सुमित्राजी अपनी भांजी अर्पिता को इस हाल में देख कर दंग रह गईं. अर्पिता अपनी कार के नीचे से निकल कर आई थी. हाथ में कुछ टूल्स थे. हाथ काले हो रहे थे और जींस व टौप पर जगहजगह काले धब्बे पड़ गए थे. सुबह भी उन्होंने घर में अर्पिता को एक ढीला स्विच निकाल कर नया लगाते देखा था, लेकिन कुछ बोल नहीं पाई थीं. वे कल रात को ही अपनी छोटी बहन विमला के घर आई थीं. विमला की शादी के बाद पहली बार ही कोलकाता आना हुआ था. विमला की 2 लड़कियां थीं, सुचिता और अर्पिता. सुचिता तो अभी 8वीं कक्षा में पढ़ रही थी, अर्पिता बी कौम फर्स्ट ईयर में थी और सीए भी कर रही थी. अर्पिता का रहनसहन बड़ा दबंग था. बोलचाल या हावभाव में स्त्रियों जैसा संकोच या लज्जाशीलता वगैरा न हो कर लड़कों जैसी बोल्डनैस और कौन्फिडैंस था. ये सब तो ठीक लेकिन अर्पिता द्वारा घर के बिजली के स्विच ठीक करना, गाड़ी की रिपेयरिंग करना वगैरह उन्हें बड़ा अजीब और आश्चर्यजनक लगा. उन के घर में बेटा न रहे तो फ्यूज का तार बदलने के लिए भी इलैक्ट्रीशियन आता है.

उन से रहा न गया. पूछ बैठीं, ‘‘अरे, अर्पिता बेटी, तुम गाड़ी ठीक कर रही हो?’’ अर्पिता बोली, ‘‘हां, मौसी. छोटीमोटी गड़बड़ हो तो मैं ही ठीक कर लेती हूं. हर इतवार को गाड़ी की धुलाई भी कर लेती हूं.’’ मौसी ने उस की पीठ पर धौल जमाते हुए कहा, ‘‘अरे बावली, ये सब तो मर्दों के काम हैं. तू भी बड़ी जबरी है भई.’’ सुमित्राजी जैसी सोच लगभग हर महिला की होती है. दरअसल, हमारे समाज में मर्दों वाले काम और जनानियों (महिलाओं) वाले कामों का विभाजन कर दिया गया है. कई ऐसे काम हैं जिन्हें मर्दों के वश की बात माना जाता है और आमतौर पर महिलाओं से उन कामों की उम्मीद नहीं की जाती, जैसे गाड़ी की रिपेयरिंग, इलैक्ट्रीशियन या प्लंबर का काम, टैक्सी या ट्रक चलाना या और भी बहुत कुछ. लेकिन अब जमाना बदल रहा है. महिलाएं बहुत सारे ऐसे काम करने लगी हैं जो कुछ समय पहले तक सिर्फ मर्दों के वश के माने जाते थे.

इस संबंध में ‘द सैकंड सैक्स’ किताब के लेखक सिमोन द बोउआर ने बहुत महत्त्वपूर्ण बात लिखी है, ‘‘कोई भी स्त्री के रूप में पैदा नहीं होती बल्कि बाद में महिला बन जाती है.’’ पूर्वाग्रह से ग्रस्त समाज ने स्त्रियों और पुरुषों के लिए कुछ खास काम गढ़ दिए हैं जिन्हें उस के उलट होते देख समाज को अटपटा या आपत्तिजनक लगता है. ब्रेन साइंस और सोशल साइकोलौजी में हुए ताजा शोध बताते हैं कि बायोलौजी और माहौल का जटिल संबंध किसी व्यक्ति का रहनसहन और व्यवहार तय करता है. महिलाओं को शैशवकाल से ही नाजुक, लज्जाशील, अंतर्मुखी रहने और पुरुषों से एक खास दूरी बनाए रखने की शिक्षा दी जाती है. लेकिन जिन शिक्षित, आधुनिक और उन्नत विचारों वाले परिवारों में बेटियों को शुरू से निडर, बेबाक, स्पष्टवादी और हरफनमौला बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है उन की बेटियां न सिर्फ पुरुषों के साथ ताल से ताल मिला कर चलने में सक्षम होती हैं बल्कि हर उस काम को भी सीखने व करने की ललक रखती हैं, जिन्हें कथित रूप से मर्दों का काम कहा जाता है.

अगर आप अपनी बेटी को दब्बू, डरपोक, कमजोर, शर्मीली और छुईमुई नहीं बनाना चाहतीं, तो उसे शुरू से ही उसी रूप में ढालें और आप खुद भी ऐसा करें. लड़कियां कई ऐसे कथित पुरुषोचित गुण सीख सकती हैं जो उन की जिंदगी को आसान बना सकते हैं.

सैल्फ डिफैंस टे्रनिंग

अपनी बेटी को बचपन से ही स्पोर्ट्स में सक्रिय होने के लिए प्रोत्साहित करें. वह जो भी खेलना चाहे, खेलने दें. क्रिकेट या फुटबौल जैसे खेल लड़कों के हैं, कह कर उसे रोकें या टोकें नहीं. स्कूल में व्यवस्था हो तो ठीक वरना किसी स्थानीय प्रशिक्षक के यहां उसे जूडोकराटे जैसी सैल्फ डिफैंस टे्रनिंग अवश्य दिलवाएं. वह लड़कों के साथ खेलकूद की गतिविधियों में हिस्सा लेती है तो लेने दें. इस से उस में आत्मविश्वास आएगा और वह लड़कों के हावभाव से भी कुछ हद तक वाकिफ हो जाएगी.

सीमा न बांधें

बेटी जरा बड़ी हो जाए तो उसे घर की भाजीतरकारी लाने तक सीमित न करें बल्कि राशन का सामान, वगैरा भी लाना सिखाएं. किसी पारिवारिक सदस्य के बीमार होने पर बेटी के साथ उसे डाक्टर के पास भेजें. घर में बल्ब बदलना हो, साइकिल में हवा भरवानी हो, स्कूटर की स्टैपनी बदलनी हो, फ्यूज में तार लगाना हो या दीवार में कील ठोंकनी हो, ये सब काम बेटी से भी करवाएं. शुरूशुरू में उसे ये काम सिखाने पड़ेंगे फिर उस का आत्मविश्वास खुद ही जाग जाएगा. संभव हो तो बेटी को छोटेमोटे ट्रेनिंग कोर्स करवा दें जहां उसे कंप्यूटर ठीक करना, बाइक या कार रिपेयरिंग, बिजली के छोटेमोटे काम आदि सीखने को मिल सकें.

प्रतिक्रिया करना सिखाएं

शोध के मुताबिक किशोर या जवान होती लड़कियों में डिप्रैशन लड़कों की तुलना में ज्यादा होता है. इस की वजह सिर्फ हार्मोन नहीं, बल्कि लड़कियों को शुरू से ही नकारात्मक माहौल में पालना है यानी ये मत कर, वह मत कर, उसे दीदे फाड़ कर मत देख, यों मत हंस, ऐसे मत झुक, ऐसे मटकमटक कर मत चल आदि. इतने सारे ‘न’ सुनतेसुनते लड़की के कान पकने लगते हैं और वह सहमीसहमी सी रहने लगती है. ऐसे में कठोर स्वभाव के पिता या भाई उस के साथ जब मारपीट या गालीगलौज करते हैं तो वह और भी दब जाती है. आप अपनी बेटी को नैगेटिव वातावरण न दें और बातबात में रोकाटोकी से बचें. उसे दृढ़तापूर्वक हर अत्याचार का विरोध करना सिखाएं. किसी गंदी टिप्पणी पर कठोर और दबंग प्रतिक्रिया करना सिखाएं. अध्ययन और अनुभव बताते हैं कि मुंहफट और दबंग छवि वाली लड़कियों से लड़के डरते हैं और उन के साथ छेड़छाड़ या बकवास की हिम्मत नहीं करते. दब्बू लड़कियों के बजाय इन लड़कियों की जिंदगी आसान होती है.

आत्मविश्वास करें बुलंद

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि अधिकांश महिलाओं में आत्मविश्वास काफी कम होता है और वे स्वभावतन खुद को पुरुषों से कमजोर और कमतर आंकती हैं. इस की मूल वजह है उन के मातापिता, भाइयों, बौस या पतियों द्वारा उन्हें लगातार ‘बुद्धू’, ‘ट्यूबलाइट’, ‘बैलगाड़ी’ आदि पदवियों से नवाजना. धीरेधीरे इन महिलाओं का आत्मविश्वास इतना कम हो जाता है कि मामूली सा रिजैक्शन या आलोचना भी इन्हें भीतर तक परेशान कर देती है और ये खुद को कमगुणी या पुरुषों की तुलना में नासमझ महसूस करने लगती हैं. अपनी बेटी को शुरू से ही आत्मविश्वासी बनाएं, उस के अच्छे कार्यों की प्रशंसा करें और उस की क्षमताओं का बखान करें. इस से उसे खुद को निरंतर बेहतर करने की प्रेरणा मिलेगी और उस का आत्मविश्वास बुलंद होता चला जाएगा.

शारीरिक सौंदर्य से परे

महिलाओं को दिनरात खूबसूरत, स्लिम और दमकतीचमकती दिखने के लिए इतनी बार उकसाया या प्रोत्साहित किया जाता है कि वे सचमुच इसी उलझन में फंस कर रह जाती हैं. उन्हें हर वक्त खुद को आकर्षक दिखने की चिंता सताती रहती है. चाहे परिजन होें या संगीसाथी, विज्ञापन जगत हो या मीडिया, सभी जगह महिलाओं की शारीरिक खूबसूरती का इतना बढ़ाचढ़ा कर बखान किया जाता है कि वे अपने वजन, रंग और शरीर की बनावट को ले कर अधिक सजग हो जाती हैं और खुद की प्रतिभा को निखारने के प्रति कुछ हद तक लापरवाह हो जाती हैं. पुरुष अपनी बौडी इमेज के प्रति सतर्क तो रहते हैं लेकिन अति सक्रिय नहीं. महिलाओं को पुरुषों का यह गुण अपना लेना चाहिए.

छोटीछोटी बात पर चिंता न करें

महिलाएं छोटी से छोटी बात पर बेहद चिंता कर लेती हैं जबकि पुरुष बड़ी से बड़ी बात को हवा में उड़ाने या उस के प्रति लापरवाह रहने की ताकत रखते हैं. विशेषरूप से जो बातें व्यक्तिगत रूप से प्रभावित न करने वाली हों, उन के प्रति भी महिलाएं बेहद चिंतित हो जाती हैं. जिंदगी को आसान बनाना हो तो जरा बेपरवाह होना सीखें, ‘जो होगा देखा जाएगा’ वाला रवैया अपनाएं. वक्त आने पर ज्यादातर समस्याएं खुद ही सुलझ जाती हैं. इस से आप खुद को हलकी महसूस करेंगी.

महिलाओं के खास गुण

मर्दों वाले काम सीख कर अपना जीवन आसान बनाने में महिलाओं को मदद मिलेगी, इस में कोई संदेह नहीं. महिलाओं के कुछ खास गुण ऐसे भी हैं जिन पर हर महिला को गर्व होना चाहिए. मनोवैज्ञानिकों की मानें तो महिलाओं में दूरदर्शिता खूब होती है. उन में दूसरों के प्रति सहानुभूति और दूसरे के दर्द को महसूस करने की क्षमता भी अधिक होती है. महिलाएं जटिल परिस्थितियों में भी खुद को व्यवस्थित रखने में सक्षम होती हैं और एकसाथ कई भूमिकाओं का सफलतापूर्वक निर्वाह कर सकती हैं. अपने इन गुणों को बनाए रखें.

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