देश में आत्महत्या का प्रयास अब जुर्म के दायरे से बाहर होगा. बीती 29 मई को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मानसिक चिकित्सा अधिनियम 2017 की अधिसूचना जारी कर देश में आत्महत्या की कोशिश को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है. इस के साथ ही, 1863 से देश में प्रचलित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-309 की वैधानिकता भी खत्म हो गई. गौरतलब है कि एक विधेयक के रूप में यह अधिनियम राज्यसभा से 8 अगस्त, 2016, जबकि लोकसभा से 27 मार्च, 2017 को पारित हुआ था. एक साल बाद इस संबंध में सरकार ने अधिसूचना जारी कर इसे प्रभावी बनाने की घोषणा की है. नए कानून में क्या है खास

नए कानून में आत्महत्या के प्रयास को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा गया है. अब यह कृत्य केवल मानसिक रोग की श्रेणी में आएगा. भारतीय दंड संहिता की धारा-309 को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है. अब अगर कोई शख्स आत्महत्या का प्रयास करता है, तो उसे अपराधी नहीं बल्कि मानसिक रोगी समझा जाएगा. इस कानून के जरिए मानसिक रोगियों के साथ अमानवीय बरताव करने पर भी पूरी तरह कानूनी रोक लगा दी गई है. मानसिक रोगियों के इलाज में बिजली के झटकों का प्रयोग अब एनेस्थीसिया (बेहोशी) के बाद ही किया जा सकेगा. महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस कानून से जुड़े नियमों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों और डाक्टरों को सजा व जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है. पहली बार नियम तोड़ने पर आरोपियों

को 6 महीने की जेल या 10 हजार रुपए जुर्माना या दोनों हो सकता है, जबकि अपराध दोहराने पर 2 साल की जेल और 50 हजार से 5 लाख रुपए तक जुर्माना या दोनों हो सकता है. आत्महत्या एक गंभीर प्रवृत्ति

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