दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लोकसभा चुनाव में अपनी आम आदमी पार्टी का प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत देने वाली बेंच के जज संजीव खन्ना की चर्चा बतौर सुप्रीम कोर्ट के अगले चीफ जस्टिस के रूप में होने लगी है. संजीव खन्ना वर्तमान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के बाद दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं. सीजेआई चंद्रचूड़ का कार्यकाल नवंबर 2024 को पूरा हो रहा है, माना जा रहा है कि उनके बाद जस्टिस खन्ना 10 नवंबर 2024 से 13 मई 2025 तक सीजेआई के रूप में न्यायालय का दायित्व संभालेंगे.

बताते चलें कि वर्तमान में दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति के अधिकांश मामले जस्टिस संजीव खन्ना की ही अदालत में फैसले का इंतजार कर रहे हैं. बीते दो सालों से इस शराब नीति ने दिल्ली सरकार का चैन छीन रखा है. आप पार्टी के कई बड़े नेता शराब नीति मामले में जेल में बंद हैं. दिल्ली शराब घोटाले में दो केस चल रहे हैं. एक केस सीबीआई ने दर्ज किया था और दूसरा केस ईडी की तरफ से दर्ज किया गया था. दोनों जांच एजेंसियों ने दिल्ली शराब नीति मामले में कई कार्रवाइयां की हैं. पिछले वर्ष पार्टी और उसके वरिष्ठ नेताओं की कानूनी लड़ाइयों में असफलताओं का अंबार लगा रहा है, कुछ अपवादों को छोड़कर, विभिन्न अदालतों और विभिन्न न्यायाधीशों ने कई मौकों पर उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया है. जानकार मानते हैं कि इसके पीछे केंद्रीय सत्ता का भारी दबाव काम कर रहा है. इंडिया गठबंधन को कमजोर करने और केजरीवाल सरकार को घेरने, तोड़ने और बदनाम करने में शराब घोटाला मामला इस लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के हाथ में सबसे बड़ा हथियार है. इस घोटाले की चर्चा भाजपा हर मंच से करती है और केजरीवाल और उनकी सरकार को महाभ्रष्ट का तमगा पहनाती है.

इस तथाकथित घोटाले के कई मामले शीर्ष अदालत में पहुंचे, जहां न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के नेतृत्व वाली पीठों ने रोस्टर के अनुसार उनकी सुनवाई की. कौन सा न्यायाधीश किस मामले की सुनवाई करेगा इसका रोस्टर भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा तय किया जाता है. दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल से संबंधित कानूनी कार्यवाही न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के समक्ष चल रही है, अतः यह कहना उचित ही होगा कि आम आदमी पार्टी के राजनीतिक भविष्य की चाबी उनके पास है. दिल्ली की जनता और आम आदमी पार्टी को उन से इंसाफ मिलने की उम्मीद है.

जस्टिस संजीव खन्ना करीब पांच साल पहले जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट में जज बने थे. वह जस्टिस हंसराज खन्ना के रिश्तेदार हैं, जिन्होंने आपातकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जज के पद से इस्तीफा दे दिया था. जस्टिस संजीव खन्ना का जन्म 14 मई 1960 को हुआ था और उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की. उनके पिता, न्यायमूर्ति देव राज खन्ना, 1985 में दिल्ली उच्च न्यायालय से न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए, जबकि उनकी माँ, सरोज खन्ना दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्री राम कॉलेज में हिंदी व्याख्याता थीं. संजीव खन्ना ने वर्ष 1983 में दिल्ली की जिला अदालत में प्रैक्टिस शुरू की थी और फिर दिल्ली हाईकोर्ट और ट्रिब्यूनल्स में वकालत की. उन्होंने संवैधानिक कानून, डायरेक्ट टैक्स, मध्यस्थता और कमर्शियल मामलों, कंपनी लॉ, भूमि कानून, पर्यावरण और प्रदूषण कानून एवं चिकित्सकीय लापरवाही से जुड़े केस में वकालत की है. उन्होंने दिल्ली न्यायिक अकादमी, दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र और जिला अदालत मध्यस्थता केंद्रों जैसे संस्थानों में सक्रिय रूप से योगदान दिया. उन्होंने आपराधिक कानून मामलों में अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में दिल्ली सरकार में भी काम किया. न्यायमूर्ति खन्ना करीब सात साल तक दिल्ली के आयकर विभाग के वरिष्ठ स्थायी वकील भी रहे. 2004 में, उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय में नागरिक कानून मामलों के लिए दिल्ली के स्थायी वकील के रूप में नियुक्त किया गया था. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बनने से पहले, जस्टिस खन्ना 2005 से 14 वर्षों तक दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश रहे.

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर मौजूद जस्टिस खन्ना की डिटेल्स के मुताबिक, उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में एडीशनल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर और कई आपराधिक मामलों में कोर्ट की तरफ से न्याय मित्र के रूप में बहस की थी. टैक्सेशन के मामलों में उन्हें काफी महारत हासिल है और उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के लिए सीनियर स्टैंडिंग काउंसिल के रूप में सात साल तक काम किया है.

जस्टिस खन्ना को जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया था. सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में उनकी नियुक्ति पर काफी विवाद भी हुआ था क्योंकि उम्र और अनुभव में उनसे वरिष्ठ 33 जजों के लाइन में होने के बावजूद उन्हें सीधे सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया था. मगर यह नियुक्ति उनकी काबिलियत को देखते हुए की गयी थी.

अप्रैल 2024 में जस्टिस खन्ना ने वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीटी) और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) में डाले गए वोटों के क्रॉस-वेरिफिकेशन से जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया था. यह मामला भी काफी चर्चा में रहा. उन्होंने अपने फैसले में ईवीएम की पवित्रता और देश के चुनाव आयोग पर भरोसे को लेकर विस्तार से लिखा है. मार्च में जस्टिस खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़े कानून पर रोक लगाने से जुड़ी याचिका को भी खारिज कर दिया था. उन्होंने कहा था कि इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए रोक लगाना सही नहीं है. हालांकि अदालत ने जल्दबाजी में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए सरकार की आलोचना भी की.

बीते दिनों लोकसभा चुनाव की दुदुम्भी बजने से ठीक पहले चुनावी बांड की वैधता मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने जो फैसला दिया वह भाजपा के गले की हड्डी साबित हुआ. एसबीआई पर इतने कोड़े फटकाये कि किस राजनीतिक पार्टी को कितना चन्दा मिला और कहाँ कहाँ से मिला, इसकी पूरी जानकारी बैंक कोर्ट के पटल पर रखने को मजबूर हुआ. सुप्रीम कोर्ट के सभी पांचों जजों ने एक राय से चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया. यह ऐतिहासिक फैसला देने वाली बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना भी शामिल थे. चुनावी प्रक्रिया में ‘सफाई’ को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पीछे तीन महीने की अथक मेहनत लगी. सुप्रीम कोर्ट के 232 पेज के फैसले में सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने 158 पेज लिखे और बाकी जस्टिस संजीव खन्ना ने लिखे थे.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...