‘तारे ज़मीन पर’ फिल्म का ईशान तो याद होगा न आप सभी को. वही ईशान जिसके मम्मी पापा चाहते थे कि ईशान अपने होमवर्क में रूचि लें, परीक्षा में अच्छे नंबर लाएँ. लेकिन ईशान चाहकर भी ऐसा नहीं कर पाता क्योंकि ईशान को अच्छा लगता है सिर्फ रंगों से खेलना. लाख समझाने के बावजूद भी जब ईशान अपने माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाता, तो वे उसे बोर्डिंग स्कूल भेजने का निर्णय लेते हैं. वे ईशान की मनोस्थिति को समझने की कोशिश ही नहीं करते. आज के अधिकांश मम्मी पापा ईशान के मम्मी पापा की तरह बिहेव करते हैं. उनके लिए बच्चों का फर्स्ट आना ही सिर्फ माने रखता है. क्योंकि यह हमारा एजुकेशन सिस्टम है जो बौद्धिक क्षमता और सफलता को अंकों के पैमाने पर नापता है, जहां सिर्फ नंबर गेम चलता है. ये नंबर गेम का ही परिणाम है कि परीक्षा परिणाम आते ही चारों ओर बच्चों की आत्महत्या की खबरें आना शुरू हो जाती हैं.
यदि कोई बच्चा पढ़ाई में अच्छा नहीं है तो माना जाता है कि वह कुछ भी नहीं कर सकता. उसे नालायक व नाकारा का तमगा दे दिया जाता है. हमारे बच्चों की आत्महत्या का दोषी हमारा एजुकेशन सिस्टम, स्कूल और पेरेंट्स ही हैं. हम बच्चों को उनके किसी खास टैलेंट के बजाय बार-बार उनकी कमियों के बारे में बताते हैं, जिससे वे निराश हो जाते हैं और किसी भी क्षेत्र में अपनी काबिलियत साबित नहीं कर पाते. इंग्लैंड में यदि कोई बच्चा गणित में फेल होता है और इतिहास में अच्छे नंबर लाता है तो रिपोर्ट कार्ड पर टीचर का कमेंट यह होता है कि बच्चा इतिहास में बहुत अच्छा कर सकता है, उसे इतिहास और ज्यादा पढ़ना चाहिए. जबकि भारत के स्कूल में कहा जाएगा गणित में मेहनत करने की ज़रुरत है. इसी तरह ऑस्ट्रेलिया के स्कूलों में एक ऐसा विभाग होता है, जो बच्चे को उनके खास टैलेंट पर फोकस करना सिखाता है.
पिछले दिनों कोटा की आईआईटी-जेईई की मुख्य परीक्षा पास करने वाली छात्रा कृति ने आत्महत्या करने से पहले सुसाइड नोट में कहा, कोचिंग संस्थान बंद हों. उसने लिखा कि यहां बच्चों पर पढ़ाई का अनावश्यक दबाव डाला जाता है. उस ने यह भी लिखा कि उसे इंजीनियर नहीं बनना था, वह एक वैज्ञानिक के तौर पर नासा जाना चाहती थी. पर उसकी मां का सपना था कि बेटी इंजीनियर ही बने. आखिर क्यों माता पिता बच्चों पर अपनी इच्छाएं थोपते हैं, जिसके चलते बच्चों को ऐसे भयावह कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ता है.
पेरेंट्स और समाज को यह समझना होगा कि हर बच्चे में कोई न कोई खासियत जरूर होती है, जिसे अगर बढ़ावा दिया जाए तो वह अपने क्षेत्र में अद्वितीय काम कर सकता है. ऐसे बहुत से लोग हैं जो शैक्षणिक स्तर पर सामाजिक पैमाने के अनुसार भले ही सफल नहीं थे, पर अपनी फील्ड में बेहतरीन करियर बनाकर उन्होंने जिंदगी में सफलता हासिल की.
इंदौर शहर के आर्टिस्ट वाजिद खान जो जाने जाते हैं अपनी खास शैली की कला के लिए. वे कीलों, हथौड़ी और इसी तरह की चीजों से पेंटिंग बनाते हैं. आपको जानकार हैरानी होगी कि पांचवीं फेल आर्टिस्ट का जादू इस कदर सर चढ़ कर बोल रहा है कि वे अब फीफा वर्ल्ड कप के लिए स्कल्प्चर और एक हॉलीवुड फिल्म के लिए पेंटिंग तैयार कर रहे हैं..उनकी पहली पेंटिंग 20 लाख में बिकी. यह संभव हुआ, सफलता को अंकों या पैसों से जोड़कर देखने की बजाय क्रिएटिविटी और इनोवेशन से जोड़ने के कारण.
मूवीज़ में हैरी पॉटर का रोल निभानेवाले क्यूज डेनियल रैडक्लिफ को स्कूली दिनों में ही समझ गए थे कि वे पढाई के लिए नहीं बने हैं. आपको जानकार हैरानी होगी कि क्यूज डेनियल रैडक्लिफ ने अपनी स्कूल की पढाई भी पूरी नहीं की थी. इसी तरह बॉक्सिंग में इंडिया के लिए ओलिंपिक मैडल लानेवालीं मैरी कॉम ने भी स्कूली पढ़ाई से ज्यादा महत्त्व अपने बॉक्सिंग प्रेम दिया और आज उनकी गिनती दुनिया भर की टॉप महिला बॉक्सरों में होती है. और तो और उन पर फिल्म भी बन चुकी है.
मिस्टर परफेक्शनिस्ट यानी थ्री इडियट फिल्म में रणछोड़ दास चांचड़ का किरदार निभाने वाले अभिनेता आमिर खान को भी एक्टिंग से इतना प्यार था कि उन्होंने पढ़ाई में वक्त जाया न करने की बजाय एक्टिंग को ही अपना कैरियर बनाने का निर्णय लिया. दरअसल , हर बच्चे के भीतर अलग तरह की प्रतिभा होती है.मां-बाप को बच्चों की उस प्रतिभा को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए और बच्चे को अपने मन का काम करने की आज़ादी देनी चाहिये.