मध्य प्रदेश के गबौद गांव के निवासी पेड़पौधों की काफी हिफाजत करते हैं. जंगल ही इन का जीवन है. यहां की ऊंची पहाडि़यां और उन पर छाई हरियाली प्रकृति के प्रति इन ग्रामीणों के प्रेम की साक्षी है. पिछले 25 वर्षों से ग्राम वन समिति के लोग इन पेड़पौधों की रखवाली कर रहे हैं. मजाल क्या है जो कोई वनमाफिया इस तरफ नजर उठा कर भी देख ले. जंगल ही इन ग्रामीणों का जीवन है. जंगल और पेड़पौधों को बचाने के लिए तकरीबन 25 साल पहले इन लोगों ने यहां एक ग्रामीण वन समिति बनाई थी. छत्तीसगढ़ के महासमुंद स्थित इस इलाके में तब से यह सिलसिला चला आ रहा है.

अब गबौद और उस के आसपास के गांव का हर व्यक्ति इस का सदस्य है. सभी लोग मिलजुल कर बारीबारी से जंगलों की रक्षा करते हैं, वह भी बिना किसी स्वार्थ और मेहनताना के. ऐसा लगता है कि जंगल इन का साम्राज्य है और ये ग्रामीण इस के राजा हैं. यही नहीं, यदि कोई व्यक्ति जंगल में पेड़ काटते हुए पकड़ा जाता है तो बाकायदा उस से जुर्माने के रूप में रुपए वसूल किए जाते हैं.

ऐसे हुई शुरुआत :  महासमुंद जिले की नगर पंचायत पिथौरा से कोई 15 किलोमीटर की दूरी पर है ग्राम पंचायत सपोस का गांव गबौद. हरियाली से भरपूर इस गांव का शुद्ध वातावरण हर किसी को अपनी ओर खींचता है. यह स्थान मनमस्तिष्क को तरोताजा कर देता है. प्राकृतिक वातावरण के बारे में पूछने पर ग्रामीण बताते हैं कि आज से 25 साल पहले गबौद के आसपास के गांवों के जंगलों को तहसनहस किया जा रहा था. वन माफिया जंगलों को आरियों से काट कर मुनाफा कमा रहे थे. इस कटान के कारण गरमी में पहाड़ी चट्टानें आग उगल रही थीं, औसत वर्षा भी कम होने लगी थी, जिस वजह से सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा था. इस मुसीबत को भांप कर ग्रामीणों ने यह योजना बनाई. वे जानते थे कि कम पानी की वजह कटते जंगल हैं. इसलिए उन्होंने ग्रामीण वन समिति का गठन किया था.

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