अपनी तारीफ सुनना किसे अच्छा नहीं लगता. इस में संदेह नहीं कि तारीफ का असर सकारात्मक होता है. परंतु किसी व्यक्ति की गलतियों पर भी उस की तारीफ की जाए तो यह संभव नहीं है. बिना गुण के तारीफ अकसर इंसान को गुमराह भी कर सकती है, उस के अंदर झूठा अहं पैदा कर सकती है. इसीलिए, संत कबीर दास ने कहा था –

‘निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय

बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय.’

आलोचक किसी को भी अच्छे नहीं लगते. अपनी बुराई सुन कर कौन खुश होता है? पर अगर गहराई से सोचा जाए तो हमारी बुराई और आलोचना के परिणाम कभीकभी सुधारवादी व सकारात्मक भी हो सकते हैं. सकारात्मक परिणाम

नीमा को खाना बनाना अच्छा नहीं लगता था, इसीलिए उस ने कभी भी तरहतरह के व्यंजन बनाने नहीं सीखे. शादी के बाद पता चला कि उस के पति को तरहतरह के व्यंजन खाने का शौक है. पर उसे तो कुछ आता ही नहीं था, जबकि उस की जेठानी पाककला में निपुण थी. नीमा का पति अपनी भाभी के खाने की तारीफ करते नहीं थकता था. नीमा कुछ भी बनाती तो वह उस में कुछ न कुछ मीनमेख निकालता रहता था. इस बात से नीमा खिन्न रहती थी, तिस पर उस की जेठानी उसे इस बात के लिए खूब ताने मारती रहती. एक दिन तो उस ने यहां तक कह दिया, ‘‘नीमा, तुम्हारे हाथ का बना खाना तो कुत्ते को भी पसंद नहीं आएगा.’’ हालांकि इस बात ने नीमा को अंदर तक आहत कर दिया था और उसे बहुत गुस्सा आ रहा था पर उस ने अपनी जेठानी को कभी कोई जवाब नहीं दिया और मन ही मन ठान लिया कि चाहे जो भी हो, अब वह जेठानी से भी अच्छा खाना बनाएगी और सचमुच उस ने यह कर दिखाया. उस ने कुकिंग क्लास जौइन की और आज वह पाककला में इतनी निपुण है कि हर कोई उस के हाथ के बने खाने की तारीफ करता है.

अगर उस की जेठानी उसे ताने न मारती और उस के खाने में मीनमेख न निकाली जाती तो शायद ही वह कभी इतना अच्छा खाना बना पाती. इसीलिए कहते हैं कि हमें अपनी बुराई सुन कर आए गुस्से की एनर्जी का उपयोग खुद को सुधारने में करना चाहिए. खुद को कमतर न आंकें

एक दार्शनिक का कहना है कि कोई आप को नीचा नहीं दिखा सकता, जब तक स्वयं आप की उस के लिए सहमति न हो. इस दुनिया में हमें कदमकदम पर आलोचक या निंदा करने वाले मिलेंगे. कुछ लोगों की तो दूसरों की आलोचना करने की प्रवृत्ति ही होती है. ऐसे लोग किसी को नहीं छोड़ते. दूसरों का मजाक उड़ाने में इन लोगों को बहुत मजा आता है. वैसे देखा जाए तो इस तरह के लोग खुद हीनभावना के शिकार होते हैं लेकिन कुछ चापलूसों की झूठी तारीफें सुन कर ये खुशफहमी और झूठा अहं पाल लेते हैं. अपने इसी झूठे अहं को संतुष्ट करने के लिए ये लोग दूसरों की कमियां गिनाते रहते हैं, खासकर उन लोगों की जो असलियत में उन से हर बात में बेहतर होते हैं.

ऐसे लोग दूसरों को आलोचना कर के उन का आत्मविश्वास तोड़ उन से आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं. अगर ऐसे लोगों की बातों पर ध्यान न दे कर यदि अपने काम पर ध्यान दिया जाए और खुद की योग्यता पहचान कर आगे बढ़ा जाए तो यह इस तरह के लोगों को हराने का सब से बेहतर तरीका है. हम वह नहीं हैं जो हमें दूसरे लोग बताते हैं, बल्कि हम वह हैं जिसे हम पहचानते हैं- औरों से बेहतर, औरों से श्रेष्ठ, औरों से गुणवान. अपने भीतर छिपे इन गुणों को पहचान कर व्यर्थ की आलोचनाओं पर ध्यान न दे कर चुपचाप अपना कार्य करते रहिए, खुद को और बेहतर बनाने की कोशिश करते रहिए. एक दिन ऐसा आएगा जब आप इतनी ऊंचाई पर पहुंच जाएंगे कि आप पर पत्थर फेंकने वाले लोगों पर वे ही पत्थर वापस आ कर गिरेंगे. आलोचना स्वीकारें

आलोचना को हम स्वीकार नहीं करते, परंतु यह एक आवश्यक चीज है. इस की तुलना हम अपने शरीर में होने वाले दर्द से कर सकते हैं जो किसी अस्वस्थ चीज की तरफ हमारा ध्यान आकृष्ट करता है. यदि किसी व्यक्ति के शरीर के किसी अंग में कैंसर की शुरुआत हो चुकी है और इस रोग के फर्स्ट स्टेज पर ही डाक्टर को पता चल जाए और सिर्फ मरीज को खुश करने के लिए डाक्टर कहे कि आप को कोईर् रोग नहीं, आप बिलकुल स्वस्थ हैं तो उस व्यक्ति का रोग बढ़ कर सारे शरीर में फैल जाएगा और इस की वजह से उस की मौत भी हो सकती है.

इसी तरह यदि हमारे अवगुणों की तरफ कोई हमारा ध्यान आकृष्ट नहीं करेगा तो हमारे अंदर अवगुण बढ़ते जाएंगे और ये हमारे पतन का कारण बन जाएंगे. इसीलिए आलोचना को स्वीकार करना सीखें और उस से आहत न हों, बल्कि दृढ़ निश्चय की ओर बढ़ें कि हमें अपनी कमियां दूर कर बेहतर इंसान बनना है. खुद को कमजोर न होने दें

अकसर देखा गया है कि कुछ लोग आलोचना सहन नहीं कर पाते तथा आहत हो कर अंदर ही अंदर घुटने लगते हैं और फिर अवसाद के शिकार हो जाते हैं. यह स्थिति कभीकभी व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए भी मजबूर कर देती है. हमारी कमियां बताने वाले कभीकभी हमें विश्वास दिला देते हैं कि हम वो हैं जो उन्होंने हमें बताया है. रमा अपनी सहेलियों में सब से सुंदर थी. पर उस की सहेलियां हमेशा उस में कोई न कोई कमी निकालती रहतीं, जैसे तेरी लंबाई कितनी कम है, तेरे चेहरे पर कितने पिंपल्स हैं आदि. ये सब सुन कर रमा को सच में लगने लगा कि वह सुंदर नहीं है. एक दिन वह घर आ कर खूब रोई. उस की मम्मी ने उसे आईने के सामने ले जा कर खुद को ध्यान से देखने को कहा और उसे बताया कि वह अपनी सहेलियों से बहुत अधिक सुंदर है, इसलिए वे सब उस से जलती हैं.

रमा ने खुद को आईने में देखा तो सच में उसे लगा कि वह सुंदर है, और फिर उस ने अपनी सहेलियों की हर आलोचना को जवाब देना शुरू कर दिया. ऐसे में उस का खोया हुआ आत्मविश्वास लौट आया. धीरेधीरे उस की सहेलियों ने उस की आलोचना करनी बंद कर दी. अगर वह कमजोर पड़ जाती तो शायद सारी जिंदगी हीनभावना से ग्रसित रहती. इसलिए किसी भी स्थिति में खुद को कमजोर न पड़ने दें. जिस तरह खाने में हमें मीठी चीजें पसंद होती हैं पर ज्यादा मीठा सेहत

के लिए नुकसानदायक हो सकता है, इसलिए करेले और नीम जैसी कड़वी चीजें खाने की सलाह दी जाती है ताकि सेहत दुरुस्त रहे, उसी तरह अपनी तारीफ के साथ बुराई भी सुनने की आदत डालनी चाहिए. जीवन में ऐसे लोगों का होना भी जरूरी है जो हमारी कमियां बता कर हमें अपनी असलियत बताएं, ताकि हमारा व्यक्तित्व और निखरे तथा हम बेहतर इंसान बन सकें.

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