समाज में जब चारों तरफ नफरत, निष्ठुरता और हिंसा की आंधी चल रही हो, इस के बीच कहींकहीं प्रेम के टिमटिमाते दीए मन को सुकुन का एहसास देते प्रतीत होते हैं. राजधानी दिल्ली के अखबार आजकल रिश्तों में फैल रही कड़वाहट के कारण होने वाले झगड़े, हिंसा की खबरों से भरे रहते हैं. देखिए, रिश्तों में अपराध की कैसीकैसी अजीबोगरीब, अकल्पनीय, अविश्वसनीय खबरें सुर्खियों में हैं.
नोएडा में औरत द्वारा औरत की घर में घ़ुस कर गोली मार कर हत्या, औरत पति को छोड़ कर दूसरे पुरुष के साथ लिव इन में रह रही थी. अमेरिका में रह रहे बेटे का मुंबई पहुंचने पर मां का फ्लैट में कंकाल मिला, इंजीनियर बेटे की मां से एक साल पहले टेलीफोन पर बात हुई थी. साइड न देने पर कार सवार युवक की लाठीडंडों से पीटपीट कर हत्या, खाना लगाने में देरी पर होटल मालिक और बेटे की ग्राहकों ने गोली मार की जान ले लीं, खून की कमी के कारण पत्नी द्वारा फ्रूट्स मांगे जाने पर हुए झगड़े में पति ने पत्नी को मार डाला. रोहिणी में दोस्ती का प्रस्ताव ठुकराने पर युवक द्वारा सहपाठी युवती की गला दबा कर हत्या, बड़े भाई द्वारा छोटे भाई की हत्या, शराब के पैसे न देने पर बेटे द्वारा मां की हत्या, पिता द्वारा बेटे की हत्या, पत्नी द्वारा पति का कत्ल, पति द्वारा पत्नी की जान लेना जैसे घटनाएं किसी भी संवेदनशीन इंसान को झकझोर देती हैं.
ऐसी ही खबरों के बीच झारखंड के जशपुर में 75 वर्षीय रतिया राम और 70 वर्षीय जिमना बरी के बीच पनपे प्यार और शादी तथा मणिपुर की नागरिक अधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला और उन के ब्रिटिश प्रेमी डेसमंड कोटिंहो के विवाह बंधन में बंधने की खबरें ठंडी बयार के समान हैं. इन दोनों दंपतियों की अखबारों, टेलीविजन चैनलों पर फोटो और वीडियो दिखाए जा रहे हैं. इन्हें लोग ताज्जुब की तरह देख रहेहैं. सचमुच यह प्रेम चारों ओर नफरतों के बीच आश्चर्य ही है.
जशपुर के झग्गरपुर गांव निवासी रतिया राम की पत्नी की 20 साल पहले मृत्यु हो गई थी. उन की 2 बेटियां थीं जिन की शादी हो गई. एक महीने पहले वह बेटी के गांव झिक्की गया. वहीं उस की मुलाकात जिमनी बरी से हुई. वह भी अकेली रह रही थी. उस के कोई संतान नहीं थी. उस के पति की भी 20 साल पहले मौत हो गई थी. फिर कोई सहारा नहीं रहा. कोई संपत्ति भी नहीं थी. दोनों ने मुलाकात के बाद एकदूसरे का दुखदर्द सुना तो परस्पर सहानुभूति के बाद दोस्ती हो गई.
एक माह तक चला यह रिश्ता प्यार में बदल गया.दोनों ने एकदूसरे का अकेलापन दूर करने का निर्णय लिया. दोनों को सामाजिक बंदिशों का भी ख्याल आया पर दोनों ने एकदूसरे को समाज का सामना करने का हौसला दिया. दोनों एक सप्ताह तक एक ही घर में रहे. बाद में बगडोल पंचायत सरपंच के पास पहुंचे और अपना फैसला बता कर मदद मांगी. पंचायत सहित समूचे गांव ने मिल कर इस बुजुर्ग दंपती की धूमधाम से शादी करा दी. उन्हें कई गिफ्ट दिए गए. शादी के जोड़े में दोनों बुजुर्गों के चेहरे की खुशी देख कर हर किसी को शकुन मिल रहा था.
दूसरी घटना इरोम शर्मिला की है जो अपने ब्रिटिश प्रेमी डेसमंड कोटिंहो के साथ विवाह बंधन में बंध गई. 17 अगस्त को दोनों ने सब रजिस्ट्रार कार्यालय पहुंच कर एकदूसरे को पुष्पमाला पहना कर आजीवन एकदूसरे के हो गए. यह अंतरधार्मिक विवाह था इसलिए उन्होंने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत आवेदन किया. मणिपुर की शर्मिला इरोज ने आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट के खिलाफ 16 वर्षों से भूख हड़ताल कर रही थीं. पिछले दिनों मणिपुर में चुनाव हारने के बाद वह तमिलनाडु के कोडइकनाल आ गई थीं. कुछ समय से वह अपने इस दोस्त के साथ ही रह रही थीं.
इन दिनों प्रेमप्यार की खबरें कम ही आ रही हैं. इस तरह का प्यार निश्छल होता है. जहां स्वार्थ, चालाकी, त्याग नहीं, वहां प्रेम नहीं है. इन दोनों जोड़ों के बीच धर्म, जाति की बात कहीं नहीं है. इस के विपरीत रिश्तों में स्वार्थ सर्वोपरि हो गया है. बातबात पर समाज हिंसा पर उतारू दिखता है.
किसी भी सभ्य समाज में क्या कभी ऐसा होता है? लोग वहशी बनते जा रहे हैं. रिश्तों में जरा भी गंभीरता नहीं दिखती. लगता है समाज धैर्य खो चुका है. बातबात में लोग घर, परिवार, सार्वजनिक जगहों पर भिड़ पड़ते हैं, एकदूसरे की जान ले लेते हैं.
समाज कहां जा रहा है? मीडिया में सामाजिक, पारिवारिक संबंधों के बिगड़ते माहौल पर कोई बहस नहीं हो रही. राजनीति और दूसरे गैरजरूरी मुद्दे टेलीविजन चैनलों के लिए ज्यादा अहम हो गए हैं.
समाज को अगर सही दिशा नहीं मिलेगी तो पतन निश्चित है. यह दिशा कौन देगा? धर्म समाज में शांति, प्रेम, भाईचारा, अहिंसा, क्षमा प्रदान करने का दावा करता है. देश भर में हजारों धर्मगुरु अच्छी सीख देते सुनाई पड़ रहे हैं पर वह अच्छाई धरातल पर है कहां?
समाज में बेकाबू होते इस अमानुष व्यवहार की जिम्मेदारी किस की है?
धर्म ‘कलियुग है’ कह कर पल्ला झाड़ लेता है. सियासत को समाज में झांकने की फुर्सत ही नहीं है? आज की सियासत तो समाज को ही नहीं, परिवार को बांट कर रखने में विश्वास रखती है. आखिर जिम्मेदारी समाज सुधारकों पर आती है पर समाज सुधारक भी कहां हैं? नफरत, वहशीपन की यह आग घर तक पहुंच गई है. यह समाजशास्त्रियों, विचारकों को सोचने का समय है.