छोटे द्वीपदेशों में से एक टूवालू गणराज्य का नामोनिशान अगले कुछेक महीनों में दुनिया के नक्शे से लुप्त होने जा रहा है. यह अकेला द्वीपदेश या द्वीप नहीं है जिस के वजूद पर खतरा मंडरा रहा है. माना जा रहा है कि 2020 तक कई द्वीप और द्वीपदेश दुनिया के नक्शे से गायब हो जाएंगे. ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन पर हाल ही में पेरिस सम्मेलन हुआ. नतीजे कुछ खास नहीं निकले. ग्रीन गैस व कार्बन डाइऔक्साइड के उत्सर्जन के मामले में विकसित देश विकासशील देशों पर जोरआजमाइश करते रहे और इसी रस्साकशी में क्लाइमेट चेंज समिट खत्म हो गया.

जहां तक ग्लोबल वार्मिंग के असर का सवाल है तो यह पूरी दुनिया पर हावी है. तमाम नियमों, बंधनों को ताक पर रख कर मौसम मनमौजी हो गया है. कहीं रिकौर्ड बारिश तो कहीं भयंकर सूखा, कहीं तबाही का तूफान. आजकल तो रेगिस्तान के माने तक बदल गए हैं. रेगिस्तान में रिकौर्ड बारिश और बाढ़ ही नहीं, कभीकभी ओस तक को जमा देने वाली ठंड पड़ रही है. दुनिया के लिए 2014 रिकौर्ड गरमी का साल रहा. इन सब के बीच, चिंता का विषय ग्लेशियरों का सिकुड़ना और समुद्र का जलस्तर बढ़ना है. इस का सब से अधिक खमियाजा भुगत रहे हैं अनगिनत द्वीप और द्वीपदेश. इस के कारण दुनिया के नक्शा बदलता नजर आ रहा है.

मालद्वीप, मौरीशस, लक्षद्वीप का बड़ा भूभाग पानी में डूब चुका है. ऐसे में आशंका सिर उठाने लगी है कि दुनिया के नक्शे पर जितने भी द्वीप हैं, एकएक कर के सब समुद्र, महासमुद्र और खाड़ी के गर्त में समा जाएंगे. देरसवेर अंडमान द्वीपसमूह, बंगलादेश, श्रीलंका जैसे देशों का वजूद भी मिट सकता है.

बहरहाल, अभी आशंका टूवालू को ले कर है. इस समय हवाई और आस्ट्रेलिया के करीब प्रशांत महासागर में बसे पौलनेशियन द्वीपदेश टूवालू पर उस के डूबने का खतरा मंडरा रहा है. यह महज 26 वर्ग किलोमीटर भूभाग वाला देश है, जिस की आबादी महज 12,373 है और यह समुद्रतल से सिर्फ 5 मीटर ऊपर है. यह दुनिया का चौथा सब से छोटा द्वीप है और दूसरा सब से छोटा द्वीपदेश. मार्च 2015 में जबरदस्त चक्रवाती तूफान आने के बाद इस के बड़े भूभाग पर भयावह तबाही का मंजर देखने को मिला था. इस के बाद देश में आपातकाल घोषित कर दिया गया था. लेकिन अब समुद्र का जल स्तर बढ़ने से पूरे देश के डूबने का खतरा बढ़ गया है. इसी चिंता के मद्देनजर टूवालू के प्रधानमंत्री एनेल सोपोआगा ने राष्ट्रसंघ में गुहार लगाई है. जवाब में राष्ट्रसंघ ने टूवालू को बचाने का हर संभव प्रयास करने का आश्वासन दिया है. कभी ब्रिटिश उपनिवेश रहा टूवालू 1978 में आजाद हो गया था. एक आजाद देश के रूप में यह अपनी पहचान बना ही रहा था कि 1993 में समुद्र जलस्तर के बढ़ने से इस के वजूद पर खतरा मंडराने लगा.

बढ़ता खतरा

हालांकि, अकेले टूवालू ही नहीं, दुनिया के बहुत सारे द्वीप देश और द्वीपों के डूबने या मटियामेट हो जाने का खतरा दिनोंदिन गहराता जा रहा है. फिलहाल 40 देशों में समुद्र का जलस्तर बढ़ने से हजारों की संख्या में लोग बेघर हो चुके हैं. बंगाल की खाड़ी में स्थित न्यू मूर भी पूरी तरह जलमग्न हो चुका है. यह न्यू मूर भारत में पूर्वाशा और बंगलादेश में दक्षिण तलपट्टी के नाम से जाना जाता है. इस पर भारत और बंगलादेश दोनों अपना दावा करते रहे हैं लेकिन अब यह लगभग बंगाल की खाड़ी की गोद में समा चुका है. जो जमीन रह गई है वह एक हद तक निर्जन है. इस के अलावा भारत का पश्चिम बंगाल और बंगलादेश डेल्टाई क्षेत्र हैं जो समुद्र की सतह से बहुत कम ऊंचाई पर बसे हुए हैं. यहां हिमालय से निकली गंगा, पद्मा, मेघना, ब्रह्मपुत्र जैसी भारत और बंगलादेश की बहुत सारी नदियों का मुहाना है. जलवायु परिवर्तन की वजह से खाड़ी का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है जिस के कारण डेल्टा के बहुत सारे द्वीप खाड़ी में समा रहे हैं.

प्रशांत महासागर के माइक्रोनेशिया, मेलानेशिया के द्वीप सब से अधिक खतरे में हैं. अकेले माइक्रोनेशिया में किरीबाती, मार्शल द्वीपसमूह और नौरू संप्रभु देश हैं. दुनिया के सब से छोटे द्वीपदेश में नौरू भी एक ऐसा ही द्वीपदेश है जो टूवालू से भी छोटा द्वीपदेश है. इस के भूभाग का क्षेत्रफल केवल 21 वर्ग किलोमीटर है. इस की आबादी लगभग साढ़े 13 हजार है. फिलहाल इस पर खतरा इतना गहरा नहीं है. ऐसा ही एक द्वीप समूह है कार्टरिट, जो दक्षिणपश्चिम प्रशांत महासागर में बसा है. 2,500 आबादी वाले इस द्वीपसमूह में हालात इतने खराब हो चुके हैं कि यह भी निर्जन होने के कगार पर है, क्योंकि समुद्र का जलस्तर बढ़ने से यहां उगाए जाने वाली फसलों पर असर पड़ रहा है. खेत बरबाद हो चुके हैं. कुएं नष्ट हो चुके हैं. कुल मिला कर जीवन की सहूलियतें खत्म हो रही हैं.

नई जगह की तलाश

हिंद महासागर में लगभग 1,200 द्वीपों पर बसा मालद्वीप गणराज्य समुद्र से महज 1.3 मीटर की ऊंचाई पर है. यह भी जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहा है. यहां के राष्ट्रपति मोहम्मद नशीर ने समुद्र जल स्तर बढ़ने की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के मद्देनजर समुद्र के नीचे संसद की कार्यवाही की थी. नशीर ने भावी खतरों को देखते हुए अपने द्वीपदेश को नई जगह बसाने के लिए जमीन खरीदने की बात कह कर दुनिया को चौंका दिया था.

इसी तरह प्रशांत महासागर में स्थित किरीबाती गणराज्य पर जलस्तर का खतरा मंडरा रहा है. किरीबाती सरकार भी 5 हजार एकड़ जमीन खरीदने पर विचार कर रही है, ताकि आबादी को वहां बसाया जा सके. गौरतलब है कि यह किरीबाती 32 प्रवाल द्वीपों का एक समूह है. देश की आबादी इन्हीं द्वीपों में बसती है. प्रशांत महासागर का जलस्तर बढ़ने से ज्वार के दौरान समुद्र की लहरें घरों तक में पहुंच जाती हैं. जाहिर है ये सभी द्वीप डूबने के कगार पर हैं. इसी तरह कोरल सागर, अराफुरा सागर और कारपेनटारिया खाड़ी में टौरेस स्टे्रट के 274 द्वीपों में से बहुत सारे पहले ही डूब चुके हैं. जो बचे हैं उन में बसे घरों में ज्वार के समय समुद्र का पानी घुस जाता है. खारे पानी से खेती तबाह हो चुकी है. यहां की विस्थापित आबादी तरावा के द्वीप में पनाह लेरही है लेकिन यह कोई स्थायी इंतजाम नहीं है. प्रशांत महासागर का सोलोमन द्वीपसमूह भी सुरक्षित नहीं है.

पर्यावरण से खिलवाड़

जाहिर है दुनिया की आबादी का अच्छाखासा हिस्सा (लगभग ढाई करोड़) विस्थापित हो चुका है. भविष्य में और भी विस्थापन के शिकार होंगे. हालांकि ऐसे लोगों को विस्थापन के लिए कृत्रिम द्वीप बनाने पर विचार हो रहा है लेकिन आखिरकार समस्या का यह कोई अंतिम समाधान नहीं है. पश्चिम के बढ़ते औद्योगिकीकरण का खमियाजा विकासशील, अविकसित और कमजोर देशों को उठाना पड़ रहा है. ऐसे में पर्यावरण से खिलवाड़ देरसवेर पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी है. वर्ष 1900 से ले कर अब तक दुनिया में समुद्र जलस्तर औसतन 19 सैंटीमीटर बढ़ा है. अनुमान है कि इस शताब्दी के अंत तक यह जलस्तर 26 सैंटीमीटर से ले कर 83 सैंटीमीटर के बीच बढ़ने वाला है. 2050 तक और 2 करोड़ लोग विस्थापित होंगे.

अभी भी समय है. विश्व को विकसित, विकासशील और अविकसित देश का भेदभाव भुला कर दुनिया को बचाने के लिए बेहतर से बेहतर तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए. कृत्रिम द्वीपों के अलावा समुद्र से शहरों के बचाव के लिए नीदरलैंड तकनीक पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए. आज से लगभग एक हजार साल पहले नीदरलैंड ने समुद्र से शहरों के बचाव की तकनीक विकसित की थी. आज भी नीदरलैंड की सैंड इंजन तकनीक बाढ़ के नियंत्रण में बहुत ही कारगर है. इस के अलावा, समुद्र में बढ़ते जलस्तर पर लगाम लगाने के लिए अंडरवाटर गेट प्रोजैक्ट मोस, तैरते गांव, तैरती खेती की तकनीक को दुनियाभर के तटवर्ती देशों और द्वीपों में अपनाई जानी चाहिए.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...