यालय के अंतर्गत नहीं हो रही है, साथ ही कोई क्लास भी नहीं ली जा रही है. तब उस ने भी और अधिक समय व पैसा बरबाद करने के बजाय उसे अधूरा छोड़ना ही बेहतर समझा. रैगुलर क्लास के लिए आप का किसी कालेज या विश्वविद्यालय में नामांकन नहीं हो पाया है और आप औनलाइन पढ़ाई करना चाहते हैं तो यह अवश्य पता कर लें कि वहां की शिक्षा की मान्यता है भी या नहीं, जहां आप ने नामांकन लेने का मन बनाया है. ई-एजुकेशन यानी औनलाइन पढ़ाई करने वाले हजारों युवा ठगी के शिकार हो चुके हैं. उन के कीमती साल और पैसा दोनों बरबाद हो चुके हैं. इसलिए नामांकन से पहले यह पता लगा लेना जरूरी है कि वे किस मान्यताप्राप्त विश्वविद्यालय का सर्टिफिकेट दे रहे हैं, या केवल कोचिंग करवा रहे हैं, या फिर सिर्फ सलाहकार बने हुए हैं, उस शिक्षा से किस तरह की और कहां व कैसी नौकरी मिल सकती है.
फर्जी बोर्ड
शिक्षा के व्यवसायीकरण, ठगी और सर्टिफिकेट के फर्जीवाड़े में राजधानी दिल्ली कम कुख्यात नहीं है. बीच में ही पढ़ाई छूटने के बाद दिल्ली एनसीआर के अमित कुमार को किसी ने औनलाइन पढ़ाई के जरिए 12वीं करने की सलाह दी, ताकि उसे कोई अच्छी नौकरी मिल जाए. उन्हीं दिनों उसे समाचारपत्र में नकली औनलाइन शिक्षा देने वाले बोर्डों के बारे में पढ़ने को मिला. समाचार से पता चला कि 2 फर्जी बोर्डों, ‘दिल्ली उच्चतर माध्यमिक शिक्षा परिषद’ और ‘उच्चतर माध्यमिक शिक्षा परिषद दिल्ली’ की बैवसाइट्स धड़ल्ले से चल रही हैं. इन पर भारतीय शिक्षा ऐक्ट के तहत बोर्ड परीक्षा दिलवाने का अधिकार होने का दावा किया गया था. इन में से एक संस्थान ने अपनी प्रामाणिकता बताने के लिए गृहमंत्री के एक अधिकारी का पत्र भी लगा रखा था. इस बोर्ड से फौर्म भरने वाले उम्मीदवारों को मौखिक तौर पर बताया जाता था कि यह बोर्ड सीबीएसई की तरह ही है. इस खबर ने अमित को काफी मायूस कर दिया.
पिछले दिनों अमेरिकी मीडिया से आई एक खबर के मुताबिक करांची, पाकिस्तान की एक सौफ्टवेयर कंपनी एग्जेक्ट इंप्लाएंस ने अमेरिकी विदेश मंत्री जौन कैरी के हस्ताक्षर वाली फर्जी डिगरियां बेच डाली थीं. जिस में विदेश में रहने वाले दर्जनों भारतीय भी ठगी के शिकार हुए थे. इस कंपनी की वैबसाइट ने अपनी छवि एक बड़े शिक्षा साम्राज्य की बना रखी है, जिस के अंतर्गत सैकड़ों नामीगिरामी विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय जुड़े हुए हैं. इस ने अमेरिका स्थित विश्वविद्यालयों के कैंपस में सेवाएं देने के दावे के साथसाथ कथित नामी प्रोफैसरों की तसवीरें तक लगा रखी हैं रिपोर्ट के अनुसार, आबूधाबी में रहने वाले 39 वर्षीय भारतीय नागरिक मोहन ने आरोप लगाया है कि कंपनी ने उन्हें औनलाइन अंगरेजी का कोर्स करवाने का झांसा दे कर 30 हजार डौलर यानी करीब 20 लाख रुपए ठग लिए. इसी सिलसिले में उन्हें अमेरिकी दूतावास से भी एक कथित अधिकारी का फोन आया, और उस ने भी 7.5 हजार डौलर ठग लिए. इस मामले में मुश्किल यह है कि पाकिस्तान में ऐसे मामले से निबटने के लिए पर्याप्त कानून नहीं हैं.
भ्रमजाल और सब्जबाग
कई और मामले हैं जिन में युवा बेहतर भविष्य बनाने की चाह में ठगी के शिकार होते रहे हैं. वे औनलाइन एजुकेशन की तमाम वैबसाइट्स पर लुभावने दावों और वादों के झांसे में आ जाते हैं, जैसा कि प्रेम प्रकाश और निशा सिंह के साथ हुआ. एडुकार्ट वैबसाइट को देखने के बाद कोई भी पहली ही नजर में उस के कोर्स, विश्वविद्यालयों के नाम व स्तर, स्टडी मैटीरियल की सुविधाएं और प्लेसमैंट के वादे को देख कर प्रभावित हो सकता है. इस के पास हजारों की संख्या में छोटेबड़े कोर्सेज की सूची हैं, जिन में 10वीं, 12वीं से ले कर मैडिकल, इंजीनियरिंग या नौकरियों के लिए प्रतियोगिता परीक्षाओं की कोचिंग करवाई जाती है, तो बीए, बीकौम, बीएससी, एमए, एमकौम, एमएससी, बीसीए, एमसीए, एलएलबी, बीबीए जैसे रैगुलर कोर्सेज की पढ़ाई करवाने के दावे किए गए हैं. इन की विशेषता वाले कोर्स में इन्फौर्मेशन टैक्नोलौजी, एचआर, मार्केटिंग, रिटेल, औपरेशंस, एविएशन, औयल ऐंड गैस, जर्नलिज्म, डिजिटल मार्केटिंग, प्रोजैक्ट मैनेजमैंट, प्रोग्रामिंग लैंग्वेज, माइक्रोसौफ्ट कोर्सेज, एडोब कोर्सेज आदि हैं. वैबसाइट के अनुसार, लोकप्रिय और सर्वाधिक मांग वाले कोर्स में एमबीए, डिप्लोमा, पीजीडीएम, पोस्टग्रेजुएट तक के कोर्स मुख्य हैं. और तो और, फैमिली बिजनैस के गुर सिखाने वाले कोर्स को एक प्रोफैशनल तरीके से पेश किया गया है. अलगअलग सालाना फीस वाले इन कार्सेज को राज्यस्तरीय मान्यताप्राप्त, प्राइवेट या डीम्ड यूनिवर्सिटी के सिलेबस और स्टडी मैटीरियल के तहत सर्टिफिकेट दिए जाते हैं. इन में अन्नामलाई यूनिवर्सिटी, भारती विद्यापीठ, डीम्ड यूनिवर्सिटी, कर्नाटक स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी, आचार्य नागार्जुन यूनिवर्सिटी, यूपीईएस, टीएनओयू आदि के अतिरिक्त दिल्ली सरकार या भारत सरकार द्वारा स्किल कोर्स मुहैया करवाने वाले इंस्टिट्यूट भी शामिल हैं.
इस वैबसाइट ने आईटी सैक्टर या मैडिकल में अधिक मांग वाले महंगे प्रोफैशनल कोर्सेज को भी शामिल कर लिया है, जिन के लिए 85 हजार रुपए सालाना से ले कर 6 लाख रुपए तक फीस वसूली जाती है. यानी कि इस पोर्टल ने विभिन्न कोर्सेज को सामानों से अटे पड़े एक मौल की तरह पेश किया है, जिस में कई लुभावने अवसर दिए गए हैं. बेहतरीन कैरियर के सब्जबाग दिखाए गए हैं. प्रामाणिकता दर्शाने वाले विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों के अधिकारियों के पत्र समेत प्लेसमैंट के लिए नामीगिरामी कंपनियों के लोगो लगाए गए हैं. यहां तक कि अपने दोस्तों को इसे रेफर करने पर कुछ राशि कैशबैक तक के औफर भी शामिल किए गए हैं.
इस संदर्भ में एक अहम बात यह है कि एडुकार्ट, आईपीएमसी या फिर आईआईबीएम के काउंसलर्स ने इस बात को स्वीकार किया कि उन के यहां से मिलने वाले सर्टिफिकेट से प्राइवेट या अर्धसरकारी संस्थानों में ही नौकरी मिल सकती है. सरकारी नौकरियों के लिए उन के सर्टिफिकेट को शायद ही मान्यता मिले. उधर, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि उस ने अभी तक किसी भी विश्वविद्यालय या संस्थान को औनलाइन कोर्स चलाने के लिए मान्यता प्रदान नहीं की है. इस ने दूरस्थ शिक्षा परिषद यानी डीईटी को मान्यता दी है, जो मुक्त विश्वविद्यालयों और दूरस्थ शिक्षा प्रणाली के समन्वय और विकास तथा उन के मानकों की स्थापना के लिए जिम्मेदार है. इसे ही वैबसाइट्स के जरिए औनलाइन पढ़ाई को जोड़ कर भ्रामक बना दिया गया है. यूजीसी के अनुसार, निजी और सरकारी स्तर के राज्य विश्वविद्यालय उस राज्य से बाहर अपना परिसर या स्टडी सैंटर नहीं स्थापित कर सकते हैं. वे जहां स्थित हैं उसी राज्य में अपना स्टडी सैंटर अर्थात कालेज स्थापित करने की यूजीसी से मान्यता ले सकते हैं. इस संदर्भ में यूजीसी ने उन को सख्तीभरा नोटिस भी जारी किया है, जो मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा के जरिए शिक्षा प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं.
संदिग्ध मान्यता और असर
औनलाइन शिक्षा और कोर्स के संबंध में पटना के हाईकोर्ट में कार्यरत एक कर्मचारी पद्मसंभव श्रीवास्तव ने सूचना का अधिकार के तहत कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारियां हासिल की हैं, जो काफी सतर्क करने वाली हैं. जानकारी के अनुसार, यूजीसी ऐसी डिगरियों को अवैध करार दे चुका है और उस ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि इन दिनों कई विश्वविद्यालय और संस्थान औनलाइन एजुकेशन प्रोग्राम, डिस्टैंस लर्निंग प्रोग्राम एवं औनलाइन डिगरी का विकल्प उपलब्ध करवा रहे हैं, जिन्हें शिक्षा नियामक अर्थात यूजीसी मान्यता नहीं देता है. उन से सैकड़ों वैबसाइटें जुड़ी हुई हैं, जो ऐसे विश्वविद्यालयों से अपनी संबद्धता बता कर स्टडी मैटीरियल व सर्टिफिकेट बेचती हैं. कर्नाटक स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी यानी केएसओयू और सिक्किम मणिपाल यूनिवर्सिटी यानी एसएमयू ऐसी शिक्षा देने वाले विश्वविद्यालयों में मुख्य हैं. इस के अतिरिक्त, डीम्ड कहलाने वाली यूनिवर्सिटी भी ऐसी डिगरी के लिए अपना नाम दे रही है. केएसओयू तो छात्रछात्राओं को अपने पसंदीदा कोर्स या विषयों को चुनने का विकल्प भी दे रही है. इस के जरिए विद्यार्थी अपने उस विषय का भी आग्रह कर सकते हैं, जिस को उस ने औफर नहीं किया है. इस पद्धति के तहत यूनिवर्सिटी वीडियो क्लासेज के माध्यम से अपने छात्रों को पूरे देश में कहीं भी पढ़ाने का दावा करती हैं.
जहां तक इन से मिलने वाली डिगरियों की मान्यता का सवाल है, तो केएसओयू के वाइस चांसलर प्रोफैसर एम के कृष्णन ने भी स्वीकारा है कि औनलाइन डिगरियां भारतीय शिक्षा प्रणाली के तहत नौकरी के लिए मान्य नहीं हैं, लेकिन उन का कोर्स अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मानक पर खरा उतरता है. इस के लिए एमओयू के अतिरिक्त दूसरी यूनिवर्सिटी ने मुंबई की एक वैबसाइट स्कूलगुरु डौटकौम के साथ करार किया है. हालांकि कृष्णन यह भी बताते हैं कि भले ही यह प्रणाली भारत में स्वीकार्य है और कानूनी दायरे में नहीं आती है, लेकिन यह एक ग्लोबल ट्रैंड है, जिस का अनुसरण यूनिवर्सिटी द्वारा किया जा रहा है. कुछ इसी तरह का हाल सिक्किम मणिपाल यूनिवर्सिटी के एमबीए प्रोग्राम का भी है, जो दिल्ली की एक संस्था आईएसीएम की वैबसाइट से संबद्ध है. यह औनलाइन तरीके से पढ़ाई के साथसाथ परीक्षाएं भी संचालित करवाती है. आईएसीएम के एक काउंसलर के अनुसार, 4 सैमेस्टर पूरे होने के बाद जो डिगरी प्रदान की जाती है उस में कहीं भी औनलाइन का उल्लेख नहीं होता है, बल्कि दूरस्थ पद्धति का जिक्र किया जाता है.
एसएमयू के डिस्टैंस एजुकेशन के निदेशक प्रोफैसर एन एस रमेशमूर्ति भी औनलाइन डिगरी जैसी किसी भी व्यवस्था से इनकार करते हैं. साथ ही यूजीसी की डिस्टैंस एजुकेशन ब्यूरो की पूर्व अधिकारी मंजुलिका श्रीवास्तव के अनुसार, देश में फिलहाल औनलाइन डिगरियों और कोर्स के लिए कोई विशेष नियमकानून तय नहीं हैं. न तो ब्यूरो और न ही किसी संस्थान या विश्वविद्यालय को ऐसे किसी कोर्स की अनुमति जारी की गई है. इसी तरह से अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद यानी एआईसीटीई के पूर्व अध्यक्ष एस एस मंथा ने भी ऐसी औनलाइन डिगरी और कोर्स पर चिंता व्यक्त की है. वे इस संबंध में सरकार द्वारा शीघ्र कदम उठाए जाने की भी बात करते हैं.
डिजिटल एजुकेशन
भारत में डिजिटल एजुकेशन सिस्टम एक नई क्रांति के तौर पर आ सकता है बशर्ते, इसे एजुकेशन माफिया में घुस आए जालसाजों से बचा कर रखा जाए. इस संदर्भ में मौजूदा राजग सरकार द्वारा एक पहल की जा चुकी है. भारतीय तकनीकी संस्थान में पढ़ाए जाने वाले उच्च स्तरीय शिक्षा को एक सामान्य विद्यार्थी तक पहुंचाने के लिए 25 सितंबर, 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘स्वयम’ नामक एक वैबपोर्टल की शुरुआत की गई है. इस तरह से भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने स्वयं एसडब्लूएवाईएएम अर्थात स्टडी वेब्स औफ ऐक्टिव लर्निंग फौर यंग एस्पायरिंग माइंड्स नाम का एक मैसिव ओपन औनलाइन कोर्सेज का प्लेटफौर्म तैयार किया है. यहां से औनलाइन पढ़ाई कर विश्वस्तरीय अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा प्राप्त की जा सकती है. इसे पिछले कुछ सालों के दरम्यान भारत सरकार द्वारा अंतरिक्ष में भेजे गए एडुसेट नामक उपग्रह के सफलतापूर्वक कार्य करने के बाद टैलीविजन और रेडियो के जरिए दूरस्थ शिक्षा में बढ़ी सुविधाओं की अगली कड़ी के तौर पर देखा जा रहा है. यानी कि समय के साथसाथ भारीभरकम किताबें और शिक्षा के पुराने माध्यम बदल गए हैं.
नए जमाने के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश में अब नई तकनीकी इंटरनैट औडियो और वीडियो ग्राफिक्स की सुविधाएं भी शामिल हो गई हैं. इन के द्वारा दी जाने वाली शिक्षा में नए प्रयोग जारी हैं. यह कहें कि अब पर्सनल कंप्यूटर, लैपटौप, टैबलेट, मोबाइल के माध्यम से शिक्षा का जिस तरह से प्रसार बढ़ रहा है उस से न केवल शिक्षक और विद्यार्थी के बीच एक मजबूत संबंध कायम हो गया है, बल्कि सीखने के तरीके में भी काफी नयापन आ गया है, जिस से गूढ़ से गूढ़ विषय को भी सजीव प्रसारण और थ्रीडी ग्राफिक्स के द्वारा बहुत सहज और सरल बना दिया गया है. इंडियन स्कूल औफ बिजनैस हैदराबाद, भारतीय प्रबंध संस्थान और भारतीय तकनीकी संस्थान डायरैक्ट टू डैस्कटौप मौडल की शिक्षा पहले से ही शुरू कर चुके हैं, जिन में मुंबई का भारतीय तकनीकी संस्थान सब से आगे बने रह कर विशेष कार्यक्रम चला रहा है.
बहरहाल, ये सारी सुविधाएं तभी ग्रामीण स्तर तक लोगों को मिल पाएंगी जब इंटरनैट की ब्रौडबैंड कनैक्टिविटी के साथ डिजिटल लाइब्रेरी की सुविधाएं उपलब्ध हो सकें. वैसे कुछ सरकारी और निजी संस्थानों ने भी अपनी औनलाइन दूरस्थ शिक्षा की शुरुआत कर दी है. उन में आचार्य नागार्जुन यूनिवर्सिटी, अन्नामलाई यूनिवर्सिटी, नरसी मोनजी और एमिटी यूनिवर्सिटी मुख्य हैं.
घर बैठे हार्वर्ड से पढ़ाई
ई-लर्निंग या ई-शिक्षा घर बैठे हार्वर्ड, औक्सफोर्ड, एमआईटी, आईआईटी समेत दुनिया के दूसरे विश्वविद्यालयों से भी हासिल की जा सकती है. इस बारे में सामान्य भारतीय युवाओं को बहुत कम जानकारी है. हाल में ही शुरू हुए मैसिव ओपन औनलाइन कोर्सेज यानी एमओओसी की लोकप्रियता दुनियाभर में बढ़ी है. ऐसे कोर्स इंटरनैट से संचालित होने वाली वैबसाइट्स ऐडेक्स (श्वस्र3), कोरसेरा और यूडासिटी के जरिए करवाए जा रहे हैं, जिस के तहत कुछ निशुल्क तो कुछ के लिए कोर्स या सर्टिफिकेट के नाम पर सामान्य शुल्क वसूला जाता है. हालांकि इन का प्रचार मुफ्त शिक्षा के तौर पर किया गया है. एमओओसी सामान्यतया किसी वीडियो की तरह होते हैं, जिस में विषय के विशेषज्ञ या प्रोफैसर अलगअलग सरल भाषा में टुकड़ों में समझाते हैं. इस का प्रयोग करने वालों की मानें तो यह कालेज में होने वाले लेक्चर्स की तुलना में ज्यादा सरलसहज रूप में ग्राह्य होते हैं तथा इन्हें अपनी मरजी के अनुसार बारबार सुना जा सकता है. इन में कई बार एनिमेशन या ग्राफिक्स के जरिए भी विषय की बारीकियों को समझाया जाता है. इन में कई वैसी जानकारियां होती हैं जो सामान्य किताबों में नहीं मिलती हैं. ज्ञान के भूखों के लिए यह किसी खजाना हाथ लगने से कम नहीं होता है. वे कोर्स को डाउनलोड करते हैं और पैनड्राइव में सहेज कर रख लेते हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर उस का कभी भी फिर से इस्तेमाल किया जा सके.
इस की भारत में शुरुआत करने वाले अनंत अग्रवाल के अनुसार, पाठ्य सामग्री ओपन कंटैंट के रूप में किसी के लिए भी ऐडेक्स (222.द्गस्र3.शह्म्द्द) की तरह दूसरी वैबसाइट (ष्टशह्वह्म्ह्यद्गह्म्ड्ड, स्रड्डष्द्बह्ल4, स्2ड्ड4ड्डद्व) पर बहुत ही कम कीमत में उपलब्ध है. इसे अपनी जरूरत के अनुसार उपयोग में लाया जा सकता है. यानी वीडियो के रूप में उपलब्ध सामग्री डाउनलोड करने पर यह शिक्षा की एक सार्वजनिक सामग्री की तरह बन जाती है. इन के माध्यम से अब ई-शिक्षा के कई नए तरीके विकसित किए जा रहे हैं. पढ़ाई को आसानी से समझने लायक बनाने के लिए सैल्फ लर्निंग, औनलाइन डिस्कशन ग्रुप्स या विकीपीडिया आधारित सामग्रियों का संकलन तैयार किया गया है. इस पर सामान्यतया समाजविज्ञान, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, विभिन्न भाषा ज्ञान, डाटा विज्ञान, ब्रेन साइंस, अर्थशास्त्र के सिद्धांत, प्रबंधन, मौसम विज्ञान, गणित की विभिन्न शाखाएं, कंप्यूटर ज्ञान की बेसिक से ले कर सौफ्टवेयर, हार्डवेयर संबंधी कोर्स आदि के सैकड़ों विषय उपलब्ध हैं, जिन्हें 4 से 10 हफ्तों के कोर्स रूप में बनाया गया है. साथ ही, भारत के इतिहास और समाज विज्ञान पर आधारित एंगेजिंग इंडिया नाम का कोर्स 10 हफ्ते का है. इसी तरह का एक अन्य कोर्स डाटा एनालिसिस टू द मैक्स भी है. इस के पूरा होते ही किसी बड़े विश्वविद्यालय का सर्टिफिकेट मिल जाता है. साइट पर हर कोर्स की विस्तृत जानकारी दी गई है, विषय के विशेषज्ञ शिक्षक से संपर्क करने की सुविधा भी दी गई है. इस के कुछ कोर्स हिंदी, उर्दू या दूसरी कई भाषाओं में भी बनाए गए हैं.
इस की बढ़ती लोकप्रियता और उपयोगिता के बारे में अनंत अग्रवाल बताते हैं कि भारत में हजारों प्रतिभावान विद्यार्थियों की जरूरतों के लिए न तो पर्याप्त शिक्षण संस्थान हैं और न ही उतनी संख्या में उन के अनुपात में योग्य शिक्षक ही हैं. जिन छात्रों की पहुंच स्कूलकालेजों तक नहीं हो पाई है उन के लिए पढ़ाई का यह तरीका आसान साबित हो रहा है. यही कारण है कि इस के उपयोगकर्ताओं की संख्या दिनप्रतिदिन बढ़ती जा रही है. ऐडेक्स पर इन दिनों 40 लाख से ज्यादा लोग शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, जिन में 4 लाख भारत के ही हैं. इस तरह से भारत अमेरिका के बाद ऐडेक्स के जरिए पढ़ाई करने वाला दूसरा सब से बड़ा देश बन चुका है. इस की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए एडेक्स का मोबाइल एप्स तक लौंच किया जा चुका है जिस की मदद से कोई भी कोर्स अपनी जरूरत और सुविधा के अनुसार किया जा सकता है. इस से भारत की आईआईटी मुंबई, आईआईएम बेंगलुरु और बिट्स पिलानी जैसे संस्थानों द्वारा साझेदारी का समझौता किया जा चुका है. साथ ही इस का रोजगार उपलब्ध करवाने वाली कंपनी एस्पाइरिंग माइंड्स के साथ भी करार किया गया है जिस के तहत रोजगार खोजने वाले से ले कर रोजगार देने वाले, दोनों की जरूरतें पूरी करने की योजना बनाई गई है.
हालांकि ये कोर्सेज किसी 2, 3 या 4 वर्षीय डिगरी की तरह नहीं हैं लेकिन ये उन डिगरियों का वजन बढ़ाने के काम आ सकते हैं. इन की मदद से नौकरी पाने और इंटरव्यू में सफल होना आसान हो सकता है. ये कोर्स उन लोगों के काम आ सकते हैं जो स्कूलकालेजों की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं, लेकिन व्यावहारिक तौर पर सौंपे गए कार्य को कुशलता से पूरा कर पाने में मुश्किल महसूस कर रहे हैं. यही वजह है कि मौजूदा केंद्र सरकार ने इस की उपयोगिता को अहम मानते हुए कई भारतीय संस्थानों को इस से जोड़ा है. फिर भी एक बड़ा सवाल है कि भारत के उन गांवोंकसबों के युवाओं या जरूरतमंदों तक इस की पहुंच किस हद तक बन पाती है जो आधुनिक इंटरनैट की तकनीक से वंचित हैं.
ई-लर्निंग या शिक्षा
ई-शिक्षा यानी ई-पढ़ाई या ई-लर्निंग का अर्थ इलैक्ट्रौनिक समर्थित शिक्षा और अध्ययनअध्यापन से है. इस का मूल उद्देश्य शिक्षा प्राप्त करने वाले शिक्षार्थी के व्यक्तिगत अनुभव, अभ्यास और ज्ञान के संदर्भ में जानकारी को स्थायित्व देना है. इस में इंटरनैट संचालित वैब आधारित शिक्षा, कंप्यूटर आधारित शिक्षा, आभासी कक्षाएं और दूसरे तरह के डिजिटल सहयोगों में औडियो या वीडियो व सीडीडीवीडी के रूप में पाठ्यसामग्री शामिल होती हैं. इसे खुद या अनुदेशक के नेतृत्व में प्राप्त किया जा सकता है. इस का चलन अपने देश में भले ही हाल के कुछ वर्षों में आया हो, लेकिन शुरुआत वर्ष 1993 में विलियम डी ग्रजियाडी के द्वारा कुछ सौफ्टवेयर प्रोग्राम के साथ इलैक्ट्रौनिक्स मेल, दो वैक्स नोट्स के मेलजोल और गोफर या लिंक्स को एकसाथ मिला कर की गई थी. इस आधार पर औनलाइन अनुसंधान, शिक्षा, सेवा और अध्यापन को कार्यरूप देना संभव हुआ. कंप्यूटर और इंटरनैट जगत में आए क्रमिक विकास के साथसाथ ई-शिक्षा में विकास होता चला गया. फिलहाल औनलाइन पढ़ाई दूरस्थ शिक्षा का ही एक रूप है, जिस का भारत में आशाजनक भविष्य है.
ई-शिक्षा से संबंधित तकनीकी बातों को एकतरफ रखते हुए युवाओं को इसे अपनाने से पहले कुछ आवश्यक सावधानी बरतनी होगी. पहली बात तो यह कि यहां मौखिक आश्वासनों का कोई अर्थ नहीं है, जो पोर्टल के काउंसलर द्वारा दिए जाते हैं. दूसरी अहम बात पोर्टल के विश्वसनीयता की जांच की जानी चाहिए. उस के बाद ही उस से औनलाइन सेवाएं ली जानी चाहिए. अर्थात उस के एकएक नियम को बारीकी से समझना चाहिए. कई बार औनलाइन भुगतान के सिस्टम में कुछ स्टैप्स औटोमैटिक बने होते हैं, जिन से वे आप की मरजी के बगैर आप के दिए गए बैंक या डैबिट/क्रैडिट कार्ड से पैसे की निकासी कर लेते हैं. सब से महत्त्वपूर्ण जानकारी दी गई यूनिवर्सिटी और सर्टिफिकेट की वैधता की, अन्यथा आप की पढ़ाई बीच में ही अटक सकती है. बहरहाल, भारत सरकार के ई-पोर्टल रा.इ.सू.प्रौ.सं. अर्थात राष्ट्रीय इलैक्ट्रौनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान पर कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां दी गई हैं. इस की आधिकारिक वैबसाइट 222.ठ्ठद्बद्गद्यद्बह्ल.द्दश1.द्बठ्ठ पर अपना अकाउंट खोल कर अर्थात रजिस्टर कर के इस के लिंक तक पहुंचा जा सकता है. यहां दी गई शिक्षा संबंधी जानकारियां निशुल्क और शुल्क के साथ दोनों ही रूप में हैं. डिजिटल इंडिया की शुरुआत हो चुकी है. ऐसे में साइबर क्राइम के कुख्याती भी फर्जी वैबसाइट या एप्स के जरिए फंसाने लायक जाल बुन सकते हैं. लुभावनी सुविधाओं का सब्जबाग दिखा सकते हैं. यह भी संभव है कि वे नामीगिरामी विश्वविद्यालयों में नामांकन करवाने से ले कर प्रतिष्ठित कंपनियों में लाखों के पैकेज की नौकरी का लालच भी दे दें. इन से आप को ही बचना पड़ेगा.