वैश्विक स्तर पर, 2000 और 2019 के बीच जीवन प्रत्याशा यानी लाइफ एक्सपेक्टेंसी में 6 साल से अधिक की वृद्धि हुई है. 2000 में 66.8 वर्ष से 2019 में 73.4 वर्ष हो गई है. 1970-75 में भारत में लोगों की औसत आयु 49.7 साल थी. अगले 45 साल के दौरान इस में करीब 20 साल का इजाफा हुआ. वर्ल्ड हैल्थ और्गेनाइजेशन द्वारा की गई एक स्टडी के मुताबिक अनुमान है कि वर्ष 2030 तक बहुत से देशों में औसत आयु 90 साल हो जाएगी.

जाहिर है हमारी उम्र तो लंबी हो रही है मगर परिवार छोटे हो रहे हैं. पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे तो पूरे दिन इंसान बिजी रहता था. भले ही यह व्यस्तता घर वालों से लड़नेझगड़ने या बुराईभलाई करते रहने की वजह से होती थी या फिर बच्चों के कोलाहल और शरारतों की वजह से. लेकिन यह सच है कि बुजुर्गों के आसपास बहुत से लोग बने रहते थे. मगर अब एकल परिवार में पतिपत्नी और बच्चे होते हैं. बच्चे भी एक या दो से ज्यादा नहीं होते और 18 - 20 की उम्र होतेहोते उन की दुनिया अलग हो जाती है.

ज्यादातर घरों में बच्चे नौकरी या शादी के बाद वैसे भी अलग दूसरे शहर या विदेश में रहने लगते हैं. पतिपत्नी 50 की उम्र के बाद घर में नितांत अकेले रह जाते हैं. सामान्य रूप से उन के पास दिनभर एकदूसरे की शक्ल देखने, एकदूसरे से बातें करने के अलावा कोई और औप्शन नहीं होता.

कभी कोई रिश्तेदार भूलेबिसरे आ जाए तो उस से बातें हो जाती हैं. वह भी आजकल एकदो घंटे से ज्यादा रिश्तेदारों के पास बैठने का समय कहां होता है. घर में टीवी है तो उसे चला कर बोरियत कुछ देर के लिए दूर करने की कोशिश की जाती है मगर टीवी भी कोई भला कितनी देर देख सकता है. बुजुर्ग पतिपत्नी के बीच कुछ नया शेयर करने की बातें भी नहीं होतीं. वही पुरानी बातें रह जाती हैं जिन्हें आखिर कितनी दफा सुना जाए. कुछ नया करने का भी मिजाज नहीं होता. आखिर पतिपत्नी पहले ही सब कर चुके होते हैं. उन दोनों के पास एकदूसरे के लिए कुछ नया देने या करने को नहीं होता.

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