राइटर- सैन्नी अशेष

भगवान ने इंसानों को बनाया या इंसानों ने अपनी सहूलियत के लिए भगवानों को गढ़ा, यह सवाल आस्तिकनास्तिक की बहस का मुख्य बिंदु रहता है. ब्रह्मांड में छिपे अनंत रहस्यों के खुलासे के नाम पर धर्म के ठेकेदारों ने भगवानों को गढ़ कर लोगों के दिमाग से पड़ताल और सोचनेसमझने की क्षमता खत्म कर दी है.

ईश्वर के नाम पर दुनियाभर में पाखंड फैला है. ईश्वर को मानना एक प्रकार का कृत्रिम स्वभाव है जो ब्रह्मांडीय नियमों से नहीं, तार्किक, तथ्यात्मक व वैज्ञानिक धर्म के धंधेबाजों के भय, ढोंग, आलस्य, पैसा पाने के षड्यंत्र अथवा सीखी व उधार में मिली हुई मान्यताओं से बना है.

ईश्वर को मानना या उसे ढूंढ़ना एक गहरी आदत तो जरूर है परंतु यह आदत ब्रह्मांड की उपेक्षा करने से विकसित हुई है. इस उपेक्षा से एक ऐसी धार्मिकता अथवा आस्तिकता का जबरदस्त पालनपोषण हुआ है, जो पूर्णतया दिखावटी है.

दुनिया के अधिकांश आस्तिक केवल इसलिए आस्तिक हैं कि बगैर सृष्टि के रहस्यों में रुचि लिए वे उस धर्म और ईश्वर को चुपचाप मानते हैं जिसे उन के धर्म वाले अन्य लाखोंकरोड़ों लोग भेड़चाल में मान रहे होते हैं. इस आस्तिकता के पक्ष में वे धार्मिक ग्रंथों से उदाहरण देते हैं, किसी संतोषदायक मौलिक दृष्टि से नहीं.

इस भेड़चाल में उन्हें अबोध अवस्था में धकेल दिया जाता है और धर्म के नाम पर व्यवसाय करने वाले पंडित, मौलवी, पादरी जम कर ईश्वर की भ्रांति का प्रचार करते हैं.

वे भगवान को मानने या जानने का खूब ही नाटक करते हैं और उस के नाम पर अपने भवन, मंदिर, गढ़, मसजिद, चर्च और मठ बनाते हैं. अन्य धर्मावलंबियों पर आक्रमण करते हैं और इसे अपने ग्रंथों व शास्त्रों द्वारा सही प्रमाणित करते हैं. हमारे सामने ब्रह्मांड का अनंत विस्तार है, अपने सौरमंडल और ब्रह्मांड के संबंध में विचार करें तो युगों से प्रचलित ईश्वर की धारणा हमारे लिए निरर्थक पड़ जाएगी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...