Gig Work : भारत में आज आम घरों के युवा गिग वर्क पर निर्भर हो गए हैं. जहां न फाइनेंसियल स्टेबिलिटी है न सामाजिक सुरक्षा. सरकारों ने भी इन युवाओं से अपना पल्ला झाड़ा हुआ है.
भारत में किराने की दुकानें परंपरागत रूप से हर गलीमहल्ले की पहचान रही हैं. पहले तकरीबन हर महल्ले में छोटीबड़ी किराना दुकानें आसानी से मिल जाती थीं और लोग अपने रोजमर्रा की जरूरतों के लिए इन्हीं पर निर्भर रहते थे. लेकिन बदलते समय के साथ अब इन में से कई दुकानें बंद हो चुकी हैं या बंद होने की कगार पर हैं.
देश की अर्थव्यवस्था में किराने की दुकानों का अहम योगदान रहा है, क्योंकि ये न केवल रोजमर्रा की चीजें उपलब्ध कराती थीं बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार का भी बड़ा स्रोत थीं. किराना दुकानों का नेटवर्क इतना मजबूत था कि देश के हर कोने में बनने वाले उत्पाद लोगों तक आसानी से पहुंच जाते थे. गलीमहल्ले में मौजूद ये दुकानें ग्राहकों को भरोसे, सुविधा और व्यक्तिगत संबंधों का अनुभव कराती थीं, जो औनलाइन डिलीवरी सेवाएं पूरी तरह नहीं दे पातीं.
किराने की दुकान का दूसरा फायदा यह भी था कि लोग अपने पास के दुकान से उधारी भी समान घर ले आते थे, जिस से लोग भूखे नहीं सोते थे. दुकानदार को भी यह विश्वास रहता था कि जो व्यक्ति उन की दुकान से उधारी ले कर गया है, वह अपनी तनख्वाह मिलते ही पहले मेरी उधारी चुकता कर देगा और ऐसा ही हुआ करता था.
आज जब ई-काउमर्स तेजी से बढ़ रही है, तो पारंपरिक किराना दुकानों का अस्तित्व संकट में है. अगर इन दुकानों को आधुनिक तकनीक और नई कारोबारी रणनीतियों से जोड़ा जाए तो ये फिर से अर्थव्यवस्था में मजबूत भूमिका निभा सकती हैं और उपभोक्ताओं को सस्ता, भरोसेमंद और सुविधाजनक विकल्प दे सकती हैं. लेकिन आज जमाना जैसे ही डिजिटल हुआ लोग 20 से 25 रुपए के कैश बैक औफर के लिए समान औनलाइन मंगवाने लगें. मगर इस कैशबैक ने देश की लाखों छोटे किराने की दुकानों पर ताला लगवा दिया. यह वे दुकानें थीं जहां पहले दुकान दादा ने शुरू की और फिर उस दुकान को बाप और चाचा ने आगे बढ़ाया. लेकिन अब इस औनलाइन कैशबैक और होम डिलीवरी ने दुकान बंद करवा दी और बेटों को उन्हीं समानों की डिलीवरी में लगवा दिया जो कभी बाप और दादा बेचा करते थे.
अब देश में लाखों युवा जोमेटो, स्विगी, उबर, ओला और जेप्टो से जैसे प्लेटफार्म के लिए काम कर रहे हैं. इसे 'गिग वर्क' कहा जाता है. गिग वर्क का मतलब ऐसे जाऊब से है जो अस्थाई, फ्लेक्सिबल जौब होते हैं. इस के साथ ही इन नौकरियों में सुरक्षा बिल्कुल भी नहीं होती है. ये नौकरियां बाहर से लचीलापन और सुरक्षा का वादा करती हैं, लेकिन हकीकत कुछ और है. यह नौकरियां युवाओं को ऐसी स्थिति में डाल देती है जहां स्थायित्व, भविष्य की योजना, प्रमोशन और स्वास्थ्य की कोई सुविधा नहीं होती है. ऐसे में यह सवाल जरुर उठता है कि क्या यह रोजगार डिजिटल तकनीकी गुलामी का नया रूप है?
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