कानपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा है बिल्हौर. इस कस्बे से सटा एक गांव है दासा निवादा, जहां छिद्दू का परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी रमा के अलावा 2 बेटे सतीश, नेमचंद्र तथा 2 बेटियां विजयलक्ष्मी और पूनम थीं. विजयलक्ष्मी को ज्यादातर शबनम के नाम से जाना जाता था.
छिद्दू गरीब किसान था. उस के पास नाममात्र की जमीन थी. वह मेहनतमजदूरी कर के किसी तरह परिवार का भरणपोषण करता था. खेतीकिसानी में उस के दोनों बेटे भी सहयोग करते थे.
तीखे नैननक्श और गोरी रंगत वाली विजयलक्ष्मी उर्फ शबनम छिद्दू की संतानों में सब से सुंदर थी. समय के साथ जैसेजैसे उस की उम्र बढ़ रही थी, उस के सौंदर्य में भी निखार आता जा रहा था. उस का गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें, तीखे नैननक्श, गुलाबी होंठ और कंधों तक लहराते बाल किसी को भी उस की ओर आकर्षित कर सकते थे. अपनी खूबसूरती पर शबनम को भी बहुत नाज था.
यही वजह थी कि जब कोई लड़का उसे चाहत भरी नजरों से देखता तो वह उसे इस तरह घूर कर देखती मानो खा जाएगी. उस की टेढ़ी नजरों से ही लड़के उस से डर जाते थे. लेकिन कुलदीप शबनम की टेढ़ी नजर से जरा भी नहीं डरा.
कुलदीप का घर शबनम के घर से कुछ ही दूरी पर था. उस के पिता देवी गुलाम खेतीबाड़ी करते थे. उन की 3 संतानों में कुलदीप सब से छोटा था. वह सिलाई का काम करता था. उस की कमाई ज्यादा अच्छी नहीं तो बुरी भी नहीं थी. अच्छे कपड़े पहनना और मोटरसाइकिल पर घूमना कुलदीप का शौक था.
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