अविवाहित व्यक्ति का खुशी से दूर का भी वास्ता नहीं. यही नहीं, अविवाहित होना एक विकट समस्या है. जब तक इस का समाधान नहीं होता, तो खुशी पाने या ढूंढ़ने का कोई हक ही नहीं. अविवाहित कवियों या गणितज्ञों की तरह ही होते हैं जो कल्पनालोक में रहते हैं या प्रश्न हल करने में लगे रहते हैं. कुछ अविवाहित खुश रहते दिख सकते हैं, पर ऐसे विरले ही मिलेंगे. ज्यादातर दुखी हैं और अकेले ही जूझ रहे हैं.
लोगों का नजरिया
लोग यों घूर कर देखते हैं मानो अविवाहित व्यक्ति कोई अजूबा हो. अगर बेचारे के बाल सफेद हो रहे हो (जो कि आज के नौजवानों में भी आम बात हो गई है), तो बस आफत ही समझिए. लोगों की निगाहें इस तरह पीछे लगी रहती हैं जैसे बेचारे ने कत्ल कर दिया हो. हर निगाह यही पूछती सी लगती है कि क्या बात है? अब तो अंकलजी लगने लगे हो, फिर भी कुंआरे हो? जरूर कोई गड़बड़ है.
लड़की कुंआरी हो तो कोई बात नहीं, कहीं नौकरी कर रही हो तो उस की इज्जत और बढ़ जाती है. लोग सही कहते हैं कि देखो, कैसे घर चला रही है. या देखो, बेचारी शादी का प्रबंध भी खुद ही कर रही है. पर लड़का हो, तो लोग यही कहते हैं कि जरूर कुछ बुरी लतों में लगा होगा, वरना अच्छे लड़के क्या यों कुंआरे रहते हैं.
कुसूर क्या कुंआरों का
अब जब हर प्रतियोगिता की आयुसीमा बढ़ा दी गई है. विश्वविद्यालय आधे समय बंद रहते हैं तो जाहिर है कि हर काम देर से होगा. ऐसे में बेचारे लड़के का क्या कुसूर है जो अभी अकेला ही है. पर नहीं, जमाना तो गिद्ध की निगाह डाल रहा है कि देखो, इतना लूमड़ हो गया है, नालायक. अगर बेचारा बेकार हुआ तो लोग यह भी कह देंगे कि रिकशा चला डालो बेटा, क्योंकि गांधीजी कह गए हैं कि हर काम की अपनी शान है.